धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत नौवें अध्याय में धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना=

वैशम्पायन जी कहते हैं - इस प्रकार विलाप करके अत्यन्त दुखी और शोक से व्याकुलचित्त हो धृतराष्ट्र ने पुनः संजय से इस प्रकार कहा। धृतराष्ट्र बोले - संजय! जिसने हमारे कार्य के लिये युद्ध स्थल में सम्पूर्ण काम्बोज निवासियों, अम्बष्ठों, केकयों, गान्धारों और विदेहों पर विजय पायी। इन सबको जीतकर जिसने दुर्योधन की वृद्धि के लिये समस्त भूमण्डल को जीत लिया था। वही सामर्थ्यशाली कर्ण अपने बाहुबल से सुशोभित होने वाले शूरवीर पाण्डवों द्वारा समरांगण में परास्त हो गया।[1] संजय! युद्ध स्थल में किरीटधारी अर्जुन के द्वारा उस महाधनुर्धर कर्ण के मारे जाने पर कौन-कौन से वीर ठहर सके। यह मुझे बताओ। तात! कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि कर्ण को अकेला छोड़ दिया गया हो और समस्त पाण्डवों ने मिलकर उसे मार डाला हो; क्योंकि तुम पहले बता चुके हो कि वीर कर्ण मारा गया। समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ भीष्म जब युद्ध नहीं कर रहे थे, उस दशा में शिखण्डी ने अपने उत्तम बाणों द्वारा उन्हें समरांगण में मार गिराया। इसी प्रकार जब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य युद्ध स्थल में अपने सारे अस्त्र-शस्त्रों को नीचे डालकर ब्रह्म का ध्यान लगाते हुए बैठे थे, उस अवस्था में द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न ने उन्हें बहुसंख्यक बाणों से ढक दिया और तलवार उठाकर उनका सिर काट लिया।[2]

संजय! इस प्रकार ये दोनों वीर छिद्र मिल जाने से विशेषतः छल पूर्वक मारे गये। मैंने यह समाचार भी सुना था कि भीष्म और द्रोणाचार्य मार गिराये गये, परंतु मैं तुमसे यह सच्ची बात कहता हूँ कि ये भीष्म और द्रोण यदि समरभूमि में न्याय पूर्वक युद्ध करते होते तो इन्हें साक्षात इन्द्र भी नहीं मार सकते थे। मैं पूछता हूँ कि युद्ध में दिव्यास्त्रों की वर्षा करते हुए इन्द्र के समान पराक्रमी वीर कर्ण को मृत्यु कैसे छू सकी? जिसे देवराज इन्द्र ने दो कुण्डलों के बदले में विद्युत के समान प्रकाशित होने वाली तथा शत्रुओं का नाश हरने में समर्थ सुवर्ण भूषित दिव्य शक्ति प्रदान की थी, जिसके तूणीर में सर्प के समान मुख वाला दिव्य, सुवर्ण भूषित, कंकपत्र युक्त एवं युद्ध में शत्रुसंहारक तीखा बाण शयन करता था, जो भीष्म, द्रोण आदि महारथी वीरों की भी अवहेलना करता था, जिसने जमदग्नि नन्दन परशुराम जी से अत्यन्त घोर ब्रह्मास्त्र की शिक्षा पायी थी और जिस महाबाहु वीर ने सुभद्रा कुमार के बाणों से पीड़ित हुए द्रोणाचार्य आदि को युद्ध से विमुख हुआ देख अपने तीखो बाणों से उसका धनुष काट डाला था, जिसने दस हजार हाथियों के समान बलशाली, वज्र के समान तीव्र वेग वाले, अपराजित वीर भीमसेन को सहसा रथहीन करके उनकी हँसी उड़ायी थी, जिसने सहदेव को जीतकर झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा उन्हें रथहीन करके भी धर्म के विचार से दयावश उनके प्राण नहीं लिये; जिसने सहस्रों मायाओं की सृष्टि करने वाले विजयाभिलाषी राक्षसराज घटोत्कच को इन्द्र की दी हुई शक्ति से मार डाला तथा इतने दिनों तक अर्जुन जिससे भयभीत होकर उसके साथ द्वैरथ युद्ध में सम्मिलित नहीं हो सके, वही वीर कर्ण उसके साथ द्वैरथ युद्ध में मारा कैसे गया?

‘संशप्तकों में से जो योद्धा सदा मुझे दूसरी ओर युद्ध के लिये बुलाया करते हैं, इन्हें पहले मारकर पीछे वैकर्तन कर्ण का रणभूमि में वध करूँगा।’ ऐसा बहाना बनाकर अर्जुन जिस सूत पुत्र को युद्ध स्थल में छोड़ दिया करते थे, उसी शत्रुवीरों के संहारक वीरवर कर्ण को अर्जुन ने किस प्रकार मारा? यदि उसका रथ नहीं टूट गया था, धनुष के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो गये थे और अस्त्र नहीं नष्ट हुए थे, तब शत्रुओं ने उसे किस प्रकार मार गिराया?[2] सिंह के समान वेगशाली पुरुषसिंह कर्ण जब अपना विशाल धनुष कँपाता हुआ युद्ध स्थल में दिव्यास्त्र तथा भयंकर बाण छोड़ रहा हो, उस समय उसे कौन जीत सकता था? निश्चय ही उसका धनुष कट गया होगा या रथ धरती में धँस गया होगा अथवा उसके अस्त्र नष्ट हो गये होंगे, तभी जैसा तुम मुझे बता रहे हो, वह मारा गया होगा। उसके नष्ट होने में और कोई कारण मुझे नहीं दिखायी देता है, जिस महामना वीर का यह भयंकर व्रत था कि ‘मैं जब तक अर्जुन को मार नहीं लूँगा, तब तक दूसरों से अपने पैर नहीं धुलवाऊँगा’। रणभूमि में जिसके भय से डरे हुए पुरुष शिरोमणि धर्मराज युधिष्ठिर ने तेरह वर्षों तक कभी अच्छी नींद नहीं ली, जिस महामनस्वी बलवान सूत पुत्र के बल का भरोसा करके मेरा पुत्र दुर्योधन पाण्डवों की पत्नी को बलपूर्वक सभा में घसीट लाया और वहाँ भी भरी सभा में उसने पाण्डवों के देखते देखते समस्त कुरुवंशियों के समीप पांचाल राजकुमारी को दास पत्नी बतलाया, साथ ही जिसने उसे सम्बोधित करके कहा- ‘कृष्णे! तेरे पति अब नहीं के बराबर हैं। सुन्दरि! अब तू दूसरे किसी पति का आश्रय ले’ पूर्वकाल में जिस सूत पुत्र ने सभा में रोष पूर्वक द्रौपदी को ये कठोर बातें सुनायी थीं, वह स्वयं शत्रुओं द्वारा कैसे मारा गया? जिसने मेरे पुत्र से कहा था कि ‘दुर्योधन! यदि युद्ध की श्लाघा रखने वाले भीष्म अथवा रणदुर्मद द्रोणाचार्य पक्षपात करने के कारण कुन्ती पुत्रों को नहीं मारेंगे तो मैं उन सबको मार डालूँगा। तुम्हारी मानसिक चिंता दूर हो जानी चाहिये।। ‘गाण्डीव धनुष अथवा दोनों अक्षय तरकस मेरे उस बाण का क्या कर लेंगे, जो चिकने चन्दन से चर्चित हो शत्रुओं पर बड़े वेग से धावा करते हैं’ ऐसी बातें कहने वाला कर्ण, जिसके कंधे बैलों के समान हृष्ट-पुष्ट थे, निश्चय ही अर्जुन के हाथ से कैसे मारा गया?[3]

संजय! जिसने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों के आघात की तनिक भी परवा न करके ‘कृष्णे! अब तू पतिहीना हो गयी’ ऐसा कहते हुए कुन्ती पुत्रों की ओर देखा था, जिसे अपने बाहुबल के भरोसे से कभी दो घड़ी के लिये भी पुत्रों सहित पाण्डवों और भगवान श्रीकृष्ण से भी भय नहीं हुआ। तात! यदि शत्रु पक्ष की ओर से इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता भी धावा करें तो उनके द्वारा भी कर्ण के वध होने का मुझे विश्वास नहीं हो सकता था, फिर पाण्डवों की तो बात ही क्या है?जब अधिरथ पुत्र कर्ण अपने धनुष की प्रत्यन्चा स्पर्श कर रहा हो अथवा दस्ताने पहने चुका हो, उस समय कोई पुरुष उसके सामने नहीं ठहर सकता था। सम्भव है यह पृथ्वी चन्द्रमा और सूर्य की प्रकाशमयी किरणों से वंचित हो जाय, परंतु युद्ध में पीठ न दिखाने वाले पुरुषशिरोमणि कर्ण के वध की कदापि सम्भावना नहीं थी। जिस कर्ण और भाई दुःशासन को अपना सहायक पाकर मूर्ख एवं दुर्बुद्धि दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा देना ही उचित समझा था, मैं समझता हूँ, आज बैलों के समान पुष्ट कंधे वाले कर्ण को गिरा हुआ तथा दुःशासन को भी मारा गया देख मेरा वह पुत्र निश्चय ही शोक में मग्न हो गया होगा।[3]

द्वैरथ युद्ध में सव्यसाची अर्जुन के हाथ से कर्ण को मारा गया सुनकर और पाण्डवों की विजय होती देखकर दुर्योधन ने क्या कहा था? दुर्मर्षण और वृषसेन भी युद्ध में मारे गये, महारथी पाण्डवों की मार खाकर सेना में भगछड़ मच गयी, सहायक नरेश युद्ध से विमुख हो पलायन करने लगे और रथियों ने पीठ दिखा दी। यह सब देखकर मेरा बेटा शोक कर रहा होगा; ऐसा मुझे मालूम हो रहा है। जो किसी की सीख नहीं मानता है, जिसे अपनी विद्वत्ता और बुद्धिमत्ता का अभिमान है, उस दुर्बुद्धि, अजितेन्द्रिय दुर्योधन ने अपनी सेना को हतोत्साह देखकर क्या कहा? हितैषी सुहृदों के मना करने पर भी पाण्डवों के साथ स्वयं बड़ा भारी बैर ठानकर दुर्योधन ने, जब संग्राम में उसके अधिकांश सैनिक मारे डाले गये, तब क्या कहा? युद्ध स्थल में अपने भाई दुःशासन को भीमसेन के द्वारा मारा गया देख जबकि उसका रक्त पीया जा रहा था, दुर्योधन ने क्या कहा? गान्धारराज शकुनि के साथ सभा में दुर्योधन ने जो यह कहा था कि ‘कर्ण अर्जुन को मार डालेगा’, उसके विपरीत जब कर्ण स्वयं मारा गया तब उसने क्या कहा? तात! पहले द्यूतक्रीड़ा का आयोजन करके पाण्डवों को ठग लेने के बाद जिसे बड़ा हर्ष हुआ था, वह सुबल पुत्र शकुनि कर्ण के मारे जाने पर क्या बोला? वैकर्तन कर्ण को मारा गया देख सात्वत वंश के महाधनुर्धर महारथी हृदिक पुत्र कृतवर्मा ने क्या कहा?[4]

संजय! धनुर्वेद प्राप्त करने की इच्छा वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जिन बुद्धिमान द्रोणाचार्य के पास आकर शिक्षा ग्रहण करते हैं, जो सुन्दर रूप से सम्पन्न, युवक, दर्शनीय तथा महायशस्वी है, उस अश्वत्थामा ने कर्ण के मारे जाने पर क्या कहा? तात! धनुर्वेद के आचार्य एवं रथियों में श्रेष्ठ गौतम वंशी शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने कर्ण के मारे जाने पर क्या कहा? युद्ध में शोभा पाने वाले, रथियों में श्रेष्ठ मद्र देश के अधिपति, बलवान वीर, महाधनुर्धर मद्रराज शल्य ने अपने सारथित्व में कर्ण को मारा गया देखकर क्या कहा? संजय! भूमण्डल के जो कोई भी नरेश युद्ध के लिये आये थे, वे समसत रण दुर्जय योद्धा वैकर्तन कर्ण को मारा गया देखकर क्या बातें करते रहे? संजय! रथियों में सिंह नरश्रेष्ठ वीरवर द्रोणाचार्य के मारे जाने पर कौन-कौन वीर सेनाओं के मुख (अग्र भाग) की रक्षा करते रहे? संजय! रथियों में श्रेष्ठ मद्रराज शल्य को कर्ण के सारथि के कार्य में कैसे नियुक्त किया गया ? यह मुझे बताओ। युद्ध करते समय भी वीर सूत पुत्र के दाहिने पहिये की रक्षा कौन कौन कर रहे थे , अथवा उसके बायें पहिये या पृष्ठ भाग की रक्षा में कौन-कौन वीर नियुक्त थे? किन शूरवीरों ने कर्ण का साथ नहीं छोड़ा? और कौन-कौन से नीच सैनिक वहाँ से भाग गये? तुम सब लोग जब एक साथ होकर लड़ रहे थे, तब महारथी कर्ण कैसे मारा गया?[4]

संजय! जिस समय शूरवीर महारथी पाण्डव पानी की धारा बरसाने वाले बादलों के समान स्वयं ही बाणों की वृष्टि करते हुए आगे बढ़ने लगे, उस समय महान बाणों में सर्वश्रेष्ठ दिव्य सर्वमुख बाण व्यर्थ कैसे हो गया? यह मुझे बताओ। संजय! मेरी इस सेना का उत्कर्ष अथवा उत्साह नष्ट हो गया है। इसके प्रमुख वीर कर्ण के मारे जाने पर अब यह बच सकेगी, ऐसा मुझे नहीं दिखायी देता है। मेरे लिये प्राणों का मोह छोड़ देने वाले महाधनुर्धर वीर भीष्म और द्रोणाचार्य मारे गये, यह सुनकर मेरे जीवित रहने का क्या प्रयोजन है? जिसकी भुजाओं में दस हजार हाथियों का बल था, वह कर्ण पाण्डवों द्वारा मारा गया, यह बारंबार सुनकर मुझसे सहा नहीं जाता। संजय! द्रोणाचार्य के मारे जाने पर संग्राम में नरवीर कौरवों का शत्रुओं के साथ जैसा बर्ताव हुआ, वह मुझे बताओ। शत्रुहन्ता कर्ण ने कुन्ती पुत्रों के साथ जिस प्रकार युद्ध का आयेाजन किया और जिस प्रकार वह रण भूमि में शान्त हो गया, वह सारा वृत्तान्त मुझे बताओ।[5]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 17-34
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 35-52
  3. 3.0 3.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 53-71
  4. 4.0 4.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 72-90
  5. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 91-97

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