श्रीकृष्णांक
सर्वगुणाधार श्रीकृष्ण
वह स्वजनप्रिय थे, पर लोकहित के लिये स्वजनों का विनाश करने में भी कुण्ठित नहीं होते थे वैसे ही शिशुपाल भी था। दोनों ही उनकी बूआ के बेटे थे। उन्होंने मामा और भाई का मुलाहजा न कर दोनों को ही दण्ड दिया। फिर यादव लोग सुरापायी हो उद्दण्ड हो गये तो उन्होंने उन्हें भी अछूता न छोड़ा। श्रीकृष्ण सर्वदा और सर्वत्र सर्वगुणों के प्रकाश से तेजस्वी थे। वह अपराजेय, अपराजित, विशुद्ध पुण्यमय प्रेममय दयामय, दृढ़कर्मी, धर्मात्मा, वेदज्ञ, नीतिज्ञ धर्मज्ञ लोकहितैषी न्यायशील क्षमाशील निरपेक्ष शास्ता, निरहंकार योगी और तपस्वी थे। परन्तु उनका चरित्र अमानुषिक था अब पाठक ही अपनी अपनी बु़द्धि के अनुसार इसका निर्णय कर ले कि जिसकी शक्ति मनुषी पर चरित्र मनुष्याग्तीत था, वह पुरुष मनुष्य था या या ईश्वर। जो श्रीकृष्ण को निरा मनुष्य ही समझे वह उन्हें कम से कम महापुरुष महाज्ञानि ही माने और जिस श्रीकृष्ण के चरित्र मे ईश्वर प्रभाव दिखायी दे वह मेरे साथ जोडकर विनयपूर्वक कहे- न कारणात्कारणाद्वा कारणाकारणान्न च। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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