संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत पाँचवें अध्याय में वैशम्पायन ने कौरव पक्ष के प्रधान प्रधान वीर, जो युद्ध में मारे गये थे, संजय द्वारा धृतराष्ट्र को उनके परिचय देने का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र द्वारा जीवित और मृत योद्धाओं के विषय में पूछना

वैशम्पायन जी कहते हैं- महाराज! उपर्युक्त समाचार सुनकर अम्बिकानन्दन धृतराष्ट्र का हृदय शोक से व्याकुल हो गया। वे अपने सारथि संजय से इस प्रकार बोले- ‘तात! अपने अल्पायु पुत्र के अन्याय से वैकर्तन कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर जो शोक उमड़ आया है वह मेरे मर्मस्थानों को छेदे डालता है। मैं इस अपार दुःख से पार पाना चाहता हूँ। तुम मेरे इस संदेह का निवारण करो के कौरवों तथा सृंजय में से कौन-कौन जीवित है और कौन-कौन मर गये हैं?’[1]

संजय द्वारा धृतराष्ट्र को पाण्डवों द्रारा मारे गये वीरों का परिचय देना

संजय ने कहा- राजन! दुर्जय एवं प्रतापी वीर शान्तनुनन्दन भीष्म दस दिनों में पाण्डव दल के दस करोड़ योद्धाओं का संहार करके मर गये हैं। इसी प्रकार सुवर्णमय रथ वाले दुर्धर्ष वीर महाधनुर्धर द्रोणाचार्य भी पाञ्चाल रथियों के समुदाय का संहार करके मारे गये हैं। भीष्म और महात्मा द्रोण के मारने से जो पाण्डव सेना बच गयी थी, उसके आधे भाग का विनाश करके वैकर्तन कर्ण मारा गया है। महाराज! महाबली राजकुमार विविंशति रणभूमि में सैंकड़ों आनर्तदेशीय योद्धाओं को मारकर मरा है। इसी प्रकार आपका शूरवीर पुत्र विकर्ण क्षत्रियोचित व्रत का स्मरण करके वाहनों और आयुधों के नष्ट हो जाने पर भी शत्रुओं के सामने डटा हुआ था, परंतु दुर्योधन के दिये हुए बहुत से भयंकर क्लेशों और अपनी प्रतिज्ञा को याद करके भीमसेन ने उसे मार गिराया।

अवन्ती देश के महारथी राजकुमार विन्द और अनुविन्द भी दुष्कर कर्म करके यमलोक को चले गये। राजन! जिस वीर के शासन में सिन्धु सौबीर आदि दस राष्ट्र थे, जो सदा आपकी आज्ञा के अधीन रहा करता था, उस महापराक्रमी जयद्रथ को अर्जुन ने आपकी ग्यारह अक्षौहिणी सेना को हराकर तीखे बाणों से मार डाला। दुर्योधन के रणदुर्मद वेगशाली पुत्र लक्ष्मण को, जो सदा पिता की आज्ञा के अधीन रहता था, सुभद्राकुमार ने मार गिराया। अपने बाहुबल से सुशोभित होने वाला रणोन्मत्त शूर दुःशासनकुमार द्रौपदी के पुत्र से टक्कर लेकर यमलोक में जा पहुँचा। जो सागर-तटवर्ती किरातों के स्वामी तथा देवराज इन्द्र के अत्यन्त आदरणीय प्रिय सखा थे, सदा क्षत्रिय-धर्म में तत्पर रहने वाले वे धर्मात्मा राजा भगदत्त भी अर्जुन के साथ पराक्रम दिखाकर यमराज के लोक में चले गये।

राजन! कौरववंशी महायशस्वी शूरवीर भूरिश्रवा, जो अपने अस्त्र शस्त्रों का परित्याग कर चुके थे, युद्ध स्थल में सात्यकि के हाथ से मारे गये। अम्बष्ठ देश के राजा क्षत्रिय-धुरंधर श्रतायु भी, जो समरांगण में निर्भय होकर विचरते थे, सव्यसाची अर्जुन के हाथ से मारे गये। महाराज! जो अस्त्र विद्या का विद्वान तथा युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाला था, सदा अमर्ष में भरे रहने वाले आपके उस पुत्र दुःशासन को भीमसेन ने मार डाला। राजन! जिसके अधिकार में कई हजार हाथियों की अद्भुत सेना थी, वह सुदक्षिण भी संग्राम में सव्यसाची अर्जुन के बाणों का निशाना बन गया। कोशल नरेश शत्रुपक्ष के अत्यन्त सम्मानित वीरों का वध करके सुभद्राकुमार अभिमन्यु के साथ पराक्रम दिखाते हुए यमलोक के पथिक बन गये।[1]

जो महारथी भीमसेन के साथ भी कई बार युद्ध कर चुका था, ढाल और तलवार लेकर शत्रुओं का भय बढ़ाने वाला वह मद्रराज का शूरवीर तेजस्वी पुत्र सुभद्राकुमार अभिमन्यु के द्वारा मार डाला गया। जो समर भूमि में कर्ण के समान ही पराक्रमी था, शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने वाला, सुदृढ़ बल-विक्रम से सम्पन्न और महान तेजस्वी था, वह कर्णपुत्र वृषसेन अभिमन्यु का वध सुनकर की हुई अपनी प्रतिज्ञा को याद रखने वाले अर्जुन के साथ भिड़कर कर्ण के देखते देखते उनके द्वारा यमलोक पहुँच दिया गया। जो पाण्डवों से सदा वैर बाँधे रखता था , उस राजा श्रतायु को कुन्तीकुमार अर्जुन ने उसकी शत्रुता का स्मरण कराकर मार डाला। माननीय नरेश! शल्य का पराक्रमी पुत्र रुक्मरथ, जो सहदेव का ममेरा भाई था, युद्ध में सहदेव के ही हाथ से मारा गया। बूढ़े राजा भगीरथ और केकय नरेश बृहद्रथ ये दोनों अत्यनत बलवान और पराक्रमी वीर थे, जो युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए मारे गये। राजन! भगदत्त के विद्वान् और महाबली पुत्र को युद्ध में बाज की तरह झपटने वाले नकुल ने मार गिराया।

आपके पितामह बाह्लीक भी महान बल-पराक्रम से सम्पन्न थे। वे भीमसेन के हाथ से बाह्लीक योद्धाओं सहित मारे गये। राजन! जरासंध के महाबलवान पुत्र मगधवासी जयत्सेन को महामना सुभद्राकुमार ने युद्ध में मार डाला। नरेश्वर! आपके पुत्र दुर्मुख और महारथी दुःसह ये दोनों अपने को शूरवीर मानने वाले योद्धा थे, जो भीमसेन की गदा से मारे गये। इसी प्रकार दुर्मर्षण, दुर्विषह और महारथी दुर्जय दुष्करकर्म करके यमराज के लोक में जा पहुँचे हैं। युद्ध दुर्मद कलिंग और वृषक ये दोनों भाई भी दुष्कर पराक्रम प्रकट करके यमलोक के अतिथि हो चुके हैं। आपके मन्त्री परमपराक्रमी शूरवीर वृषवर्मा भीमसेन के द्वारा बलपूर्वक यमलोक पहुँचा दिये गये। इसी प्रकार इस हजार हाथियों के समान बलशाली महान राजा पौरव को समरांगण में पाण्डु कुमार सव्यसाची अर्जुन ने मार डाला।

महाराज! प्रहार कुशल दो हजार वसाति लोग और पराक्रमी शूरसेन - ये सबके सब युद्ध में मार डाले गये हैं। रण में उन्मत्त रथी शिवि- ये सब कलिंगराज सहित मारे गये हैं। जो सदा गोकुल में पले हैं, युद्ध में अत्यन्त कुपित होकर लड़ते हैं और जिन्होंने कभी युद्ध में पीठ दिखाना नहीं सीखा है, वे गोपाल भी अर्जुन के हाथ से मारे जा चुके हैं। संशप्तगणों की कई हजार श्रेणियाँ थीं। वे सभी अर्जुन का सामना करके यमराज के लोक में चले गये। महाराज! आपके दोनों साले राजा वृषक और अचल जो आपके लिये अत्यन्त पराक्रम प्रकट करते थे, अर्जुन के द्वारा मार डाले गये।

जो महान धनुर्धर तथा नाम और कर्म से भी उग्रकर्मा थे, उन महाबाहु शल्वराज को भीमसेन ने मार गिराया। महाराज! मित्र के लिये रणभूमि में पराक्रम प्रकट करने वाले ओघवान और बृहन्त- ये दोनों एक साथ यमलोक को प्रस्थान कर चुके हैं। प्रजानाथ! नरेश्वर! इसी प्रकार रथियों में श्रेष्ठ क्षेमधूर्ति को भी युद्ध स्थल में भीमसेन ने अपनी गदा से मार डाला। राजन! महाधनुर्धर महाबली जलसंघ रणभूमि में शत्रु सेना का महान संहार करके अन्त में सात्यकि के हाथ से मारे गये।[2]

घटोत्कच ने पराक्रम करके गर्दभ युक्त सुन्दर रथ वाले राक्षसराज अलम्बुष को यमलोक पहुँचा दिया है। सूतपुत्र राधानन्दन कर्ण, उसके महारथी भाई तथा समस्त केकय भी सव्यसाची अर्जुन के हाथ से मारे गये। मालव, मद्रक, भयंकर कर्म करने वाले द्राविड़, यौधेय, ललित्य, क्षुद्रक, उशीनर, मावेल्लक, तुण्डिकेर, सावित्रीपुत्र, प्राच्य, प्रतीच्य, उछीच्य और दक्षिणात्य, पैदल समूह, दस लाख घोड़े, रथों के समूह और बड़े-बड़े गजराज अर्जुन के हाथ से मारे गये हैं। राजन! पालन निपुण पुरुषों ने जिनका दीर्घकाल से पालन-पोषण किया था, जो युद्ध में सदा सावधान रहने वाले शूरवीर थे, वे सभी अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन के हाथ से ध्वज, आयुध, कवच, वस्त्र और आभूषणों सहित समरांगण में मारे गये।

महाराज! एक दूसरे के वध की इच्छा रखने वाले असीम बलशाली अन्यान्य योद्धा भी मौत के घाट उतर चुके हैं। राजन! ये तथा और भी बहुत से नरेश रणभूमि में अपने दल बल के साथ सहस्रों की संख्या में मारे गये हैं। आप मुझसे जो कुछ पूछ रहे थे, वह सब मैंने बता दिया। राजन! इस प्रकार कर्ण और अर्जुन के संग्राम में यह भारी संहार हुआ है। जैसे देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर को, श्रीरामचन्द्र जी ने रावण को, नरक शत्रु श्रीकृष्ण ने नरक और मुरु को तथा भृगुवंशी परशुराम जी ने तीनों लोकों को मोहित करने वाला अत्यन्त घोर युद्ध करके समरांगण में रणदुर्मद शूरवीर कृतवीर्यकुमार अर्जुन को उसके भाई बन्धुओं सहित मार डाला था, जैसे स्कन्द ने महिषासुर का और रुद्र ने अन्धकासुर का संहार किया था, उसी प्रकार अर्जुन ने योद्धाओं में श्रेष्ठ युद्ध दुर्मद कर्ण को द्वैरथ युद्ध में उसके मन्त्री और बन्धुओं सहित मार डाला।

जिससे आपके पुत्रों ने विजय की आशा लगा रखी थी, जो वैर का मुख बना हुआ था, उससे पाण्डुपुत्र अर्जुन पार हो गये। महाराज! पहले आपने हितैषी बन्धुओं के कहने पर भी जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया, वही यह महान विनाशकारी संकट प्राप्त हुआ है। राजन! आपने राज्य की कामना रखने वाले अपने पुत्रों के हित की इच्छा रखते हुए सदा उन पाण्डवों के अहित ही किये हैं; आपके उन्हीं कर्मों का यह फल प्राप्त हुआ है।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-21
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 5 श्लोक 22-44
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 5 श्लोक 45-60

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