अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 80वें अध्याय में अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

अर्जुन के पराक्रम से रणभूमि की स्थिति

संजय कहते हैं- राजन! कौरव सेना के प्रमुख वीरों ने कुन्तीपुत्र भीमसेन पर धावा किया था और वे उस सैन्य सागर में डूबते-से जान पड़ते थे। भारत! उस समय उनका उद्धार करने के लिये अर्जुन ने सूतपुत्र की सेना को छोड़कर उधर ही आक्रमण किया और बाणों द्वारा शत्रुपक्ष के बहुत-से वीरों को यमलोक भेज दिया। तदनन्तर अर्जुन के बाणजाल आकाश के विभिन्न भागों में छा गये। वे तथा और भी बहुत-से बाण आपकी सेना का संहार करते दिखायी दिये। जहाँ पक्षियों के झुंड उड़ा करते थे, उस आकाश को बाणों से भरते हुए महाबाहु धनंजय वहाँ कौरव-सैनिकों के काल बन गये। पार्थ ने भल्लों, क्षुरप्रों तथा निर्मल नाराचों द्वारा शत्रुओं का अंग-अंग काट डाला और उनके मस्तक भी धड़ से अलग कर दिये। जिनके शरीरों के टुकड़े-टुकडे़ हो गये थे, कवच कटकर गिर गये थे और मस्तक भी काट डाले गये थे, ऐसे बहुत-से योद्धा वहाँ पृथ्वी पर गिरे थे और गिरते जा रहे थे, उन सबकी लाशों से वहाँ की भूमि सब ओर से पट गयी थी। जिन पर अर्जुन के बाणों की बारंबार मार पड़ी थी, वे रथ के घोड़े, रथ और हाथी छिन्न-भिन्न और विध्यस्त हो गये थे; उनका एक-एक अंग अथवा अवयव कटकर अलग हो गया था। इन सबके द्वारा वहाँ की भूमि आच्छादित हो गयी थी। राजन! उस समय रणभूमि महावैतरणी नदी के समान अत्यन्त दुर्गम, बहुत ऊॅची-नीची और भयंकर हो गयी थी, उसकी ओर देखना भी अत्यन्त कठिन जान पड़ता था। योद्धाओं के टूटे-फूटे रथों से रणभूमि ढक गयी थी। उन रथों के ईषादण्ड, पहिये और धुरे खण्डित हो गये थे। कुछ रथों के घोड़े और सारथि जीवित थे और कुछ के अश्व एवं सारथि मार डाले गये थे।

किरीटधारी अर्जुन के उत्तम बाणों से आहत होकर नित्य मद बहाने वाले, कवचधारी एवं मंगलमय लक्षणों से युक्त चार सौ रोषभरे हाथी धराशायी हो गये। उन हाथियों पर सुवर्णमय कवच और सोने के आभूषण धारण करने वाले योद्धा बैठे थे और क्रूर स्वभाव वाले महावत उन्हें अपने पैरों की एड़ियों तथा अंगूठों से आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे। उन सबके साथ गिरे हुए वे हाथी जीव-जन्तुओं सहित धराशायी हुए महान पर्वत के शिखरों के समान सब और पड़े थे। अर्जुन के बाणों से विशेष घायल होकर गिरे हुए उन गजराजों के शरीरों से रणभूमि ढक गयी थी। जैसे अंशुमाली सूर्य बादलों को छिन्न-भिन्न करते हुए प्रकाशित हो उठते हैं, उसी प्रकार अर्जुन का रथ सब ओर से मेघों की घटा के समान काले मदस्त्रावी गजराजों को विदीर्ण करता हुआ वहाँ आ पहुँचा था। मारे गये हाथियों, मनुष्यों और घोड़ों से; टूट-फूटकर बिखरे हुए अनेकानेक रथों से; शस्त्र, यन्त्र तथा कवचों से रहित हुए युद्धकुशल प्राणशून्य योद्धाओं से और इधर-उधर फेंके हुए आयुधों से अर्जुन ने वहाँ के मार्ग को आच्छादित कर दिया था। उन्होंने आकाश में मेघ के समान भयानक वज्रपात के शब्द को तिरस्कृत करने वाले भयंकर स्वर में अपने विशाल गाण्डीव धनुष की टंकार की। तदनन्तर अर्जुन के बाणों से आहत हुई कौरव सेना समुद्र में उठे तूफ़ान से टकराये हुए जहाज़ के समान विदीर्ण हो उठे।[1]

अर्जुन के बाणों से कौरव सेना का विध्वस्त होना

गाण्डीव धनुष से छूटे हुए प्राण लेने वाले नाना प्रकार के बाण जो अलात, उल्का और बिजली के समान प्रकाशित हो रहे थे, आपकी सेना को दग्ध करने लगे। जैसे रात्रिकाल में किसी महान पर्वत पर बांसों का वन जल रहा हो, उसी प्रकार अर्जुन के बाणों से पीड़ित हुई आपकी विशाल सेना आग की लपटों से घिरी हुई-सी प्रतीत हो रही थी। किरीटधारी अर्जुन ने आपकी सेना को पीस डाला, जला दिया, विध्वस्त कर दिया, बाणों से बींध डाला और सम्पूर्ण दिशाओं में भगा दिया। जैसे विशाल वन में दावानल से डरे हुए मृगों के समूह इधर-उधर भागते हैं, उसी प्रकार सव्यसांची अर्जुन के बाण रूपी अग्नि से जलते हुए कौरव सैनिक चारों और चक्कर काट रहे थे। रणभूमि में उद्विग्न हुई सारी कौरव सेना ने महाबाहु भीमसेन को छोड़कर युद्ध से मुंह मोड़ लिया। इस प्रकार कौरव सैनिकों के भाग जाने पर कभी पराजित न होने वाले अर्जुन भीमसेन के पास पहुँचकर दो घड़ी तक रुके रहे। फिर भीम से मिलकर उन्होंने कुछ सलाह की और यह बताया कि राजा युधिष्ठिर के शरीर से बाण निकाल दिये गये हैं, अतः वे इस समय स्वस्थ हैं।[2]

कौरव योद्धाओं का अर्जुन को चारों ओर से घेरना

रथ की घर्घराहट से पृथ्वी और आकाश को गुंजाते हुए वहाँ से चल दिये। इसी समय आपके दस वीर पुत्रों ने, जो योद्धाओं में श्रेष्ठ और दुःशासन से छोटे थे, अर्जुन को चारों और से घेर लिया। भरतनन्दन! जैसे शिकारी लुआठों से हाथी को मारते हैं, उसी प्रकार अपने धनुष को ताने हुए उन शूरवीरों ने नाचते हुए-से वहाँ अर्जुन को बाणों द्वारा व्यथित कर डाला। उस समय भगवान श्रीकृष्ण यह सोचकर कि अर्जुन द्वारा इन सबको यमलोक में भेज देना उचित नहीं है, रथ के द्वारा उन्हें शीघ्र ही अपने दाहिने भाग में कर दिया। जब अर्जुन का रथ दूसरी ओर जाने लगा, तब दूसरे मूढ़ कौरव योद्धा लोग उन पर टूट पड़े।

अर्जुन द्वारा कौरव योद्धाओं का संहार करके आगे बढ़ना

उस समय कुन्तीकुमार अर्जुन ने उन आक्रमणकारियों के ध्वज, अश्व, धनुष और बाणों को नाराचों और अर्धचन्द्रों द्वारा शीघ्र ही काट गिराया। तदनन्तर अन्य बहुत-से भल्लों द्वारा उन सबके मस्तक काट डाले। वे मस्तक रोष से लाल हुए नेत्रों से युक्त थे और उनके ओठ दांतो तले दबे हुए थे। पृथ्वी पर गिरे हुए उनके वे मुख बहुसंख्यक कमल पुष्पों के समान सुशोभित हो रहे थे। भारत! शत्रुओं का संहार करने वाले अर्जुन सुवर्णमय पंख वाले महान वेगशाली दस भल्लों द्वारा सोने के अंगदों से विभूषित उन दसों वीरों को बींधकर आगे बढ़ गये।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 80 श्लोक 1-16
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 80 श्लोक 17-32

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