श्रीकृष्णांक
मुसलमान कवि और भगवान श्रीकृष्ण
खेद है कि श्रीकृष्ण भक्त मुसलमान पुरुष स्त्रियों का कही ‘रेकार्ड’ नहीं रखा गया, परन्तु यह बात निश्चित है कि उनकी संख्या काफी बड़ी होगी। इसका अनुमान इसी बात से लगता है कि सैकड़ों मुसलमान कवियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में भीगी हुई कविताएं लिखकर अपनी वाणी को पवित्र किया है। यह बात तो सभी जानते हैं कि दस-बीस हजार व्यक्तियों में मुश्किल से एक-आध कवि होता है। फिर छोटे-मोटे अधिकांश कवियों की कविता उन्हीं के साथ लुप्त हो जाती हैं। साहित्य के इतिहास में उनका कहीं नाम भी नहीं आता। इतना सब होते हुए श्रीकृष्ण भक्त मुसलमान कवियों की संख्या पर जब हम दृष्टि डालते हैं तब कृष्णोपासक मुसलमानों की बड़ी संख्या का कुछ-कुछ आभास-सा मिलता है। यहाँ कतिपय श्रीकृष्ण-भक्त मुसलमान कवियों की कुछ रचनाओं की बानगी उपस्थित की जाती है। सुप्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर ने फुफेरे भाई और मंत्री नवाब अब्दुर्रहीम खानाखाना भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भक्त थे। भगवान की सेवा में उपस्थित होकर, देखिये, वे क्या नजराना पेश करते हैं– रत्नाकरोअस्ति सदनं गृहिणी च पद्मा जब रत्नाकर (समुद्र) तो आपका घर है और लक्ष्मी आपकी गृहिणी है, तब हे जगदीश्वर, आप ही बतलाइये कि आपको देने योग्य क्या वस्तु बच रही ? हां, एक बात है, राधिका ने आपका मन चुरा लिया है, वही आपके पास नहीं है, इसलिये मैं अपना मन आपको अर्पण करता हूँ, कृपया गृहण कीजिये !! माखन-चारे की कृपा प्राप्त कर लेने पर रहीम को संसार का कोई डर नहीं रहता– रहिमन को कोउ का करे, ज्वारी, चोर लबार । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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