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4. ‘कहा जाता है कि तुम्हें वश में करने का उपाय यह है कि मनुष्य धर्मग्रन्थों को पढा करे, दूर, शान्तिमय स्थान में बैठकर ध्यान करे, प्रार्थना-कीर्तन करे और माला लेकर मंत्र जाप करे, मूर्तियों और चिह्नों को धारण करे और साधारण लोगों की उपेक्षा करके ज्ञानीजनों का सत्संग करे। भगवन् ! क्या तुम्हारी लीला में शामिल होने के लिये इन्हीं सब मार्गों का अवलम्बन करना चाहिये ?’ ‘हे प्यारे ! प्रारम्भिक अवस्था में सभी मार्ग अपने-अपने ढंग से अच्छे हैं, पर इन सबका उद्देश्य यदि हर जगह अपनी आंखे मिचौनी की अनन्त लीला करते हुए मेरा दर्शन करना नहीं है, तो ये सब व्यर्थ हैं। वह सब करो या न करो, पर सब जीवों के साथ– मेरे साथ सनातन सम्बन्ध से बँधे हुए क्रीड़ा सहचरों के साथ और जिनमें वे साथी भी शामिल हैं, जिनके ज्ञानचक्षुओं पर अज्ञान की पट्टी बँधी हुई है– मुझे प्रतिक्षण और प्रतिस्थापन में अपनी आंख-मिचौनी की लीला करते हुए, सदा अपने निकट ढूँढा करो। ढूँढो और हृदय में सब लोगों को मेरी लीला की सुध दिला-दिलाकर मेरी लीला में पुन: प्रवृत्त करने की प्रेममय, सुन्दर सेवा का पक्का भाव लेकर ढूँढो।
अपने चारों ओर फैली हुई प्रकृति के बीच में मुझे ढूँढो। मुझे असंख्य गूँगे-बहरे, लूले-लंगडे़, अपाहिज, हताश, मर्माहत, लकीर के फकीर, कठिन परिश्रमी और क्षुधा-पीडित लोगों के साथ खेलना बहुत प्रिय है। जो इन सब लोगों को प्यार करता है, प्रसन्न करता है और उन्हें तैयार करके मेरे साथ खेलने को ले आता है, उसके ज्ञान-चक्षुओं पर बँधी हुई पट्टी खुल पड़ेगी और फिर वह अनन्त काल के लिये मेरे खेल में योग दे सकेगा। सम्पत्तिवान, विद्वान, अभिमानी, कुलीन और धन संग्रह करने वाले व्यापारी, ये लोग भी मेरी लीला को भूल गये हैं। हे प्यारे ! इनके साथ बिलकुल भिन्न प्रकार से पेश आओ।
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