श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण की मधुर-मुरली
मुरली एक साधारण बाजा है। वह हाथी दांत या किसी बहुमूल्य धातु से नहीं बनती। सामान्य बांस ही उसका अधार है, पर उस साधारण बांस की बांसुरी से भगवान के अधर-पल्लव का स्पर्श होते ही वह मधुर संगीत निकलता था, जिसकी तुलना संसार के किसी मधुर स्वर से नहीं की जा सकती। एक बार एक गोपी ने पूछा कि इस बांस की बांसुरी ने कौन सा उत्कट पुण्य किया है, जो यह हमारे हृदय वल्लभ के अधरामृत का निरंतर पान करती रहती है ? इसका उत्तर उसे यह मिला कि इसने अपने हृदय को छूछा (अहंकार शून्य) कर दिया है। इसी से भगवान श्रीकृष्ण ने इसमें अपना दिव्य संगीत फूंका, जिसका स्वर सारे भूमंडल में गूंज उठा। कवि ने इस प्रसंग का कैसा सुन्दर वर्णन किया है। सखी का प्रश्न- मुरली कौन तप तैं कियो । मुरली का उत्तर- तप हम बहुत भाँति करयो । साधु श्री टी.एल. वास्वानी जी ने एक बार कहा था कि हमारे प्रभु अब भी हमसे बिछुड़कर कहीं अन्यत्र नहीं गये हैं, वे हमारे पास ही हैं, वे आज भी हमारे जीवन रूपी बांसुरी में अपना दिव्य संगीत फूंकने को तैयार हैं। शर्त यह है कि हम लोग अपने हृदयों को बांसुरी की तरह पोला (अहंकार शून्य) बना लें फिर उनकी ओर से तनिक भी विलम्ब नहीं है। ऐसा करने से त्याग के पथ पर अग्रसर हुआ भारत उनके आशीर्वाद का पात्र बन जाएगा। वे फिर एक बार भारतवर्ष में, अपने त्यारे भारत को दासता की बेड़ियों से मुक्त करने तथा शोक सन्ताप से तप्त इस जगती तल को शीतल करने के लिए मुरली की टेर सुनाएंगें। मुरली की मधुर तान में भगवान ने संसार के नियमों, धर्म प्रवर्तक आचार्यों, सम्प्रदायों तथा धर्म ग्रन्थों का समन्वय कर दिया। महात्मा लोग बहुधा दृष्टान्तों, प्रतिमाओं, सूत्रों तथा भजनों के द्वारा संसार को उपदेश देते रहे हैं। इस सबमें भजनों (संगीत) का प्रभाव मूकता के बाद सबमें अधिक रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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