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श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण और उनका दिव्य उपदेश
वे एक उच्च श्रेणी के राजनीति-विशारद, सुधारक, योगी और ज्ञानी थे। उन्हें हठ-योग की बज्रोली-मुद्रा सिद्ध थी, इसीलिये वे गोपियों में रहते हुए भी ब्रह्मचारी कहलाये। गोपियों के साथ उनका दिव्य प्रेम था, उसमें कामवासना की गन्ध भी नहीं थी। दस-ग्यारह वर्ष के बालक में कामवासना हो भी कैसे सकती थी ? वे सदा ही निर्गुण अनन्त ब्रह्म में स्थित रहते थे। वे प्रकृति के कार्यों के साक्षी थे। इसीलिये वे ‘नित्य ब्रह्मचारी’ कहलाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को लोग साधारण बोल-चाल में ‘मुरलीमनोहर’ कहते हैं। ईसाइयों के क्रास की तरह वंशी भी एक विशेष चिह्न है, ऊँकार अथवा प्रणव-ध्वनि का संकेत है। यह शब्दब्रह्म का ही रूप है, जिससे सारे जगत की सृष्टि हुई है। जब भगवान श्रीकृष्ण वंशी बजाते थे, तब उसकी ध्वनि गोपियों के (कानों के केवल मधुर ही नहीं लगती थी, उन्हें जो देवताओं के अवतार थीं) एक विलक्षण प्रकार का दिव्य सन्देश मिलता था। श्रीकृष्ण का त्रिभंगी होकर खड़े होना सत्त्व, रज और तम इन तीन गुणों के अधिष्ठा तत्त्व का ही द्योतक है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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