भार्गवास्त्र

भार्गवास्त्र का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' में मिलता है। सम्भवत: 'परशु' को ही भार्गवास्त्र कहा जाता था।[1]

  • 'महाभारत कर्ण पर्व' में कर्ण तथा अर्जुन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है। यहाँ एक स्थान पर उल्लेख मिलता है कि कर्ण की ओर से आये हुए सम्पूर्ण मेघसमूहों को वायव्यास्त्र से छिन्न-भिन्न करके शत्रुओं के लिये अजेय अर्जुन ने गाण्डीव धनुष, उसकी प्रत्यंचा तथा बाणों को अभिमंत्रित करके अत्यन्त प्रभावशाली 'वज्रास्त्र' को प्रकट किया, जो देवराज इन्द्र का प्रिय अस्त्र है। उस गाण्डीव धनुष से क्षुरप्र, अंजलिक, अर्धचन्द्र, नालीक, नाराच और वराहकण आदि तीखे अस्त्र हज़ारों की संख्या में छूटने लगे। वे सभी अस्त्र वज्र के समान वेगशाली थे। वे महाप्रभावशाली, गीध के पंखों से युक्त, तेज धार वाले और अतिशय वेगवान अस्त्र कर्ण के पास पहुँचकर उसके समस्त अंगों में, घोड़ों पर, धनुष में तथा रथ के जुओं, पहियों और ध्वजों में जा लगे। जैसे गरुड़ से डरे हुए सर्प धरती छेदकर उसके भीतर घूस जाते हैं, उसी प्रकार वे तीखें अस्त्र अपयुक्त वस्तुओं को विदीर्ण कर शीध्र ही उनके भीतर घँस गये। कर्ण के सारे अंग बाणों से भर गये। सम्पूर्ण शरीर रक्त से नहा उठा। इससे उसके नेत्र उस समय क्रोध से घूमने लगे। उस महामनस्वी वीर ने अपने धनुष को, जिसकी प्रत्यंचा सुदृढ़ थी, झुकाकर समुद्र के समान गम्भीर गर्जना करने वाले भार्गवास्त्र को प्रकट किया और अर्जुन के महेन्द्रास्त्र से प्रकट हुए बाण-समुहों के टुकडे़-टुकडे़ करके अपने अस्त्र से उनके अस्त्र को दबाकर युद्धस्थल में रथों, हाथियों और पैदल-सैनिकों का संहार कर डाला।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारतकोश डिस्कवरी पुस्तकालय |संपादन: संजीव प्रसाद 'परमहंस' |पृष्ठ संख्या: 131 |
  2. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 13-27

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