अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 79वें अध्याय में संजय ने अर्जुन द्वारा कौरव सेना के विध्वंस करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस

संजय बोले- राजन! तब 'बहुत अच्छा' कहकर वे अत्यन्त वीर सैनिक बड़ी उतावली के साथ अर्जुन को मार डालने के लिये एक साथ आगे बढ़े। कर्ण की आज्ञा का पालन करने वाले वे महारथी योद्धा युद्धस्थल में बाणों द्वारा अर्जुन को चोट पहुँचाने लगे। परंतु जैसे प्रचुर जल से भरा हुआ महासागर नदियों और नदों के जल को आत्मसात कर लेता है, उसी प्रकार अर्जुन ने समरांगण में उन सब वीरों को ग्रस लिया। वे कब धनुष पर उत्तम बाणों का संधान करते और कब उन्हें छोड़ते हैं, यह शत्रुओं को नहीं दिखायी देता था; किंतु अर्जुन के बाणों से विदीर्ण हुए हाथी, घोडे़ और मनुष्य प्राणशून्य हो धड़ाधड़ गिरते जा रहे थे। उस समय अर्जुन प्रलयकाल के सूर्य की भाँति तेजस्वी जान पड़ते थे। उनके बाण किरण-समूहों के समान सब ओर छिटक रहे थे। खींचा हुआ गाण्डीव धनुष सूर्य के मनोहर मण्डल-सा प्रतीत होता था। जैसे रोगी नेत्रों वाले मनुष्य सूर्य की ओर नहीं देख सकते, उसी प्रकार कौरव अर्जुन की ओर देखने में असमर्थ हो गये थे। कौरव महारथियों के चलाये हुए उत्तम बाणों को कुन्तीकुमार ने अपने शरसमूहों द्वारा हँसते-हँसते काट दिया। उनका गाण्डीव धनुष खींचा जाकर पूरा मण्डलाकार बन गया था और उसके द्वारा वे उन शत्रु-सैनिकों पर बारंबार बाण समूहों का प्रहार करते थे। राजेन्द्र! जैसे ज्येष्ठ और आषाढ़ के मध्यवर्ती प्रचण्ड किरणों वाले सूर्यदेव धरती के जलसमूहों को अनायास ही सोख लेते हैं, उसी प्रकार अर्जुन अपने बाणसमूहों का प्रहार करके आपकी सेना को भस्म करने लगे। उस समय कृपाचार्य उन पर बाण-समूहों की वर्षा करते हुए उनकी ओर दौड़े। इसी प्रकार कृतवर्मा, आपके पुत्र स्वयं राजा दुर्योधन और महारथी अश्वत्थामा भी पर्वत पर वर्षा करने वाले बादलों के समान अर्जुन पर बाणों की वृष्टि करने लगे।[1]

वध की इच्छा से आक्रमण करने वाले उन सब योद्धाओं द्वारा प्रयत्नपूर्वक चलाये गये उन उत्तम बाणों को महासमर में युद्धकुशल पाण्डुपुत्र अर्जुन ने तुरन्त ही अपने बाणों द्वारा काट डाला और उन सबकी छाती में तीन-तीन बाण मारे। खींचे हुए गाण्डीव धनुषरूपी पूर्ण मण्डल से युक्त अर्जुनरूपी सूर्य अपनी बाणरूपी प्रचण्ड किरणों से प्रकाशित हो शत्रुओं को संताप देते हुए ज्येष्ठ और आषाढ़ के मध्यवर्ती उस सूर्य के समान सुशोभित हो रहे थे, जिस पर घेरा पड़ा हुआ हो। तदनन्तर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने दस बाणों से अर्जुन को, तीन से भगवान श्रीकृष्ण को और चार से उनके चारों घोड़ों को घायल कर दिया। तत्पश्चात् वह ध्वजा पर बैठे हुए वानर के ऊपर बाणों तथा उत्तम नाराचों की वर्षा करने लगा। तब अर्जुन ने तीन बाणों से चमकते हुए उसके धनुष को, एक छुर के द्वारा सारथि के मस्तक को, चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को तथा तीन से उसके ध्वज को भी अश्वत्थामा के रथ से नीचे गिरा दिया। फिर अश्वत्थामा ने रोष में भरकर मणि, हीरा और सुवर्ण अलंकृत तथा तक्षक के शरीर की भाँति अरुण कांति वाले दूसरे बहुमूल्य धनुष को हाथ में लिया, मानो पर्वत के किनारे से विशाल अजगर को उठा लिया हो। अपने टूटे हुए धनुष को पृथ्वी पर फेंक कर अधिक गुणशाली अश्वत्थामा ने उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी और किसी से पराजित न होने वाले उन दोनों नरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण और अर्जुन को उत्तम बाणों द्वारा निकट से पीड़ित एवं घायल करना आरम्भ किया।

युद्ध के मुहाने पर खडे़ हुए कृपाचार्य, कृतवर्मा और आप के पुत्र दुर्योधन- ये तीन महारथी युद्धस्थल में अनेक बाणों द्वारा पाण्डवप्रवर अर्जुन को चोट पहुँचाने लगे, मानो बहुत-से मेघ सूर्यदेव पर टूट पड़े हों। सहस्र भुजाओं वाले कार्तवीर्य अर्जुन के समान पराक्रमी कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा कृपाचार्य के बाण-सहित धनुष, घोडे़, ध्वज और सारथि को भी उसी प्रकार बींध डाला, जैसे पूर्वकाल में वज्रधारी इन्द्र ने राजा बलि के धनुष आदि को क्षतिग्रस्त कर दिया था। उस महासमर में अर्जुन के बाणों द्वारा जब कृपाचार्य के आयुध नीचे गिरा दिये गये और ध्वज खण्डित कर दिया गया, उस समय किरीटधारी अर्जुन ने जैसे पहले भीष्म जी को सहस्रों बाणों से आवेष्टित कर दिया था, उसी प्रकार कृपाचार्य को हजारों बाणों से बांध-सा लिया। तत्पश्चात् प्रतापी अर्जुन ने गर्जना करने वाले आपके पुत्र दुर्योधन के ध्वज और धनुष को अपने बाणों द्वारा काट दिया। फिर कृतवर्मा के सुन्दर घोड़ों को मार डाला और उसकी ध्वजा के भी टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। इसके बाद अर्जुन ने बड़ी उतावली के साथ घोडे़, सारथि, धनुष और ध्वजाओं सहित रथों, हाथियों और अश्वों को भी मारना आरम्भ किया। फिर तो पानी में टूटे हुए पुल के समान आपकी वह विशाल सेना सब ओर बिखर गयी। तदनन्तर श्रीकृष्ण ने व्याकुल हुए समस्त शत्रुओं को अपने रथ के द्वारा शीघ्र ही दाहिने कर दिया।

फिर वृत्रासुर को मारने की इच्छा से आगे बढ़ने वाले इन्द्र के समान वेगपूर्वक आगे जाते हुए धनंजय पर दूसरे योद्धाओं ने ऊँचे किये ध्वज वाले सुसज्जित रथों द्वारा पुनः धावा किया। अर्जुन के सम्मुख जाते हुए उन शत्रुओं के सामने पहुँच का महारथी शिखण्डी, सात्यकि, नकुल और सहदेव ने उन्हें रोका और पैने बाणों द्वारा उन सबको विदीर्ण करते हुए भयंकर गर्जना की। तत्पश्चात् सृंजयों के साथ भिडे़ हुए कौरव वीर कुपित हो शीघ्रगामी और तेज बाणों द्वारा एक दूसरे पर उसी प्रकार चोट करने लगे, जैसे पूर्वकाल में देवताओं के साथ युद्ध करने वाले असुरों ने संग्राम में परस्पर प्रहार किया था। शत्रुओं को तापने वाले नरेश! हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथी योद्धा विजय चाहते हुए स्वर्गलोक में जाने के लिये उत्सुक हो शत्रुओं पर टूट पड़ते, उस स्वर से गर्जते और अच्छी तरह छोडे़ हुए बाणों द्वारा एक दूसरे को पृथक-पृथक गहरी चोट पहुँचाते थे। महाराज! उस महासमर में महामनस्वी श्रेष्ठ योद्धाओं ने परस्पर छोडे़ हुए बाणों द्वारा घोर अन्धकार फैला दिया। चारों दिशाएं, विदिशाएं तथा सूर्य की प्रभा भी उस अन्धकार से आच्छादित हो गयीं।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 66-79
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 80-95

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