श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण
यह ठीक है कि आज जो ʻभगवद्गीताʼ हमारे सामने है वह इस रूप में महर्षि वेदव्यास की बनायी है। श्रीकृष्ण ने जो कुछ अर्जुन को समझाया था, उसी को महर्षि ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर तद्रूप ही इन पद्यों में निबद्ध किया है। महर्षि व्यास दूसरों को भी दिव्य दृष्टि देने का सामर्थ्य रखते थे। धृतराष्ट्र से उन्होंने कहा था कि ʻयदि महाभारत का युद्ध देखना चाहो तो मैं तुम्हें दिव्यदृष्टि देता हूँ। इससे तुम घर बैठे ही युद्ध की समस्त घटनाएँ अपनी आँखों देख सकोगे।ʼ इस पर धृतराष्ट्र ने कहा कि ʻमैं अपने सम्बन्धियों को मरते-कटते देखना नहीं चाहता। केवल हाल सुनना चाहता हूँ। इस पर महर्षि ने वह दृष्टि संजय को थोड़े समय के लिये दी जिससे इन्होंने महाभारत का सब हाल देखकर धृतराष्ट्र को सुनाया। महर्षि ने वेदव्यास आजकल के वैसे लेखकों की तरह तो थे नहीं, जो इधर-उधर के सामान को लेकर धोखे से कीर्ति कमाया करते हैं। इसी से उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की बातों को उन्हीं के नाम से उसी रूप में प्रकाशित किया। अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न और त्यागी महर्षि ने किसी ऐहिक लोभ से ऐसा किया होगा, इसकी तो आशंका करना ही मूर्खता है। हाँ, यह कोई कह सकता है कि उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण उनकी बातों को बड़ी श्रद्धा-आदर के साथ ध्यान दिया है, परन्तु जिन श्रीकृष्ण में भगवान व्यास- जैसे महर्षि भी भक्ति रखते हों उनकी महिमा का अनुमान करना कठिन नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि उनके समकालीन बडे़-से-बड़े ज्ञानी, विज्ञानी, धर्मात्मा, तपस्वी महर्षि, शूर, प्रतापी और पराक्रमी योद्धा भी उन्हें बड़ी भक्ति-श्रद्धा और आदर की दृष्टि से देखते थे एवं उनके लोकातिशायी ऐश्वर्य के कायल थे। व्यास- जैसे महर्षि, युधिष्ठिर- जैसे धर्मात्मा, विदुर-जैसे योद्धा सहदेव- जैसे ज्ञानी, द्रौपदी और कुन्ती- जैसी ज्ञान- वयोवृद्ध स्त्रियाँ और भीष्म पितामह- जैसे अलौकिक ब्रह्मक्षत्रबल सम्पन्न महात्मा ईश्वर बुद्धि से इनके चरणों में नतमस्तक होकर सुखी होते थे। यह एक बात ही इनके पूर्णातार होने का काफी से भी अधिक प्रमाण है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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