ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 87वें अध्याय में ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा करने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

इंद्र और सूर्य का संवाद

संजय कहते हैं- राजन! तदनंतर ब्रह्मर्षियों तथा प्रजापतियो के साथ ब्रह्मा और महादेव जी भी दिव्य विमान पर स्थित हो उस प्रदेश में आये।। उन दोनों महामनस्वी वीर कर्ण और अर्जुन को एकत्र हुआ देख उस समय इन्द्र बोल उठे- अर्जुन कर्ण पर विजय प्राप्त करे। यह सुनकर सूर्य देव कहने लगे- नहीं, कर्ण ही अर्जुन को जीत ले। मेरा पुत्र कर्ण युद्धस्थल में अर्जुन को मारकर विजय प्राप्त करे। (इन्द्र बोले-) नहीं, मेरा पुत्र अर्जुन ही आज कर्ण का वध करके विजय श्री का वरण करे।[1] इस प्रकार सूर्य और इन्द्र में विवाद होने लगा। वे दोनों देवश्रेष्ठ वहाँ एक-एक पक्ष में खडे़ थे।

भारत! देवताओं और असुरों में भी वहाँ दो पक्ष हो गये थे। महामना कर्ण और अर्जुन को युद्ध के लिये एकत्र हुआ देख देवताओं, ऋषियों तथा चारणों सहित तीनों लोक के प्राणी काँपने लगे। सम्पूर्ण देवता तथा समस्त प्राणी भी भयभीत हो उठे थे। जिस ओर अर्जुन थे, उधर देवता और जिस ओर कर्ण था, उधर असुर खडे़ थे। रणयूथपति कर्ण और अर्जुन कौरव तथा पाण्डव दल के प्रमुख वीर थे।

देवताओं का ब्रह्मा से कौरव-पाण्डव योद्धाओं की विजय के विषय में पूछना

उनके विषय में दो पक्ष देखकर देवताओं ने प्रजापति स्वयम्भू ब्रह्मा जी से पूछा- देव! इन कौरव-पाण्डव योद्धाओं में कौन विजयी होगा? भगवन! हम चाहते हैं कि इन दोनों पुरुषसिंह को एक सी ही विजय हो। प्रभो! कर्ण और अर्जुन के विवाद से सारा संसार संशय में पड़ गया। स्वयम्भू! आप हमें इसके विजय के सम्बन्ध में सच्ची बात बताइये। आप ऐसा वचन बोलिये, जिससे इन दोनों की समान विजय सूचित हो। देवताओं की वह बात सुनकर बुद्धिमान में श्रेष्ठ इन्द्र ने देवेश्वर भगवान ब्रह्मा को प्रमाण करके यह निवेदन किया-भगवन! आपने पहले कहा था कि इन दोनों कृष्णों की विजय अटल है। आपका वह कथन सत्य हो। आपको नमस्कार है। आप मुझ पर प्रसन्न होइये।[2]

ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन के विजय की घोषणा करना

तब ब्रह्मा और महादेव जी ने देवेश्वर इन्द्र से कहा- महात्मा अर्जुन की विजय तो निश्चित ही है। इन्द्र! इन्हीं सव्यसाची अर्जुन ने खाण्डव वन में अग्निदेव को संतुष्ट किया और स्वर्गलोक में जाकर तुम्हारी भी सहायता की। कर्ण दानव पक्ष का पुरुष है; अतः उसकी पराजय करनी चाहिये ऐसा कहने पर निश्चित रूप से देवताओं का ही कार्य सिद्ध होगा। देवेश्वर! अपना कार्य सभी के लिये गुरुतर होता है। महामना अर्जुन सदा सत्य और क्रोध धर्म में तत्पर रहने वाले हैं; अतः उनकी विजय अवश्य होगी, इसमें संशय नहीं है। शतलोचन! जिन्होंने महात्मा भगवान वृषभध्वज को संतुष्ट किया है, उनकी विजय कैसे नहीं होगी। -साक्षात् जगदीश्वर भगवान विष्णु ने जिनका सारथ्य किया है, जो मनस्वी, बलवान, शूरवीर, अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता और तपस्या के धनी हैं,उसकी विजय क्यों न होगी? सर्वगुण सम्पन्न महातजस्वी कुन्तीकुमार अर्जुन सम्पूर्ण धनुर्वेद को धारण करते हैं; अतः उनकी विजय होगी ही; क्योंकि यह देवताओं का ही कार्य है। पाण्डव वनवास आदि के द्वारा सदा महान कष्ट उठाते आये हैं। पुरुष प्रवर अर्जुन तपोबल से सम्पन्न और पर्याप्त शक्तिशाली हैं। ये अपनी महिमा से दैव के भी निश्चित विधान को पलट सकते हैं; यदि ऐसा हुआ तो सम्पूर्ण लोकों का अवश्य ही अन्त हो जायेगा।

श्रीकृष्ण और अर्जुन के कुपित होने पर यह संसार कहीं टिक नहीं सकता; पुरुषप्रवर श्रीकृष्ण और अर्जुन ही निरन्तर जगत की सृष्टि करते हैं। ये ही प्राचीन ऋषि श्रेष्ठ पर और नारायण हैं; इन पर किसी का शासन नहीं चलता। ये ही सबके नियन्ता हैं; अतः ये शत्रुओं को संताप देने में समर्थ हैं। देवलोक अथवा मनुष्य लोक में कोई भी इन दोनों की समानता करने वाला नहीं है। देवता, ऋषि और चारणों के साथ तीनों लोक, समस्त देवगण और सम्पूर्ण भूत इनके ही नियन्त्रण में में रहने वाले हैं। इन्हीं के प्रभाव से सम्पूर्ण जगत अपने अपने कर्मो में प्रवृत्त होता है।[2] शूरवीर पूरूष प्रवर वैकर्तन कर्ण श्रेष्ठ लोक प्राप्त करे; परन्तु विजय तो श्रीकृष्ण और अर्जुन की ही हो। कर्ण और द्रोणाचार्य और भीष्म जी के साथ वसुओं अथवा मरुद्रणों के लोक में जाय अथवा स्वर्गलोक ही प्राप्त करे।

देवताओं द्वारा कृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा करना

देवाधिदेव ब्रह्मा और महादेव जी के ऐसा कहने पर इन्द्र ने सम्पूर्ण प्राणियों को बुलाकर उन दोनों की आज्ञा सुनायी।। वे बोले- हमारे पूज्य प्रभुओं ने संसार के हित के लिये जो कुछ कहा है, वह सब तुम लोगों ने सुन ही लिया होगा। वह वैसे ही होगा। उसके विपरित होना असम्भव है; अतः अब निश्चिन्त हो जाओ। माननीय नरेश! इन्द्र का वचन सुनकर समस्त प्राणी विस्मित हो गये और हर्ष में भरकर श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा करने लगे। साथ ही उन दोनों के ऊपर उन्होंने दिव्य सुगन्धित फूलों की वर्षा की। देवताओं ने नाना प्रकार के दिव्य बाजे बजाने आरम्भ कर दिये।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 87 श्लोक 40-59
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 87 श्लोक 60-81
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 87 श्लोक 82-100

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