अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत 89वें अध्याय में अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन करने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

कर्ण और अर्जुन का युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! अर्जुन के धनुष वेगपूर्वक छूटे हुए भयंकर वेगशाली बाणों द्वारा गहरी चोट खाकर कर्ण के सारे अंग विदीर्ण हो गये। वह खून से नहा उठा और रौद्र मुहूर्त में श्मशान के भीतर क्रीड़ा करते हुए, बाणों से व्याप्त एवं रक्त से भीगे शरीर वाले रुद्र देव के समान प्रतीत होने लगा। तदनन्तर अधिरथपुत्र कर्ण देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी अर्जुन को तीन बाणों से बींध डाला और श्रीकृष्ण को मार डालने की इच्छा से उनके शरीर में प्रज्जवलित सर्पो के समान पाँच बाण घूसा दिये। अच्छी तरह से छोड़े हुए वे सुवर्णजटित वेगशाली बाण पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के कवच को विदीर्ण करके बड़े वेग से धरती में समा गये और पाताल गंगा में नहाकर पुनः कर्ण की ओर जाने लगे।[1] वे बाण नहीं, तक्षकपुत्र अश्वसेन के पक्षपाती पाँच विशाल सर्प थे। अर्जुन ने सावधानी से छोड़े गये दस भल्लों द्वारा उनमें से प्रत्येक के तीन-तीन टुकडे़ कर डाले। अर्जुन के बाणों से मारे जाकर वे पृथ्वी पर गिर पड़े। कर्ण के हाथों से छूटे हुए उन सभी बाणों द्वारा श्रीकृष्ण के श्रीअंगों को घायल हुआ देख किरीटधारी अर्जुन सूखे काठ या घास-फूस के ढेर को जलाने वाली आग के समान क्रोध से प्रज्जवलित हो उठे। उन्होंने कान तक खींचकर छोड़े गये शरीर नाशक प्रज्जवलित बाणों द्वारा कर्ण के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी। कर्ण दुःख से विचलित हो उठा; परन्तु किसी तरह मन में धैर्य धारण करके दैवयोग से रणभूमि में डटा रहा।[2]

अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन

राजन! तत्पश्चात् क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने बाण समूहों का ऐसा जाल फैलाया कि दिशाएँ, विदिशाएँ, सूर्य की प्रभा और कर्ण का रथ सब कुछ कुहासे से ढके हुए। आकाश की भाँति अदृश्य हो गया। नरेश्वर! कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुष अद्वितीय वीर शत्रुनाशक सव्यसाची अर्जुन ने कर्ण के चक्ररक्षक, पादरक्षक, अग्रगामी और पृष्ठरक्षक सभी कौरव दल के सारभूत प्रमुख वीरों को, जो दुर्योधन की आज्ञा के अनुसार चलने वाले और युद्ध के लिये सदा उद्यत रहने वाले थे तथा जिनकी संख्या दो हजार थी, एक ही क्षण में रथ, घोड़ों और सारथियों सहित काल के गाल में भेज दिया। तदनन्तर जो मरने से बच गये थे, वे आपके पुत्र और कौरव सैनिक कर्ण को छोड़कर तथा मारे गये और बाणों और बाणों से घायल हो सगे-सम्बन्धियों को पुकारने वाले अपने पुत्रों एवं पिताओं की भी उपेक्षा करके वहाँ से भाग गये। अर्जुन के बाणों से संतप्त और क्षत-विक्षत हो समस्त कौरव योद्धा जब वहाँ खडे़ हुए, तब दुर्योधन ने उनमें से श्रेष्ठ वीरों को पुनः कर्ण के रथ के पीछे जाने के लिये आज्ञा दी।

दुर्योधन बोला- क्षत्रियो! तुम सब लोग शूरवीर हो, क्षत्रिय धर्म में तत्पर रहते हो। यहाँ कर्ण को छोड़कर उसके निकट से भाग जाना तुम्हारे लिये कदापि उचित नहीं है। संजय कहते हैं- राजन! आपके पुत्र के दस प्रकार कहने पर भी वे योद्धा वहाँ खडे़ न हो सके। अर्जुन के बाणों से उन्हें बडी़ पीड़ा हो रही थी। भय से उनकी कांति फीकी पड़ गयी थी; इसलिये वे क्षणभर में दिशाओं और उनके कोनों में जाकर छिप गये। भारत! भय से भागे हुए कौरव योद्धाओं से परित्यक्त हो सम्पूर्ण दिशाओं को सूनी देखकर भी वहाँ कर्ण अपने मन में तनिक भी व्यथित नहीं हुआ। उसने पूरे हर्ष और उत्साह के साथ ही अर्जुन पर धावा किया।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 76-89
  2. 2.0 2.1 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 90-97

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