अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 56वें अध्याय में संजय ने अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

कृष्ण और अर्जुन की वार्ता

संजय कहते हैं- सूतपुत्र कर्ण रणभूमि में कुपित हो पाण्डव सेना को और भीमसेन कौरव-सैनिकों को खदेड़ते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। जब इस प्रकार अद्भुत दिखायी देने वाला वह भंयकर संग्राम चल ही रहा था, उस समय दूसरी और विजयी वीरों में श्रेष्ठ अर्जुन सेना के मध्‍य भाग में बहुत से संशप्‍तकों का संहार करके भगवान श्रीकृष्‍ण से बोले- ‘जनार्दन! युद्ध करती हुई इस संशप्तक-सेना के पांव उखड़ गये हैं। ये संशप्‍तक महारथी अपने-अपने दल के साथ भागे जा रहे हैं। जैसे मृग सिंह की गर्जना सुनकर हतोत्‍साह हो जाते हैं, उसी प्रकार ये लोग मेरे बाणों की चोट सहन करने में असमर्थ हो गये हैं। उधर वह सृंजयों की विशाल सेना भी महासमर में विदीर्ण हो रही है। श्रीकृष्‍ण वह हाथी की रस्‍सी के चिह्न से युक्त बुद्धिमान कर्ण का ध्‍वज दिखायी दे रहा है। वह राजाओं की सेना के बीच सानन्‍द विचरण कर रहा है। जनार्दन! आप तो जानते ही हैं कि कर्ण कितना बलवान तथा पराक्रम प्रकट करने में समर्थ हैं। अत: रणभूमि में दूसरे महारथी उसे जीत नहीं सकते हैं। श्रीकृष्‍ण! जहाँ यह कर्ण हमारी सेना को खदेड़ रहा है, वहीं चलिये। रणभूमि में संशप्‍तकों को छोड़कर अब महारथी सूतपुत्र के ही पास रथ ले चलिये। मुझे यही ठीक जान पड़ता है अथवा आपको जैसा जंचे, वैसा कीजिये'। अर्जुन की यह बात सुनकर भगवान श्रीकृष्‍ण ने उनसे हंसते हुए से कहा- ‘पाण्‍डुनन्‍दन! तुम शीघ्र ही कौरव सैनिकों का संहार करो’ राजन! तदनन्‍तर श्रीकृष्‍ण के द्वारा हांके गये हंस के समान श्‍वेत रंग वाले घोड़े श्रीकृष्‍ण और अर्जुन को लेकर आपकी विशाल सेना में घुस गये। श्रीकृष्‍ण द्वारा संचालित हुए उन सुवर्णभूषित श्‍वेत अश्वों के प्रवेश करते ही आपकी सेना में चारों ओर भगदड़ मच गयी।

अर्जुन द्वारा संशप्तकों का संहार

जैसे कोई विमान स्‍वर्गलोक में प्रवेश कर रहा हो, उसी प्रकार चंचल पताकाओं से युक्त वह कपिध्‍वज रथ मेघों की गर्जना के समान घोष करता हुआ उस सेना में जा घुसा। उस विशाल सेना को विदीर्ण करके उसके भीतर प्रविष्‍ट हुए वे दोनों श्रीकृष्‍ण और अर्जुन अपने महान तेज से प्रकाशित हो रहे थे। उनके मन में शत्रुओं के प्रति क्रोध भरा हुआ था और उनकी आंखें रोष से लाल हो रही थीं। जैसे यज्ञ में ऋुत्विजों द्वारा विधिपूर्वक आवाहन किये जाने पर दोनों अश्विनीकुमार नामक देवता पदार्पण करते हैं, उसी प्रकार युद्धनिपुण वे श्रीकृष्‍ण और अर्जुन भी मानो आह्वान किये जाने पर रणयज्ञ में पधारे थे। जैसे विशाल वन में ताली की आवाज से कुपित हुए दो हाथी दौड़े आ रहे हों, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए वे दोनों पुरुषसिंह बड़े वेग से बढ़े आ रहे थे। अर्जुन रथसेना और घुड़सवारों के समूह में घुसकर पाशधारी यमराज के समान कौरव-सेना के मध्‍य भाग में विचरने लगे। भारत! युद्ध मे पराक्रम प्रकट करने वाले अर्जुन को आपकी सेना में घुसा हुआ देख आपके पुत्र दुर्योधन ने पुन: संशप्‍तगणों को उन पर आक्रमण करने के लिये प्रेरित किया। महाराज! तब एक हजार रथ, तीन सौ हाथी, चौदह हजार घोड़े और लक्ष्‍य वेध में निपुण, सर्वत्र विख्‍यात एवं शौर्यसम्‍पन्न दो लाख पैदल सैनिक साथ लेकर संशप्‍तक महारथी कुन्‍तीकुमार पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन को अपने बाणों की वर्षा से आच्‍छादित करते हुए उन पर चढ़ आये।

उस समय समरांगण में उनके बाणों से आच्‍छादित होते हुए शत्रुसैन्‍यसंहारक कुन्‍तीकुमार अर्जुन पाशधारी यमराज के समान अपना भंयकर रुप दिखाते और संशप्‍तकों का वध करते हुए अत्‍यन्‍त दर्शनीय हो रहे थे। तदनन्‍तर किरीटधारी अर्जुन के चलाये हुए विद्युत के समान प्रकाशमान सुवर्णभूषित बाणों द्वारा आच्‍छादित हो आकाश ठसाठस भर गया। प्रभो। किरीटधारी अर्जुन की भुजाओं से छूटकर सब ओर गिरने वाले बड़े-बड़े बाणों से आवृत होकर वहाँ का सारा प्रदेश सर्पों से व्‍याप्‍त सा प्रतीत हो रहा था। अमेय आत्‍मबल से सम्‍पन्न पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन सम्‍पूर्ण दिशाओं में सुवर्णमय पंख, स्‍वच्‍छ धार और झुकी हुई गांठ वाले बाणों की वर्षा कर रहे थे। वहाँ सब लोग यही समझने लगे कि ‘अर्जुन के तल शब्‍द (हथेली की अवाज) से पृथ्‍वी, आकाश, सम्‍पूर्ण दिशाएं समुद्र और पर्वत भी फटे जा रहे हैं। महारथी कुन्‍तीकुमार अर्जुन सबके देखते-देखते दस हजार संशप्तक नरेशों का वध करके तुरंत आगे बढ़ गये। जैसे इन्द्र ने दानवों का विनाश किया था, उसी प्रकार अर्जुन ने हमारी आंखों के सामने काम्‍बोजराज के द्वारा सुरक्षित सेना के पास पहुँचकर अपने बाणों द्वारा उसका संहार कर डाला। वे अपने भल्ल के द्वारा आततायी शत्रुओं के शस्त्र, हाथ, भुजा तथा मस्‍तकों को बड़ी फुर्ती से काट रहे थे। जैसे सब ओर से उठी हुई आंधी के उखाड़े हुए अनेक शाखाओं वाले वृक्ष धराशायी हो जाते हैं, उसी प्रकार अपने शरीर का एक-एक अवयव कट जाने से शस्त्रहीन शत्रु भूतल पर गिर पड़ते थे।

तब हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों के समूहों का संहार करने वाले अर्जुन पर काम्‍बोजराज सुदक्षिण का छोटा भाई अपने बाणों की वर्षा करने लगा।[2] उस समय अर्जुन ने बाण-वर्षा करने वाले उस वीर की परिघ के समान मोटी और सुदृढ़ भुजाओं को दो अर्धचन्‍द्राकार बाणों से काट डाला और एक छुरे के द्वारा पूर्ण चन्द्रमा के समान मनोहर मुख वाले उसके मस्‍तक को भी धड़ से अलग कर दिया। फिर तो वह रक्त का झरना-सा बहाता हुआ अपने वाहन से नीचे गिर पड़ा, मानो मैनसिल के पहाड़ का शिखर वज्र से विदीर्ण होकर भूतल पर आ गिरा हो। उस समय सब लोगों ने देखा कि सुदक्षिण का छोटा भाई काम्‍बोजदेशीय वीर जो देखने में अत्‍यन्‍त प्रिय, कमल-दल के समान नेत्रों से सुशोभित तथा सोने के खम्‍भे के समान ऊंचा कद का था, मारा जाकर विदीर्ण हुए सुवर्णमय पर्वत के समान धरती पर पड़ा है। तदनन्‍तर पुन: अत्‍यन्‍त घोर एवं अभ्‍दुत युद्ध होने लगा। वहाँ युद्ध करते हुए योद्धाओं की विभिन्न अवस्‍थाएं प्रकट होने लगीं।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 71-90
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 91-110
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 111-147

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