श्रीकृष्णांक
योगेश्वर श्रीकृष्ण
मेरी सभा में ही इन्होंने जो आश्चर्य जनक कार्य किया था, वैसा दूसरा कौन कर सकता है ? जिनको द्विजगण परमपिता परमात्मा कहते है, अब वे पाण्डव पक्ष में होकर युद्ध करेंगे और कौरवों को तथा उनके पक्षवालें राजाओं को मारकर पाण्डवों को राज्य दिलावेंगे। जहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण सारथी और महावीर अर्जुन योद्धा है, वहाँ कौन उनके सामने युद्ध कर सकता है ? दैवविमुढ़ दुर्योधन श्रीकृष्ण भगवान के स्वरूप को नहीं जान सका, अतः उसका नाश सन्निकट है।
इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि वृन्दावन की लीला तथा महाभारत की लीला करने वाले भगवान श्रीकृष्ण दो नहीं, एक ही थे। अब इस प्रकार लीला करने की आवश्यकता क्या थी ? यह बात पूर्णावतार के स्वरूप पर विचार करने से विदित हो जाती है। श्रीभगवान सत्, चित्, आनन्द के स्वरूप थे, अतः उनके पूर्णावतार में सत्, चित् तथा आनन्द तीनों की लीलाओं का पूर्णरूप से प्रकट होना सर्वथा स्वाभाविक एवं अवश्यम्भावी था। वासुदेवगृह साक्षाद् भगवान् पुरुष: पर: । कितनी ही सुरलोक की देवियों ने, कितने ही ऋषियों ने गोपी रूप से जन्म लेकर श्री भगवान के साथ रासलीला की थी। अतः रासलीला कामलीला नहीं है, वास्तव में योगेश्वर भगवान की योगमयी अति पवित्र लीला है, इसमें अणुमात्र सन्देह नहीं है। अब लीलास्थल में जहाँ-जहाँ योगेश्वर शब्द प्रयोग हुआ है उनका कुछ वर्णन करके इस गम्भीर तथा अलौकिक तत्त्व का थोडा-सा दिग्दर्शन कराया जाता है। रासलीला के समय भगवान ने कितनी मूर्तियां धारण की थी, इस विषय में भागवत में लिखा है- योगेश्वरेण कृष्णेन तासां मध्ये द्वयोर्द्वयो: । श्रीकृष्ण भगवान ने रासलीला करते समय दो-दो गोपियों के बीच एक-एक होकर हजारों मूर्तियां धारण कर ली थी और जिस रात्रि को रासलीला हुई थी, उस रात को जो गोपियाँ घर को छोड़कर चली आयी थी, उन गोपियों की भी एक-एक मूर्ति धारण करके उनके पतियों के पास श्रीभगवान विद्यमान थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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