श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण स्वयं भगवान थे
आद्योअवतार: पुरुष: परस्य श्रीमद्भा. 2।6।41
नारायण: स भगवानाप्रस्तस्मात्सनातनात् । ब्रह्मसहिंता
आध पुरुषावतार ब्रह्माण्ड में अन्तर्यामी रूप से प्रवेश करते हैं, वह द्वितीय पुरुषावतार चतुव्र्युह में श्रीप्रद्युम्न हैं, ब्रह्मसंहिता में कहा है- 'प्रत्येकमेवमेकांशादेकांशाद्विशति स्वयम्।' 5।14
इन्हीं पद्यनाभ भगवान के नाभि-पद्य से हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी का प्रादुर्भाव है- यस्याम्भसि शयानस्य योगनिद्रां वितंवत: । श्रीमद्भा. 1।3।2
मद्भागवत में ‘पाताल मेंतस्यहि पादमूल’ इत्यादि से इन्हीं का वर्णन है। तृतीय पुरुषावतार श्री अनिरूद्ध हैं जो प्रदेशमात्र (तर्जनी से अंगुष्ठत के विस्तार मात्र) विग्रह से सर्व जीवों में अन्तर्यामी हैं, जिनका वर्णन- केचित्स्वदेहांतर्हृद्यावकाशे श्रीमद्भा. 2।2।8
इस पद्य में है। गुणावतार (सत्त्व, रज और तम) श्रीविष्णु, ब्रह्मा और रुद्र हैं। जिनका आविर्भाव गर्भोदशायी द्वितीय पुरुषावतार श्रीप्रद्युम्नजी से है- सत्त्वं रजस्तम इति प्रकृतेर्गुणास्तै- श्रीमद्भा. 1।2।23
यद्यपि एक ही गर्भोदशायी द्वितीय पुरुषावतार इस विश्व के स्थित, पालन और संहार के लिये इन तीन गुणों से युक्त हैं, किन्तु पृथक-पृथक रूप से उनके अधिष्ठाता होकर ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र संज्ञा को धारण करते हैं। यहाँ ‘गुणैर्युक्तः’ इस कथन से नियम-नियामक मात्र सम्बन्ध कहा गया है, परम पुरुष भगवान गुणबद्ध नहीं हैं कहा है-'माया परेत्यभिमुखे च बिलज्जमाना ।' श्रीमद्भा. 2।7।47
लीलावतार जिस कार्य में किसी भी प्रकार का आयास न हो और जो सर्व प्रकार से स्वेच्छाधीन एवं अनेक प्रकार की विचित्रता से परिपूर्ण नित्य नवीन उल्लास-तरंगों से युक्त हो ,उस कार्य को लीला कहते हैं। ऐसी लीला के लिये जो भगवान के अवतार होते हैं, वे लीलावतार हैं। ऐसे अवतार हैं- चतुःसन (सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार), नारद, वाराह, मत्स्य, यज्ञ नरनारायण, कपिन, दत्त, हयग्रीव, हंस, ध्रवप्रिय, ऋषभ, पृथु, श्रीनृसिंह, कूर्म, धन्वतरि, मोहिनी, वामन, परशुराम, श्रीराम, व्यास, बलभद्र श्रीकृष्ण, युद्ध और कल्कि। यह अवतार ब्रह्मादि कल्पों में होते हैं, अत एव इनकी कल्पावतार संज्ञा भी है- कल्पावतारा इत्येते कथिता: पंचविंशति: । ल. भा.
इन पुरुषावतार, गुणावतार और लीलावतारों के अतिरिक्त मन्वन्तरावतार भी होते हैं। स्वायम्व आदि चौदह मन्वतरों में क्रमशः यज्ञ, विष्णु, सत्यसेन, हरि, वैकुण्ठ, अजित, वामन, सार्वभौम, ऋषभ, विश्रक सेन, धर्मसेतु, सुधामा, योगेश्वर और वृहद्धानु होते हैं, जिनका वर्णन मद्भागवत के अष्टम स्कन्ध में किया गया है। |