श्रीकृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
प्रज्ञान इन्द्रिय सहित मन का नाम है, विज्ञान बुद्धि को कहते हैं, महान तीन प्रकार का है- आकृति महान्, प्रकृति महान् और अहंकृति महान्। पहले के अनुसार प्रत्येक प्राणी का आकार (अवयवसंनिवेश, छोटा-बड़ापन आदि) होता है, जैसा कि श्रीभगवद्गीता में कहा है- दूसरे के अनुसार प्रत्येक प्राणी की प्रकृति (आदत) होती है, तीसरा अहंकार रूप है। ये तीनों (प्रज्ञान, विज्ञान और महान) मिलकर सूक्ष्म शरीर कहे जाते हैं। अव्यक्त कारण शरीर है, जिसमें से दोनों शरीरों का विकास है। इन पाँचों आध्यात्मिक क्षरों की समष्टि उक्त पाँचों आधिदैविक क्षर हैं, उन पाँचों मण्डलों के ‘रस’ से क्रम से ये पाँचों उत्पन्न होते हैं। आध्यात्मिक क्षर की पाँच कलाएँ दूसरी प्रक्रिया से भी कहीं-कहीं उल्लिखित हुई है- बीजचिति, देवचिति, भूतचिति, प्रजा और वित्त। बीजचिति कारण शरीर है, देवचित सुक्ष्म शरीर, भूतचिति स्थूल शरीर, प्रजा-पुत्रादि और वित्त-सम्पत्ति। इस प्रक्रिया में क्षर-आत्मा की व्यापित जहाँ तक है, उन सब बाह्य पदार्थों का भी संग्रह हो जाता है। मतान्तर में उन्हें ‘पशु’ शब्द से कहा गया है, तीन पुरुषों की गणना में नहीं लिया गया है। अस्तु, इस संक्षिप्त लेख में पुरुषत्रय के सम्बन्ध में इससे अधिक नहीं लिखा जा सकता, इसका विसतार जिन विद्वान सज्जनों को समझना हो, वे गुरुवार विद्यावाचस्पति श्रीमधुसूदनजी ओझा का ‘भगवद्गीता-वैज्ञानिक भाष्य’ वा उनके ‘ब्रह्मविज्ञान’ का ‘सिद्धान्तवाद’ पढ़ें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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