श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 60वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]

श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन करना

संजय कहते हैं- राजन! श्रीकृष्ण अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन करते हुए कहते हैं- पार्थ! ‘वीर दुर्योधन, अश्वत्थामा, कृपाचार्य तथा कर्ण के बाणों का वेग पर्वतों को भी विदीर्ण कर सकता है। ‘कर्ण ने शत्रुओं को संताप देने वाले, शीघ्रता पूर्वक हाथ चलाने वाले, बलवान विद्वान और युद्धकुशल राजा युधिष्ठिर को युद्ध से विमुख कर दिया है। ‘धृतराष्ट्र के महाबली शूरवीर पुत्रों के साथ रहकर राधा पुत्र कर्ण रणभूमि में पाण्डव श्रेष्ठ युधिष्ठिर को अवश्य पीड़ा दे सकता है। ‘संग्राम में जूझते हुए संयतचित्त कुन्तीकुमार युधिष्ठिर के कवच को इन दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र-पुत्रों तथा अन्य महारथियों ने नष्ट कर दिया है। ‘भरतकुल शिरोमणि राजा युधिष्ठिर उपवास करने से अत्यन्त दुर्बल हो गये हैं। ये ब्राह्मबल में स्थित हैं, क्षात्रबल प्रकट करने में समर्थ नहीं हैं। ‘शत्रुओं को तपाने वाले ये पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिर कर्ण के साथ युद्ध करके प्राण संकट की अवस्था में पहुँच गये हैं। ‘पार्थ! मुझे जान पड़ता है कि महाराज युधिष्ठिर जीवित नहीं है क्योंकि अमर्षशील शत्रुदमन भीमसेन संग्राम में विजय से उल्लसित हो बड़े-बड़े शंख बजाते और बारंबार गर्जते हुए धृतराष्ट्र पुत्रों का सिंहनाद चुपचाप सहन करते हैं।[1]

‘भरतश्रेष्ठ! वह कर्ण महाबली धृतराष्ट्र पुत्रों को यह प्रेरणा दे रहा है कि तुम सब लोग मिलकर पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को मार डालो। ‘पार्थ! कौरव महारथी स्थूणाकर्ण, इन्द्रजाल, पाशुपत तथा अन्य प्रकार के शस्त्र समूहों से राजा युधिष्ठिर को आच्छादित कर रहे हैं। ‘भारत! राजा युधिष्ठिर आतुर एवं सेवा के योग्य कर दिये गये है; जैसा कि पाण्‍डवों सहित पांचाल उनके पीछे-पीछे सेवा के लिये जा रहे हैं। ‘शीघ्रता के अवसर पर शीघ्रता करने वाले सम्पूर्ण शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ बलवान पाण्डव योद्धा युधिष्ठिर का ऐसी अवस्था में उद्धार करने के लिये उत्सुक दिखायी देते हैं, मानो वे पाताल में डूब रहे हों। ‘पार्थ! राजा का ध्वज नहीं दिखायी देता है। कर्ण ने अपने बाणों द्वारा उसे काट डाला है। भरत नन्दन! प्रभो! यह कार्य उसने नकुल-सहदेव, सात्यकि, शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, भीमसेन, शतानीक, समस्त पांचाल-सैनिक तथा चेदिदेशीय योद्धाओं के देखते-देखते किया है ‘कुन्तीनन्दन! जैसे हाथी कमलों से भरी हुई पुष्करिणी को मथ डालता है, उसी प्रकार यह कर्ण रणभूमि में अपने बाणों द्वारा पाण्डव सेना का विध्वंस कर रहा है।[2]

‘पाण्डु नन्दन! ये तुम्हारे रथी भागे जा रहे हैं। पार्थ! देखो, देखो, ये महारथी भी कैसे खिसके जा रहे हैं। ‘भारत! कर्ण के बाणों से मारे गये ये मतवाले हाथी आतीनाद करते हुए दसों दिशाओं में भाग रह हैं। ‘कुन्ती कुमार! रणभूमि में शत्रुसूदन कर्ण के द्वारा खदेड़ा हुआ यह रथियों का समूह सब ओर पलायन कर रहा है। ‘ध्वज धारण करने वाले रथियों में श्रेष्ठ अर्जुन! देखो, सूतपुत्र के रथ पर कैसी ध्वजा फहरा रही है हाथी की रस्सी़ के चिह्न से युक्त उसकी पताका रणभूमि में यत्र-तत्र कैसे विचरण कर रही है। ‘वह राधापुत्र कर्ण सैकड़ों बाणों की वर्षा करके तुम्हारी सेना का संहार करता हुआ भीमसेन के रथ पर धावा कर रहा है। ‘जैसे देवराज इन्द्र दैत्यों को खदेड़ते और मारते हैं, उसी प्रकार महासमर में कर्ण के द्वारा खदेड़े और मारे जाने वाले इन पांचाल महारथियों को देखो। ‘यह कर्ण रणभूमि में पांचालो, पाण्डवों और सृंजयों को जीतकर अब तुम्हें परास्त करने के लिये सारी दिशाओं में दृष्टि पात कर रहा है; ऐसा मेरा मत है। ‘अर्जुन! देखो, जैसे देवराज इन्द्र शत्रु पर विजय पाकर देवसमूहों से घिरे हुए शोभा पाते हैं, उसी प्रकार यह कर्ण कौरवों के बीच में अपने धनुष को खींचता हुआ सुशोभित हो रहा है। ‘कर्ण का पराक्रम देखकर ये कौरव योद्धा रणभूमि में पाण्डवों और सृंजयों को सब ओर से डराते हुए जोर-जोर से गर्जना करते हैं। ‘मानद! यह राधापुत्र कर्ण महासमर में पाण्डव सैनिकों को सर्वथा भयभीत करके अपनी सम्पूर्ण सेनाओं से इस प्रकार कह रहा है। ‘कौरवो! तुम्हारा कल्याण हो। दौड़ो और वेगपूर्वक धावा करो। आज युद्धस्थल में कोई सृंजय तुम्हारे हाथ से जिस प्रकार भी जीवित न छूटने पावे, सावधान होकर वैसा ही प्रयत्न करो। हम सब लोग तुम्हारे पीछे-पीछे चलेंगे। ‘ऐसा कहकर यह कर्ण पीछे से बाण-वर्षा करता हुआ गया है। पार्थ! रणभूमि में श्वेतच्छत्र से विराजमान कर्ण को देखो। वह चन्द्रमा से सुशोभित उदयाचल के समान जान पड़ता है।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 60 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 60 श्लोक 21-40

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