कर्ण और दुर्योधन की बातचीत

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 31वें अध्याय में कर्ण और दुर्योधन की बातचीत का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

संजय कहते हैं- राजन! जब रात बीती और प्रातःकाल हो गया, तब महाबाहु कर्ण राजा दुर्योधन के पास आया और उससे मिलकर इस प्रकार बोला। कर्ण ने कहा-राजन! आज मैं यशस्वी पाण्डु पुत्र अर्जुन के साथ संग्राम करूँगा। या तो में ही उस वीर को मार डालूँगा या वही मेंरा वध कर डालेगा।[1] भरतवंशी नरेश! मेरे तथा अर्जुन के सामने बहुत-से कार्य आते गये; इसीलिए अब तक मेरा और उनका द्वैरथ युद्ध न हो सका। प्रजानाथ! भरतनन्दन! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार निश्चय करके यह जो बात कह रहा हूँ, उसे ध्यान देकर सुनो।

कर्ण का अपने शौर्य का वर्णन दुर्योधन से करना

आज मैं रणभूमि में अर्जुन का वध किये बिना नहीं लौटूँगा। हमारी इस सेना के प्रमुख वीर मारे गये हैं। अतः मैं युद्ध में जब इस सेना के भीतर खड़ा होऊँगा, उस समय अर्जुन मुझे इन्द्र की दी हुई शक्ति से वंचित जानकर अवश्य मुझ पर आक्रणम करेंगे। जनेश्वर! अब जो यहाँ हितकर बात हे, उसे सुनिये। मेरे तथा अर्जुन के पास भी दिव्यास्त्रों का समान बल है। हाथी आदि के विशाल शरीर का भेदन करने, शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने, दूर का लक्ष्य वेधने, सुन्दर रीति से युद्ध करने तथा दिव्यास्त्रों के प्रयोग में भी सव्यसाची अर्जुन मेरे समान नहीं हैं। भारत! शारीरिक बल, शौर्य, अस्त्रविज्ञान, पराक्रम तथा शत्रुओं पर विजय पाने के उपाय को ढूँढ़ निकालने में भी सव्यसाची अर्जुन मेरी समानता नहीं कर सकते। मेरे धनुष का नाम विजय है। यह समस्त आयुधों में श्रेष्ठ है। इसे इन्द्र का प्रिय चाहने वाले विश्वकर्मा ने उन्हीं के लिए बनाया था। राजन! इन्द्र ने जिसके द्वारा दैत्यों को जीता था, जिसकी टंकार से दैत्यों को दसों दिशाओं के पहचानने में भ्रम हो जाता था, उसी अपने परम प्रिय दिव्य धनुष को इन्द्र ने परशुराम जी को दिया था और परशुराम जी ने वह दिव्य उत्तम धनुष मुझे दे दिया है। उसी धनुष के द्वारा मैं विजयी वीरों में श्रेष्ठ महाबाहु अर्जुन के साथ युद्ध करूँगा। ठीक वैसे ही, जैसे समरांगण में आये हुए समस्त दैत्यों के साथ इन्द्र ने युद्ध किया था। परशुराम जी का दिया हुआ वह घोर धनुष गाण्डीव से श्रेष्ठ है। यह वही धनुष है, जिसके द्वारा परशुराम जी ने पृथ्वी पर इक्कीस बार विजय पायी थी। स्वयं भृगुनन्दन परशुराम ने ही मुझे उस धनुष के दिव्य कर्म बताये हैं और उसे उन्होंने मुझे अर्पित कर दिया है; उसी धनुष के द्वारा मैं पाण्डुकुमार अर्जुन के साथ युद्ध करूँगा। दुर्योधन! आज मैं समरभूमि में विजयी पुरुषों में श्रेष्ठ वीर अर्जुन का वध करके बन्धु-बान्धवों सहित तुम्हें आनन्दित करूँगा।[2]

भूपाल! आज उस वीर के मारे जाने पर पर्वत, वन, द्वीप और समुद्रों सहित यह सारी पृथ्वी तुम्हारे पुत्र-पौत्रों की परंपरा में प्रतिष्ठित हो जायेगी। जैसे उत्तम धर्म में अनुरक्त हुए मनस्वी पुरुष कि लिए सिद्धि दुर्लभ नहीं है, उसी प्रकार आज विशेषतः तुम्हारा प्रिय करने हेतु मेरे लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। जैसे वृक्ष अग्नि का आक्रमण नहीं सह सकता, उसी प्रकार अर्जुन में ऐसी शक्ति नहीं है कि मेरा वेग सह सकें; परंतु जिस बात में मैं अर्जुन से कम हूँ, वह भी मुझे अवश्य बता देना उचित है। उनके धनुष की प्रत्यंचा दिव्य है। उनके पास दो बड़े-बड़े दिव्य तरकस हैं, जो कभी ख़ाली नहीं होते तथा उनके सारथि श्रीकृष्ण हैं, ये सब मेरे पास वैसे नहीं हैं यदि उनके पास युद्ध में अजेय, श्रेष्ठ, दिव्य गाण्डीव धनुष है तो मेरे पास भी विजय नामक महान दिव्य एवं उत्तम धनुष मौजूद है। राजन! धनुष की दृष्टि से तो मैं ही अर्जुन से बढ़ा-चढ़ा हूँ; परंतु वीर पाण्डु पुत्र अर्जुन जिसके कारण मुझसे बढ़ जाते हैं, वह भी सुन लो।[2]

कर्ण का शल्य को सारथि बनाने के लिये दुर्योधन से कहना

सर्वलोक वन्दित, दशार्हकुल नन्दन श्रीकृष्ण उनके घोड़ों की रास सँभालते हैं। वीर! उनके पास अग्नि का दिया हुआ सुवर्ण भूषित दिव्य रथ है, जिसे किसी प्रकार नष्ट नहीं किया जा सकता। उनके घोड़े भी उनके समान वेगशाली हैं। उनका तेजस्वी ध्वज दिव्य है, जिसके ऊपर सबको आश्चर्य में डालने वाला वानर बैठा रहता है। श्रीकृष्ण जगत के स्रष्टा हैं। वे अर्जुन के उस रथ की रक्षा करते हैं। इन्हीं वस्तुओं से हीन होकर मैं पाण्डु पुत्र अर्जुन से युद्ध की इच्छा रखता हूँ। अवश्य ही, ये युद्ध में शोभा पाने वाले राजा शल्य श्रीकृष्ण के समान हैं, यदि ये मेरे सारथि का कार्य कर सकें तो तुम्हारी विजय निश्चित है। शत्रुओं से सुगमता पूर्वक जीते न जा सकने वाले राजा शल्य मेंरे सारथि हो जायँ और बहुत से छकड़े मेरे पास गीध की पाँखों से युक्त नाराच पहुँचाते रहें। राजेन्द्र! भरतश्रेष्ठ! उत्तम घोड़ों से जुते हुए अच्छे-अच्छे रथ सदा मेरे पीछे चलते रहें। ऐसी व्यवस्था होने पर मैं गुणों में पार्थ से बढ़ जाऊँगा। शल्य भी श्रीकृष्ण से बढ़े-चढ़े हैं और मैं भी अर्जुन से श्रेष्ठ हूँ। शत्रुवीरों का संहार करने वाले दशार्हवंशी श्रीकृष्ण अश्वविद्या के रहस्य को जिस प्रकार जानते हैं, उसी प्रकार महारथी शल्य भी अश्वविज्ञान के विशेषज्ञ हैं। बाहुबल में मद्रराज शल्य की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। उसी प्रकार अस्त्र विद्या में मेरे समान कोई भी धनुर्धर नहीं है। अश्वविज्ञान में भी शल्य के समान कोई नहीं है। शल्य के सारथि होने पर रथ अर्जुन के रथ से बढ़ जायगा। ऐसी व्यवस्था कर लेने पर जब मैं रथ में बैठूँगा, उस समय सभी गुणों द्वारा अर्जुन से बढ़ जाऊँगा।[3]

कुरुश्रेष्ठ! फिर तो मैं युद्ध में अर्जुन को अवश्य जीत लूँगा। इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता भी मेरा सामना नहीं कर सकेंगे। शत्रुओं को संताप देने वाले महाराज! में चाहता हूँ कि आपके द्वारा यही व्यवस्था हो जाय। मेरा यह मनोरथ पूर्ण किया जाय। अब आप लोगों का यह समय व्यर्थ नहीं बीतना चाहिये। ऐसा करने पर मेरी सम्पूर्ण इच्छाओं के अनुसार सहायता सम्पन्न हो जायगी। भारत! उस समय मैं संग्राम में जो कुछ करूँगा, उसे तुम स्वयं देख लोगो। युद्धस्थल में आये हुए समस्त पाण्डवों को निश्चय ही मैं सब प्रकार से जीत लूँगा। राजन समरांगण में देवता और असुर भी मेरा सामना नहीं कर सकते, फिर मनुष्य-योनि में उत्पन्न हुए पाण्डव तो कर ही कैसे सकते हैं।

संजय कहते हैं- राजन! युद्ध में शोभा पाने वाले कर्ण के ऐसा कहने पर आपके पुत्र दुर्योधन का मन प्रसन्न हो गया। फिर उसने राधा पुत्र कर्ण का पूर्णतः सम्मान करके उससे कहा। दुर्योधन बोला- कर्ण! जैसा तुम ठीक समझते हो उसी के अनुसार यह सारा कार्य मैं करूँगा। युद्धस्थल में अनेक तरकसों से भरे हुए बहुत से अश्वयुक्त रथ तुम्हारे पीछे-पीछे चलेंगे। संजय कहते हैं- महाराज! ऐसा कहकर आपके प्रतापी पुत्र राजा दुर्योधन ने महाराज शल्य के पास जाकर इस प्रकार कहा।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 31 श्लोक 17-35
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 31 श्लोक 36-54
  3. 3.0 3.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 31 श्लोक 55-73

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः