भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 56वें अध्याय में संजय ने भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

कर्ण का पाण्डव महारथियों के साथ युद्ध

संजय कहते हैं- उस महासमर में कर्ण को पांचालों का संहार करते देख धर्मराज युधिष्ठिर ने अत्‍यन्‍त कुपित होकर उस पर धावा बोल दिया। आर्य! धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पुत्र तथा दूसरे सैकड़ों मनुष्‍य शत्रुनाशक राधापुत्र कर्ण को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। शिखण्डी, सहदेव, नकुल, शतानीक, जनमेजय, सात्‍यकि तथा बहुत से प्रभद्रकगण ये सभी अमित तेजस्‍वी वीर युद्धस्‍थल में धृष्टद्युम्न के आगे होकर बाण बरसाने वाले कर्ण पर नाना प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रहार करते हुए विचरने लगे। सूतपुत्र ने समरांगण में अकेला होने पर भी जैसे गरुड़ अनेक सर्पों पर एक साथ आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार बहुसंख्यक, चेदि, पांचाल और पाण्‍डवों पर आक्रमण किया। प्रजानाथ! उन सबके साथ कर्ण का वैसा ही भयानक युद्ध हुआ, जैसा पूर्वकाल में देवताओं का दानवों के साथ हुआ था। जैसे एक ही सूर्य सम्‍पूर्ण अन्‍धकार-राशि को नष्‍ट कर देते हैं, उसी प्रकार एक ही कर्ण ने ढेर-के-ढेर बाण-वर्षा करने वाले उन समस्‍त महाधनुर्धरों को बिना किसी व्‍यग्रता के नष्‍ट कर दिया।[1]

भीम द्वारा कौरव सेना का संहार

जिस समय राधापुत्र कर्ण पाण्‍डवों के साथ उलझा हुआ था, उसी समय महाधनुर्धर भीमसेन क्रोध में भरकर यमदण्‍ड के समान भयंकर बाणों द्वारा बाह्लीक, केकय, मत्‍स्‍य, वसातीय, मद्र तथा सिंधुदेशीय सैनिकों का सब ओर से संहार कर रहे थे। वे युद्धभूमि में अकेले ही इन सबके साथ युद्ध करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे।[1] वहाँ भीमसेन के नाराचों द्वारा मर्मस्‍थानों में घायल हुए हाथी सवारों हित धराशायी हो इस पृथ्‍वी को कम्पित कर देते थे। जिनके सवार मारे गये थे, वे घोड़े और पैदल सैनिक भी युद्धस्‍थल में छिन्न-भिन्न हो मुंह से बहुत सा रक्त वमन करते हुए प्राणशून्‍य होकर पड़े थे।

सहस्‍त्रों रथी रथ से नीचे गिरा दिये गये थे। उनके अस्त्र-शस्त्र भी गिर चुके थे। वे सब के सब क्षत-विक्षत ही भीमसेन के भय से भीत एवं प्राणहीन दिखायी दे रहे थे। भीमसेन के बाणों से छिन्न-भिन्न हुए रथियों, घुड़सवारों, सारथियों, पैदलों,घोड़ों और हाथियों की लाशों से वहाँ की धरती आच्‍छादित हो गयी थी। उस महासमर में दुर्योधन की सारी सेना भीमसेन के भय से पीड़ित हो स्‍तब्‍ध सी खड़ी थी। उत्‍साह शून्‍य, घायल, निश्चेष्‍ट, भयंकर और अत्‍यन्‍त दीन सी प्रतीत होती थी। नरेश्वर! जिस समय ज्‍वार न उठने से जल स्‍वच्‍छ एवं शान्‍त हो, उस समय जैसे समुद्र निश्‍चल दिखायी देता है, उसी प्रकार आपकी सारी सेना निश्‍चेष्‍ट खड़ी थी। यद्यपि आपके सैनिकों में क्रोध, पराक्रम और बल की कमी नहीं थी तो भी घमंड चूर-चूर हो गया था; इसलिये उस समय आपके पुत्र की वह सारी सेना तेजोहीन-सी प्रतीत होती थी। भरतश्रेष्‍ठ। परस्‍पर मार खाती हुई वह सेना रक्त के प्रवाह में डूबकर खून से लथपथ हो गयी थी और एक दूसरे की चोट खाकर विनाश को प्राप्‍त हो रही थी।[2]



टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 46-70
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 71-90

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