अर्जुन के वीरोचित उद्गार

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 74वें अध्याय में संजय ने अर्जुन के द्वारा श्रीकृष्ण से कहे गये वीरोचित वचनों का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

अर्जुन के वीरोचित उद्गार

संजय कहते हैं– भरतनन्दन! भगवान श्रीकृष्‍ण का यह भाषण सुनकर अर्जुन एक ही क्षण में शोकरहित एवं हर्ष और उत्‍साह से सम्पन्न हो गये। तत्‍पश्चात् धनुष की प्रत्‍यचां को साफ करके उन्होंने शीघ्र ही गाण्डीव धनुष की टंकार की और कर्ण के विनाश का दृढ़ निश्चय कर लिया। फिर वे भगवान श्रीकृष्‍ण से इस प्रकार बोले– गोविन्द! जब आप मेरे स्‍वामी और संरक्षक हैं, तब युद्ध में मेरी विजय निश्चित ही है। संसार के भूत और भविष्‍य का निर्माण करने वाले आप ही हैं। जिसके ऊपर आप प्रसन्न हैं, उसकी (अर्थात मेरी) विजय में आज क्‍या संदेह है। श्रीकृष्‍ण! आपकी सहायता मिलने पर तो मैं युद्ध के लिये सामने आये हुए तीनों लोकों को भी परलोक का पथिक बना सकता हूँ, फिर इस महासमर में कर्ण को जीतना कौन बड़ी बात है। जनार्दन! मैं समरभूमि में निर्भय से विचरते हुए कर्ण को और भागती हुई पांचालों की सेना को भी देख रहा हूँ। श्रीकृष्‍ण! वार्ष्‍णेय! सब ओर से प्रज्‍वलित होने वाले भार्गवास्त्र पर भी मेरी दृष्टि है, जिसे कर्ण ने उसी तरह प्रकट किया है, जैसे इन्द्र वज्र का प्रयोग करते हैं। निश्चय ही यह वह संग्राम है, जहाँ कर्ण मेरे हाथ से मारा जाएगा और जब तक यह पृथ्‍वी विद्यमान रहेगी, तब तक समस्‍त प्राणी इसकी चर्चा करेंगे। श्रीकृष्‍ण! आज मेरे हाथ से प्रेरित और गाण्‍डीव धनुष से मुक्त हुए विकर्ण नामक बाण कर्ण को क्षत-विक्षत करते हुए उसे यमलोक पहुँचा देंगे।

आज राजा धृतराष्ट्र अपनी उस बुद्धि का अनादर करेंगे, जिसके द्वारा उन्होंने राज्‍य के अनधिकारी दुर्योधन को राजा के पद पर अभिषिक्त कर दिया था। महाबाहो! आज धृतराष्ट्र अपने राज्‍य से, सुख से, लक्ष्‍मी से, राष्ट्र से, नगर से और अपने पुत्रों से बिछुड़ जायेंगे। श्रीकृष्‍ण! जो गुणवान से द्वेष करता और गुणहीन को राजा बनाता है, वह नरेश विनाशकाल उपस्थित होने पर शोकमग्‍न हो पश्चाताप करता है। जनार्दन! जैसे कोई पुरुष आम के विशाल वन को काटकर उसके दुष्‍परिणाम को उपस्थित देख अत्‍यन्त दुखी हो जाता है, उसी प्रकार आज सूतपुत्र के मारे जाने पर राजा दुर्योधन निराश हो जायेगा। श्रीकृष्‍ण! मैं आपसे सच्ची बात करता हूँ। आज कर्ण का वध हो जाने पर दुर्योधन अपने राज्‍य और जीवन दोनों से निराश हो जाएगा। आज मेरे बाणों से कर्ण के शरीर को टूक-टूक हुआ देखकर राजा दुर्योधन सन्धि के लिये कहे हुए आपके वचनों का स्‍मरण करे। श्रीक़ृष्‍ण! आज सुबलपुत्र जुआरी शकुनि को यह मालूम हो जाए कि मेरे बाण ही दाँव हैं, गाण्‍डीव धनुष ही पासा है और मेरा रथ ही मण्‍डल (चौपड़ के खाने) हैं। गोविन्द! आज मैं अपने पैने बाणों से कर्ण को मारकर कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर के चिन्ता जनित जागरण के स्‍थायी रोग को दूर कर दूँगा। आज कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर मेरे द्वारा सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने पर प्रसन्नचित्त हो दीर्घकाल के लिये संतुष्ट एवं सुखी हो जायेंगे। आज मैं ऐसा अनुपम और अजेय बाण छोडूँगा, जो कर्ण को उसके प्राणों से वंचित कर देग[1]

मधुसूदन! जिस दुरात्‍मा ने मेरे वध के लिये यह व्रत लिया है कि जब तक अर्जुन को मार न दूँगा, तब तक दूसरों से पैर न धुलाऊँगा। उस पापी के इस व्रत को मिथ्‍या करके झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा उसके इस शरीर को रथ से नीचे गिरा दूँगा। जो भूमण्‍डल में दूसरे किसी पुरुष को रणभूमि में अपने समान नहीं मानता है, आज वह पृथ्‍वी उस सूतपुत्र के रक्त का पान करेगी। सूतपुत्र कर्ण ने धृतराष्ट्र के मत में होकर अपने गुणों की प्रशंसा करते हुए द्रौपदी से यह कहा था कि 'कृष्‍णे! तू पतिहीन है उसके इस कथन को मेरे तीखे बाण असत्‍य कर दिखायेंगे और क्रोध में भरे हुए विषधर सर्पों के समान उसके रक्त का पान करेंगे। मैं बाण चलाने में सिद्धहस्‍त हूँ। मेरे द्वारा गाण्डीव धनुष से छोडे़ गये बिजली के समान चमकते हुए नाराच कर्ण को परमगति प्रदान करेंगे। राधापुत्र कर्ण ने भरी सभा में पाण्‍डवों की निन्दा करते हुए द्रौपदी से जो क्रूरतापूर्ण वचन कहा था, उसके लिये उसे बड़ा पश्चाताप होगा। जो पाण्‍डव वहाँ थोथे तिलों के समान नपुंसक कहे गये थे, वे दुरात्‍मा सूतपुत्र वैकर्तन कर्ण के मारे जाने पर आज अच्‍छे तिल और शूरवीर सिद्ध होंगे। अपने गुणों की प्रशंसा करते हुए सूतपुत्र कर्ण ने धृतराष्ट्र के पुत्रों से जो यह कहा था कि मैं पाण्‍डवों से तुम्हारी रक्षा करूँगा उसके इस कथन को मेरे तीखे बाण असत्‍य कर देंगे और पाण्‍डवों का युद्ध विषयक उद्योग समाप्त हो जायेगा।

जिसने यह कहा था कि मैं पुत्रों सहित समस्‍त पाण्‍डवों को मार डालूँगा उस कर्ण को आज समस्‍त धनुर्धरों के देखते देखते मैं नष्ट कर दूँगा। जिसके बल-पराक्रम का भरोसा करके महामनस्‍वी दुर्बुद्धि एवं दुरात्‍मा दुर्योधन सदा हम लोगों का अपमान करता आया है, उस कर्ण का आज युद्धस्‍थल में वध करके मैं अपने भाई युधिष्ठिर को संतुष्ट करूँगा। नाना प्रकार के बाणों का प्रहार करके मैं शत्रु सैनिकों को भयभीत कर दूँगा। धनुष को कान तक खींचकर छोड़े गये यमराष्टवर्धक बाणों द्वारा धराशायी किये गये रथों और हाथियों से रणभूमि की शोभा बढ़ाऊँगा। मैं महासमर में शक्ति सम्पन्न रणदुर्भद एवं भयंकर कर्ण को आज अपने बाणों द्वारा मार डालूँगा। श्रीकृष्‍ण! आज कर्ण के मारे जाने पर राजासहित धृतराष्ट्र के सभी पुत्र सिंह से डरे हुए मृगों के समान भयभीत हो सम्पूर्ण दिशाओं में भाग जायँ। आज युद्धस्‍थल में पुत्रों और सुहृदयों सहित कर्ण के मेरे द्वारा मारे जाने पर राजा दुर्योधन अपने लिये निरन्तर शोक करे। श्रीकृष्‍ण! अमर्षशील दुर्योधन आज कर्ण को रणभूमि में मारा गया देख मुझे सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ समझ ले। मैं आज ही पुत्र, पौत्र, मन्त्री और सेवकों सहित राजा धृतराष्ट्र को राज्‍य की ओर से निराश कर दूँगा। केशव! आज चक्रवाक तथा भिन्न-भिन्न मांस भोजी पक्षी बाणों से कटे हुए कर्ण के अंगों को उठा ले जायँगे। मधुसूदन आज संग्राम में समस्‍त धनुर्धरों के देखते-देखते मैं राजापुत्र कर्ण का मस्‍तक काट डालूँगा। श्रीकृष्‍ण! आज तीखे विपाठों और क्षुरप्रों से रणभूमि में दुरात्‍मा राधापुत्र के अंगों को काट डालूँगा।[2]

आज वीर राजा युधिष्ठिर महान कष्ट और अपने चिरसंचित मानसिक संताप से छुटकारा पा जायँगे। केशव! आज मैं बन्धु-बान्ध्‍वों सहित राधापुत्र को मारकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर को आनन्दित करूँगा। श्रीकृष्‍ण! आज मैं युद्धस्‍थल में कर्ण के पीछे चलने वाले दीन-हीन सैनिकों को सर्पविष और अग्नि के समान बाणों द्वारा भस्‍म कर डालूँगा। गोविन्द! आज मैं सुवर्णमय कवच और मणिमय कुण्‍डल धारण करने वाले भूपतियों की लाशों से रणभूमि को पाट दूँगा। मधुसूदन! आज पैने बाणों से मैं अभिमन्यु के समस्‍त शत्रुओं के शरीरों और मस्‍तकों को मथ डालूँगा। केशव! या तो आज इस पृथ्‍वी को धृतराष्ट्रपुत्रों से पार्थ! दृढ़तापूर्वक क्रोध को धारण करने वाले ये भीमसेन सब ओर से सृंजयों द्वारा घिरकर कर्ण के साथ सूनी करके अपने भाई के अधिकार में दे दूँगा या आप अर्जुन रहित पृथ्‍वी पर विचरेंगे। श्रीकृष्‍ण! आज मैं सम्पूर्ण धनुर्धरों के, क्रोध के, कौरवों के, बाणों के तथा गाण्डीव धनुष के भी ऋण से मुक्त हो जाऊँगा। श्रीकृष्‍ण! जैसे इन्द्र ने शम्बरासुर का वध किया था, उसी प्रकार मैं रणभूमि में कर्ण को मारकर आज तेरह वर्षों से संचित किये हुए दु:ख का परित्‍याग कर दूँगा। आज युद्ध में कर्ण के मारे जाने पर मित्र के कार्य की सिद्धि चाहने वाले सोमकवंशी महारथी अपने को कृतकार्य समझ लें। माधव! आज कर्ण के मारे जाने और विजय के कारण मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जाने पर नजाने शिनिपौत्र सात्‍यकि को कितनी प्रसन्नता होगी। मैं रणभूमि में कर्ण और उसके महारथी पुत्र को मारकर भीमसेन, नकुल, सहदेव तथा सात्यकि को प्रसन्न करूँगा।

माधव! आज महासमर में कर्ण का वध करके मैं धृष्टद्युम्न, शिखण्‍डी तथा पांचालों के ऋण से छुटकारा पा जाऊँगा। आज समस्‍त सैनिक देखें कि संग्राम भूमि में अमर्षशील धनंजय किस प्रकार कौरवों से युद्ध करता और सूतपुत्र कर्ण को मारता है। मैं आपके निकट पुन: अपनी प्रशंसा से भरी हुई बात कहता हूँ, धनुर्वेद में मेरी समानता करने वाला इस संसार में दूसरा कोई नहीं हैं। फिर पराक्रम में मेरे जैसा कौन है? मेरे समान क्षमाशील भी दूसरा कौन है तथा क्रोध में भी मेरे जैसा दूसरा कोई नहीं है। मैं धनुष लेकर अपने बाहुबल से एक साथ आये हुए देवताओं, असुरों तथा सम्पूर्ण प्राणियों को परास्‍त कर सकता हूँ। मेरे पुरुषार्थ को उत्‍कृष्ट से भी उत्‍कृष्ट समझो। मैं अकेला ही बाणों की ज्‍वाला से युक्त गाण्‍डीव धनुष के द्वारा समस्‍त कौरवों और बाह्लीकों को दल-बल सहित मारकर ग्रीष्म ऋतु में सूखे काठ में लगी हुई आग के समान सब को भस्‍म कर डालूँगा। मेरे एक हाथ में बाण के चिह्न हैं और दूसरे में फैले हुए बाण सहित दिव्‍य धनुष की रेखा है। इसी प्रकार मेरे पैरों में भी रथ और ध्‍वजा के चिह्न हैं। मेरे जैसे लक्षणों वाला योद्धा जब युद्ध में उपस्थित होता है, तब उसे शत्रु जीत नहीं सकते हैं। भगवान ने ऐसा कहकर अद्वितीय वीर शत्रुसूदन अर्जुन क्रोध से लाल आँखे किये समर भूमि में भीमसेन को संकट से छुड़ाने और कर्ण के मस्‍तक को धड़ से अलग करने के लिये शीघ्रतापूर्वक वहाँ से चल दिये।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 74 श्लोक 1-18
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 74 श्लोक 19-39
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 74 श्लोक 40-58

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः