धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 31वें अध्याय में धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता के प्रतिपादन का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन करना

धृतराष्ट्र ने पूछा- सूत! तत्पश्चात् दुर्योधन ने क्या किया! मूर्खों! तुम लोगों का मन जो वैकर्तन कर्ण की ओर गया था, उसका क्या कारण है। जैसे शीत से पीड़ित हुए प्राणी सूर्य की ओर देखते हैं, क्या उसी प्रकार तुम लोग भी राधा पुत्र कर्ण की ओर देखते थे? संजय! सेना को शिविर की ओर लौटाने के बाद जब रात बीती और प्रातःकाल पुनः संग्राम आरम्भ हुआ, उस समय वैकर्तन कर्ण ने वहाँ किस प्रकार युद्ध किया तथा समस्त पाण्डवों ने सूत पुत्र कर्ण के साथ किस प्रकार युद्ध आरम्भ किया? ‘अकेला महाबाहु कर्ण सृंजयों सहित समस्त कुन्ती पुत्रों को मार सकता है। युद्ध में कर्ण का बाहुबल इन्द्र और विष्णु के समान है। उसके अस्त्र-शस्त्र भयंकर हैं तथा उस महामनस्वी वीर का पराक्रम भी अद्भुत हैं। ‘यह सब सोचकर राजा दुर्योधन ने संग्राम में कर्ण का सहारा ले मतवाला हो उठा था। किंतु उस समय पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर द्वारा दुर्योधन को अत्यन्त पीड़ित होते और पाण्डु पुत्रों को पराक्रम प्रकट करते देखकर भी महारथी कर्ण ने क्या किया?

मूर्ख दुर्योधन संग्राम में कर्ण का आश्रय लेकर पुनः पुत्रों-सहित कुन्ती कुमारों और श्रीकृष्ण को जीत ने के लिये उत्साहित हुआ था। अहो! यह महान दुःख की बात है कि वेगशाली वीर कर्ण रणभूमि में पाण्डवों से पार न पा सका। अवश्य दैव ही सबका परम आश्रय है। अहो! द्यूतक्रीड़ा का यह घोर परिणाम इस समय प्रकट हुआ है। संजय! आश्चर्य है कि मैंने दुर्योधन के कारण बहुत से तीव्र एवं भयंकर दुःख, जो कांटो के समान कसक रहे हैं, सहन किये हैं। तात! दुर्योधन उन दिनों शकुनि को बड़ा नीतिज्ञ मानता था तथा वेगशाली वीर कर्ण भी नीतिज्ञ है, ऐसा समझकर राजा दुर्योधन उसका भी भक्त बना रहा। संजय! इस प्रकार वर्तमान महान युद्धों में जो मैं प्रतिदिन ही अपने कुछ पुत्रों को मारा गया और कुछ को पराजित हुआ सुनता आ रहा हूँ, इससे मुझे यह विश्वास हो गया है कि समरांगण में कोई भी वीर ऐसा नहीं है जो पाण्डवों को रोक सके। जैसे लोग स्त्रियों के बीच में निर्भय प्रवेश कर जाते हैं, उसी प्रकार पाण्डव मेरी सेना में बेखटके घुस जाते हैं। अवश्य इस विषय में दैव ही अत्यन्त प्रबल हैं।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 31 श्लोक 17-35

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