श्रीकृष्णांक
श्रीराम-कृष्ण का ऐक्य
1- मैं तोहि अब जान्यों संसार । विनयपत्रिका 188
अर्थात हमारे हृदय में तो नन्दकुमार निवास है, तू उसके हृदय में जाकर बस, जहाँ वे न हों। कैसी उदारता है? 2- नील सरिरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन । श्रीमन्ननारायण और श्रीकृष्ण भगवान के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार कहा गया है। अवतार रहस्य रहस्य ही है। हर-एक की समझके लिये वह सुगम नहीं। इस विषय में महर्षियों ने जो कुछ लिखा है, उसे यहाँ उद्धत करने से लेख बहुत बड़ा हो जायगा और यहाँ इससे अधिक प्रयोजन भी नहीं है। इससे उसका उल्लेख नहीं किया जाता। श्रीराम-कृष्णा वतारों को छोड़कर अन्य सब अवतार बहुत ही सुक्ष्मा काल के लिए हुए और शीघ्र ही कार्य करके अपने अपने-अपने लोकों को चले गये। मुख्यक नर-अवतार यही दो हैं और प्राय: सारी वैष्ण व जनता इन्हींर दो की उपासना करती दीख पड़ती है। शोक के साथ यह कहना पड़ता है कि आजकल जहाँ-तहाँ रामोपासक खोटी-खरी सुनाते हैं। भाव कुभाव अनख आलसहू। नाम जपत मंगल दिसि दसहू ।। नाम किसी प्रकार भी मुंह से निकले तो वह कल्या।णकारी ही है जैसे अग्नि को जान या अनजान में छूने से वह जलाती ही है, यही हाल भगवान के प्रत्येक नाम का है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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