कृष्णांक
व्रज परिचय
प्रत्येक एकादशी और अक्षयनवमी को मथुरा की परिक्रमा होती है, देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-वृन्दावन की एक था परिक्रमा की जाती है। कोई-कोई इसमें गरुड़ गोविन्द को भी शामिल कर लेते हैं। वैशाख शुक्ला पूर्णिमा को रात्रि में परिक्रमा की जाती है, जिसे वन विहार की परिक्रमा कहते हैं। स्थान-स्थान में गाने-बजाने का तथा पदाकन्दा नाटक का भी प्रबन्ध रहता है। श्रीदाऊजी ने द्वारका से आकर, वसन्त–ऋतु के दो मास व्रज में बिताकर जो वनविहार किया था तथा उस समय यमुना जी को खींचा था यह परिक्रमा उसी की स्मृति है। मथुरा से चार-पांच मील दक्षिण-पश्चिम मधुवन में महोली नामक एक गांव है, जहाँ शत्रुघ्नजी ने मधुदैत्य के किले को उलट कर मधुपुरी बसायी थी जो पीछे मथुरा कहलायी। आजकल इसमें और मथुरा में इतना फासला है, सम्भव है यह फासला इधर आकर हो गया हो, पहले मथुरा ही वहाँ तक फैली रही हो। महोली से आगे तालवन या तारीगाम है जहाँ बलराम जी ने धेनुकासुर को मारा था। इसके आगे कुमुदवन या सतोहागांव है, वहाँ शान्तनुकुण्ड तथा शान्तनु और बलदेवजी के मन्दिर हैं। सन्तानेच्छुक लोग शान्तनुकुण्ड में स्नान करने आते हैं। सतोहे से आगे वाढी गांव में बहुलावन हैं, यहाँ एक कृष्णकुण्ड और बहुला गाय का मन्दिर है। इसके आगे तोषजारिवन या मुखराईगाम है। तोष भगवान का सखा था, उसी के नाम से यह गांव है। इसके आगे राधाकुण्ड तथा कृष्णकुण्ड– ये दो कुण्ड हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने जब अरिष्टासुर को मारा तो गोप-गोपियों ने भगवान से कहा कि तुम्हें बैल मारने की हत्या लगी है। इसलिये किसी तीर्थ में स्नान करके शुद्ध होना चाहिये। इस पर श्रीराधा और श्रीकृष्ण ने अपने हाथों से धरती खोदकर जल निकाला, और इस प्रकार ये दो कुण्ड बन गये। तब भगवान ने राधाकुण्ड में स्नान किया। जिस स्थान पर अरिष्टासुर मारा गया था, वह स्थान अरिष्टगाम हो गया, उसे ही आजकल अडींग कहते हैं। राधाकुण्ड में बंगाली महात्मा बहुत रहते हैं। गौडीय सम्प्रदाय के मन्दिर तथा विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के गोस्वामी प्रयागदत्तजी की धर्मशाला है। राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्धन-पर्वत है। पहले यह गिरिराज 7 कोस में फैले हुए थे, पर अब आप धरती में समा गये हैं। यहीं कुसुस सरोवर है, जो बहुत सुन्दर बना हुआ है। यहाँ वज्रनाभ के पधराये हरिदेवजी थे, पर औरंगजेबी काल में वह यहाँ से चले गये, पीछे से उनके स्थान पर दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठित की गयी। यह मन्दिर बहुत सुन्दर है। यहाँ श्रीवज्रनाथ के ही पधराये हुए एकचक्रेश्वर महादेव का मन्दिर है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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