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यहाँ 12 महावन और 24 उपवन हैं जो इस प्रकार हैं –<br /> | यहाँ 12 महावन और 24 उपवन हैं जो इस प्रकार हैं –<br /> | ||
12 महावन – (1) मधुवन, (2) तालवन( (3) कुमुदवन, (4) बहुलावन, (5) कामवन, (6) खदिरवन, (7) वृन्दावन, (8) भद्रवन, (9) भाण्डारीवन, (10) बेलवन, (11) लोहवन, (12) महावन ।<br /> | 12 महावन – (1) मधुवन, (2) तालवन( (3) कुमुदवन, (4) बहुलावन, (5) कामवन, (6) खदिरवन, (7) वृन्दावन, (8) भद्रवन, (9) भाण्डारीवन, (10) बेलवन, (11) लोहवन, (12) महावन ।<br /> | ||
− | 24 उपवन – (1) गोकुल, (2) | + | 24 उपवन – (1) गोकुल, (2) गोवर्धन, (3) बरसाना, (4) नन्दगाम, (5) संकेत, (6) परम भद्र, (7) अडींग, (8) शेषशायी, (9) माट, (10) अंचगांव, (11) खेलवन, (12) श्रीकुण्ठ, (13) गन्धर्ववन, (14) पारसौली, (15) बिलछू, (16) वच्छवन, (17) आदिवद्री, (18) करहला, (19) अजनीख, (20) पिसायो (21) कोकिलावन, (22) दधिवन, (23) कोटवन, (24) रावल। (इनके अतिरिक्त और भी उपवन हैं ) |
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01:21, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
कृष्णांक
व्रज परिचय
नैसर्गिक शोभा न भी होती, प्राचीन लीलचिह्न भी न मिलते होते, तो भी केवल साक्षात परब्रह्म का यहाँ विगह होने के नाते ही यह स्थान आज हमारे लिये तीर्थ था, यह भूमि हमारे लिये तीर्थ थी जहाँ की पावन रज को व्रह्मज्ञ उद्धव ने अपने मस्तक पर धारण किया था, वह व्रजवासी दर्शनीय थे जिनके पूर्वजों के भाग्य की सराहना करते-करते भक्त सूरदास के शब्दों में बड़े-बड़े़ देवता आकर उनकी जूठन खाते थे, क्योंकि उनके बीच में भगवन् अवतरित हुए थे। व्रज-वासी-पटतर कोउ नाहिं । तब फिर यहाँ तो अनन्त दर्शनीय स्थान है, अनन्त सुन्दर मठ-मन्दिर, वन-उपवन, सर-सरोवर हैं जो अपनी शोभा के लिये दर्शनीय हैं और पावनता के लिये भी दर्शनीय है। सबके साथ अपना-अपना इतिहास है। यद्यपि मुसलमानों के आक्रमण पर आक्रमण होने से व्रज की सम्पदा नष्टप्राय हो गयी है, कई प्रसिद्ध स्थानों का चिह्न तक मिट गया है, मन्दिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी हैं, तथा धर्मप्राण जनों की चेष्ट से कुछ स्थानों की रक्षा तथा जीर्णोद्धार होने से वहाँ की जो आज शोभ है वह भी दर्शनीय है। जिस स्थान में पशु अधिक हो उसे व्रज कहते हैं। यह व्रजभूमि मथुरा और वृन्दावन के आसपास 84 कोस (168 मील) में फैली मानी जाती है। वाराहपुराण में इसका विस्तार 80 कोस (160 मली) माना गया है। - विंशतिर्योजनानां च माथुरं मम मण्डलम् । यानी मेरा मथुरा-मण्डल 20 योज (80 कोस) है, जिसके यत्र-तत्र स्थित तीर्थों में स्नान करके मनुष्य सब पातकों से मुक्त हो जाता है। यहाँ 12 महावन और 24 उपवन हैं जो इस प्रकार हैं – |