अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 81वें अध्याय में अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों के संहार का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

अर्जुन द्वारा संशप्तक वीरों का वध

संजय कहते हैं- राजन! जिनकी ध्वजा में श्रेष्ठ कपि का चिह्न है, उन वीर अर्जुन को महावेगशाली अश्वों द्वारा आगे बढ़ते देख कौरव दल के नब्बे वीर रथियों ने युद्ध के लिये धावा किया। उन नरव्याघ्र संशप्तक वीरों ने परलोक सम्बन्धी घोर शपथ खाकर पुरुषसिंह अर्जुन को रणभूमि में चारों ओर से घेर लिया। श्रीकृष्ण ने सोने के आभूषणों से विभूषित तथा मोती की जालियों से आच्छादित श्वेत रंग के महान वेगशाली अश्वों को कर्ण के रथ की ओर बढ़ाया। तत्पश्चात् कर्ण के रथ की ओर जाते हुए शत्रुसूदन धनंजय को बाणों की वर्षा से घायल करते हुए संशप्तक रथियों ने उन पर आक्रमण कर दिया। सारथि, धनुष और ध्वजसहित उतावली के साथ आक्रमण करने वाले उन सभी नब्बे वीरों को अर्जुन ने अपने पैने बाणों द्वारा मार गिराया। किरीटधारी अर्जुन के चलाये हुए नाना प्रकार के बाणों से मारे जाकर वे संशक्त रथी पुण्यक्षय होने पर विमानसहित स्वर्ग से गिरने वाले सिद्धों के समान रथ से नीचे गिर पड़े।

अर्जुन के बल से कौरव सेना का रणभूमि से भागना

तदनन्तर रथ, हाथी और घोड़ों सहित बहुत-से कौरव वीर निर्भय हो भरतभूषण कुरुश्रेष्ठ अर्जुन का सामना करने के लिये चढ़ आये। आपके पुत्रों की उस विशाल सेना में मनुष्य और अश्व तो थक गये थे, परंतु बड़े-बड़े़ हाथी उद्धत होकर आगे बढ़ रहे थे। उस सेना ने अर्जुन की गति रोक दी। उन महाधनुर्धर कौरवों ने कुरुकुलनन्दन अर्जुन को शक्ति, ऋष्टि, तोमर, प्रास, गदा, खड्ग और बाणों के द्वारा ढक दिया। परन्तु जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार पाण्डुपुत्र अर्जुन ने आकाश में सब और फैली हुई उस बाणवर्षा को छिन्न-भिन्न कर डाला। तब आपके पुत्र दुर्योधन की आज्ञा से म्लेच्छ सैनिक तेरह सौ मतवाले हाथियों के साथ आ पहुँचे और पार्श्व भाग में खडे़ हो अर्जुन को घायल करने लगे। उन्होंने रथ पर बैठे हुए अर्जुन को कर्णी, नालीक, नाराच, तोमर, मूसल, प्रास, भिंदिपाल और शक्तियों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। हाथियों की सूंडों द्वारा की हुई उस अनुपम शस्त्र वर्षा को अर्जुन ने तीखे भल्लों तथा अर्धचन्द्रों से नष्ट कर दिया। फिर नाना प्रकार के चिह्न वाले उत्तम बाणों द्वारा पताका, ध्वज और सवारों सहित उन सभी हाथियों को उसी तरह मार गिराया, जैसे इन्द्र ने वज्र के आघातों से पर्वतों को धराशायी कर दिया था। सोने के पंख वाले बाणों से पीड़ित हुए वे सुवर्ण मालाधारी बड़े-बड़े़ गजराज मारे जाकर आग की ज्वालाओं से युक्त पर्वतों के समान धरती पर गिर पड़े। प्रजानाथ! तदनन्तर गाण्डीव धनुष की टंकारध्वनि बड़े जोर-जोर से सुनायी देने लगी। साथ ही चिंघाड़ते और आर्तनाद करते हुए मनुष्यों, हाथियों तथा घोड़ों की आवाज भी वहाँ गूंज उठी। राजन! घायल हाथी सब ओर भागने लगे। जिनके सवार मार दिये गये थे, वे घोडे़ भी दसों दिशाओं में दौड़ लगाने लगे। महाराज! गन्धर्व नगरों के समान सहस्रों विशाल रथ रथियों और घोड़ों से हीन दिखायी देने लगे। राजेन्द्र! अर्जुन के बाणों से घायल हुए अश्वारोही भी जहाँ-तहाँ इधर-उधर भागते दिखाये दे रहे थे। उस समय पाण्डुपुत्र अर्जुन की भुजाओं का बल देखा गया, उन्होंने अकेले ही युद्ध में रथों, सवारों और हाथियों को भी परास्त कर दिया।[1]

भीम द्वारा कौरव सेना का संहार करना

नरेश्वर! भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर अर्जुन को तीन अंगों वाली विशाल सेना से घिरा देख भीमसेन मरने से बचे हुए आपके कतिपय रथियों को छोड़कर बड़े वेग से धनंजय के रथ की ओर दौडे़। उस समय आपके अधिकांश सैनिक मारे जा चुके थे, बहुत-से घायल होकर आतुर हो गये थे। फिर तो कौरव सेना में भगदड़ मच गयी। यह सब देखते हुए भीमसेन अपने भाई अर्जुन के पास आ पहुँचे। भीमसेन अभी थके नहीं थे, उन्होंने हाथ में गदा ले उस महासमर में अर्जुन द्वारा मारे जाने से बचे हुए महाबली घोड़ों और सवारों का संहार कर डाला। मान्यवर नरेश! तदनन्तर भीमसेन ने कालरात्रि के समान अत्यन्त भयंकर, मनुष्यों, हाथियों और घोड़ों को काल का ग्रास बनाने वाली, परकोटों, अट्टालिकाओं और नगर द्वारों को भी विदीर्ण कर देने वाली अपनी अति दारुण गदा का वहाँ मनुष्यों, गजराजों तथा अश्वों पर तीव्र वेग से प्रहार किया। उस गदा ने बहुत से घोड़ों और घुड़सवारों का संहार कर डाला। पाण्डुपुत्र भीम ने काले लोहे का कवच पहने हुए बहुत-से मनुष्यों और अश्वों को भी गदा से मार गिराया। वे सब-के-सब आर्तनाद करते हुए प्राणशून्य होकर गिर पड़े। घायल हुए कौरव सैनिक खून से नहाकर दांतों से ओठ चबाते हुए धरती पर सो गये थे, किन्हीं का माथा फट गया था, किन्हीं की हड्डियां चूर-चूर हो गयी थीं और किन्हीं के पांव उखड़ गये थे। वे सब-के-सब मांसभक्षी पशुओं के भोजन बन गये थे। दस हजार घोड़ों और बहुसंख्यक पैदलों का संहार करके क्रोध में भरे हुए भीमसेन हाथ में गदा लेकर इधर-उधर दौड़ने लगे। भरतनन्दन! भीमसेन को गदा हाथ में लिये देख आपके सैनिक कालदण्ड लेकर आया हुआ यमराज मानने लगे। मतवाले हाथी के समान अत्यन्त क्रोध में भरे हुए पाण्डुनन्दन भीमसेन ने शत्रुओं की गजसेना में प्रवेश किया, मानों मगर समुद्र में जा घूसा हो। विशाल गदा हाथ में ले अत्यन्त कुपित हो भीमसेन ने हाथियों की सेना में घूसकर उसे क्षणभर में यमलोक पहुँचा दिया। कवचों, सवारों और पताकाओं सहित मतवाले हाथियों को हमने पंखधारी पर्वतो के समान धराशायी होते देखा था। महाबली भीमसेन उस गजसेना का संहार करके पुनः अपने रथ पर आ बैठे और अर्जुन के पीछे-पीछे चलते रहे।[2]

अर्जुन के पराक्रम से कौरव सेना की स्थिति

महाराज! उस समय भीमसेन और अर्जुन के अस्त्र-शस्त्रों से घिरी हुई आपकी अधिकांश सेना उत्साहशून्य-विमुख और जड़वत हो गयी। उस सेना को जड़वत, उद्योग शून्य हुई देख अर्जुन ने प्राणों को संतप्त कर देने वाले बाणों द्वारा उसे आच्छादित कर दिया। युद्धस्थल में गाण्डीवधारी अर्जुन के बाणों से छिदे हुए मनुष्य, घोड़े, रथ और हाथी केसरयुक्त कदम्ब पुष्पों के समान सुशोभित हो रहे थे। नरेश्वर! तदनन्तर मनुष्यों, घोड़ों, और हाथियों के प्राण लेने वाले अर्जुन के बाणों द्वारा हताहत होते हुए कौरवों का महान आर्तनाद प्रकट होने लगा। महाराज! उस समय अत्यन्त भयभीत हो हाहाकार मचाती और दूसरे की आड़ में छिपती हुई आपकी सेना अलातचक्र के समान वहाँ चक्कर काटने लगी। तत्पश्चात् कौरवों की सेना के साथ महान युद्ध होने लगा। उसमें कोई भी ऐसा रथ, सवार, घोड़ा अथवा हाथी नहीं था, जो अर्जुन के बाणों से विदीर्ण न हो गया हो। उस समय सारी सेना जलती हुई सी दिखायी देती थी। बाणों से उसके कवच छिन्न-भिन्न हो गये थे तथा वह खून से लथपथ हो खिले हुए अशोकवन के समान प्रतीत होती थी।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 81 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 81 श्लोक 21-42

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