सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 25वें अध्याय में सुतसोम और शकुनि के घोर युद्ध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! दूसरी ओर शकुनि अत्यन्त कुपित हो अपने तीखे बाणों से सुतसोम को घायल करके भी उसे विचलित न कर सका। ठीक उसी तरह, जैसे जल का प्रवाह पर्वत को नहीं हिला सकता। भरतनन्दन! सुतसोम ने अपने पिता के अत्यन्त बैरी शकुनि को सामने देखकर उसे कई हजार बाणों से आच्छादित कर दिया। परंतु शकुनि ने तुरंत ही दूसरे बाणों द्वारा सुतसोम के बाणों को काट डाला। वह शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने वाला, विचित्र युद्ध में कुशल और युद्धस्थल में विजय श्री से सुशोभित होने वाला था। उसने समरांगण में अपने तीखे बाणों से सुतसोम के बाणों का निवारण करके अत्यन्त कुपित हो तीन बाणों द्वारा सुतसोम को भी घायल कर दिया। महाराज! आपके साले ने सुतसोम के घोड़ों को तथा ध्वज और सारथि को भी अपने बाणों से तिल-तिल करके काट डाला; इससे सब लोग हर्ष सूचक कोलाहल करने लगे।

मान्यवर! घोड़े, रथ और ध्वज के नष्ट हो जाने पर धनुर्धर सुतसोम अपने हाथ में श्रेष्ठ धनुष लिये रथ से उतर कर धरती पर खड़ा हो गया। फिर उसने शिला पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले बहुत से बाण छोड़े। उन बाणों द्वारा समरभूमि में उसने आपके साले के रथ को ढक दिया। उसके बाण समूह टिड्डी दलों के समान जान पड़ते थे। उन्हें अपने रथ के समीप देखकर भी महारथी सुबल पुत्र शकुनि के मन में तनिक भी व्यथा नहीं हुई। उस महायशस्वी वीर ने अपने बाण समूहों द्वारा सुतसोम के सारे बाणों को पूर्णतया मथ डाला। सुतसोम जो वहाँ पैदल होकर भी रथ पर बैठे हुए शकुनि के साथ युद्ध कर रहा था। उसके इस अविश्वसनीय और अद्भुत कर्म को देखकर वहाँ खड़े हुए समस्त योद्धा तथा आकाश में स्थित हुए सिद्ध गण भी बहुत संतुष्ट हुए। राजन! उस समय शकुनि ने अत्यन्त वेगाशाली और झुकी हुई गाँठ वाले तीखे भल्लों द्वारा सुतसोम के धनुष, तरकस तथा अन्य सब उपकरणों को भी नष्ट कर दिया। रथ तो नष्ट हो ही चुका था, जब धनुष भी कट गया, तब सुतसोम ने वैदूर्यमणि तथा नील कमल के समान श्याम रंग वाले, हाथी के दाँत की बनी हुई मूठ से युक्त खड्ग को ऊपर उठाकर बड़े जोर से गर्जना की। बुद्धिमान सुतसोम के उस निर्मल आकाश के समान कान्ति वाले खड्ग को घुमाया जाता देख शकुनि ने उसे अपने लिए कालदण्ड के समान माना।

शकुनि द्वारा सुतसोम की पराजय

महाराज! सुतसोम शिक्षा और बल दोनों से सम्पन्न था, वह खड्ग लेकर सहसा उसके चौदह[2]। मण्डल (पैंतरे) दिखाता हुआ रणभूमि में सब ओर विचरने लगा। उसने युद्धस्थल में भ्रान्त, उद्भ्रान्त, आबिद्ध, आप्लुत, प्लुत, सूत, सम्पात और समुदीर्ण आदि गतियों को दिखाया तब पराक्रमी सुबल पुत्र ने सुतसोम पर बहुत से बाण चलाये। परंतु उसने अपने उत्तम खड्ग से निकट आते ही उन सब बाणों को काट गिराया। महाराज! इससे शत्रुओं का संहार करने वाले सुबल पुत्र शकुनि को बड़ा क्रोध हुआ। उसने सुतसोम पर विषधर सर्पों के समान बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। परंतु गरुड़ के तुल्य पराक्रमी सुतसोम ने अपने शिक्षा और बल के अनुसार युद्ध में फुर्ती दिखाते हुए खड्ग से उन सब बाणों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। राजन! सुतसोम जब अपनी चमकीली तलवार को मण्डलाकार घुमा रहा था, उसी समय शकुनि ने तीखे क्षुरप्र से उनके टुकड़े कर दिये।[1] वह महान खड्ग कटकर सहसा पृथ्वी पर गिर पड़ा। भारत! सुन्दर मूठवाले उस खड्ग का आधा भाग सुतसोम के हाथ में ही रह गया। अपने उस खड्ग को कटा हुआ जान महारथी सुतसोम ने छः पग ऊँचे उछलकर उसके शेष भाग को ही शकुनि पर दे मारा। वह स्वर्ण और हीरे से विभूषित कटा हुआ खड्ग रणभूमि में महामना शकुनि के धनुष को प्रत्यन्चा सहित काटकर तुरंत ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। तत्पश्चात सुतसोम श्रुतकीर्ति के विशाल रथ पर चढ़ गया।

शकुनि द्वारा पाण्डव-सेना का विनाश करना

उधर शकुनि भी दूसरा अत्यन्त दुर्जय एवं भयंकर धनुष लेकर बहुत से शत्रुओं का संहार करता हुआ पाण्डव-सेना की ओर चल दिया। प्रजानाथ! सुबल पुत्र शकुनि को समरभूमि में निर्भय से विचरते देख पाण्डव-दल में महान सिंहनाद होने लगा। महामना शकुनि ने घमंड में भरे हुए उन शस्त्र सम्पन्न महान सैनिको को भगा दिया। यह सब हमने अपनी आँखों से देखा। राजन! जिस प्रकार देवराज इन्द्र ने दैत्यों की सेना को कुचल दिया था, उसी प्रकार सुबल पुत्र शकुनि ने पाण्डव-सेना का विनाश कर डाला।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 25 श्लोक 20-36
  2. भ्रान्त,उद्भ्रान्त आदि सात गतियों को अनुलो और विलोम क्रम से दिखाने पर उसके चौदह भेद हो जाते हैं। भ्रान्त और उद्भ्रान्त आदि की व्याख्या पहले पृष्ठ 3696 में की जा चुकी है।
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 25 श्लोक 37-43

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