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− | विशेष चमत्कार की बात यह थी कि जो गोपबालक श्रीकृष्ण के साथ वन में गायें चराने जाते थे वे कुछ प्रौढ़ यानि पांच-पांच सात-सात वर्ष के थे और बछडे़ भी जो गायों के साथ वन में चरने जाते, कुछ बड़े-बड़े़ होते थे। बिलकुल छोटे बच्चे और छोट बछडे़ घरों में ही रहते थे। यों तो सदा ही सब बालक-बछडे़ मामूली तौर से प्रात:काल वन जाते और सायंकाल को घर वापस आते थे, पर इधर ब्रह्माजीकी इस खुरापात के बाद से कुछ विचित्र हाल हो गया था। ज्यों हीं वे सब घर वापस आते, तो उन्हें देखते ही माताओं के स्तनों में दूध भर आता और वे अपनी गोदी के दुधमुहें बालकों को अलग कर इन बडे़ बालकों को स्तनपान कराने लगती। और गाये भी घर बंधे हुए छोटे बछड़ो को दूध न पिलाकर वन से आये हुए बडे़ बछड़ों को ही पिलाने लगती। एक बार तो ऐसी अद्भुत घटना घटी कि बलरामजी तक आश्चर्य चकित हो गये। गोपाल तथा गोवत्सों की चोरी हुए एक वर्ष में पांच-छ: दिन कम थे। सदा की भाँति एक दिन गायें | + | विशेष चमत्कार की बात यह थी कि जो गोपबालक श्रीकृष्ण के साथ वन में गायें चराने जाते थे वे कुछ प्रौढ़ यानि पांच-पांच सात-सात वर्ष के थे और बछडे़ भी जो गायों के साथ वन में चरने जाते, कुछ बड़े-बड़े़ होते थे। बिलकुल छोटे बच्चे और छोट बछडे़ घरों में ही रहते थे। यों तो सदा ही सब बालक-बछडे़ मामूली तौर से प्रात:काल वन जाते और सायंकाल को घर वापस आते थे, पर इधर ब्रह्माजीकी इस खुरापात के बाद से कुछ विचित्र हाल हो गया था। ज्यों हीं वे सब घर वापस आते, तो उन्हें देखते ही माताओं के स्तनों में दूध भर आता और वे अपनी गोदी के दुधमुहें बालकों को अलग कर इन बडे़ बालकों को स्तनपान कराने लगती। और गाये भी घर बंधे हुए छोटे बछड़ो को दूध न पिलाकर वन से आये हुए बडे़ बछड़ों को ही पिलाने लगती। एक बार तो ऐसी अद्भुत घटना घटी कि बलरामजी तक आश्चर्य चकित हो गये। गोपाल तथा गोवत्सों की चोरी हुए एक वर्ष में पांच-छ: दिन कम थे। सदा की भाँति एक दिन गायें गोवर्धन पर्वत पर चर रही थीं। प्रौढ़ गोप उनकी रखवाली पर उनके साथ ही थे। बछड़े पर्वत के नीचे चर रहे थे। चरते-चरते गायों की दृष्टि एकाएक नीचे चरते हुए बछड़ों पर पड़ी, और वे पूंछ उठाकर चौपड़ दौड़ती-कूदती उधर को जाने लगी। <br /> |
उनकी रखवाली करने वाले प्रौढ़ गोपों ने उन्हें रोकने की लाख चेष्टा की, पर वे नहीं रुकीं और नीचे अपने बछड़ों के पास आकर उन्हें दूध पिलाना तथा ऐसे प्रेम के साथ चाटना आरंभ किया मानो वे उन्हें अपने ह्दय में बैठा लेना चाहती हैं। ऊपर खडे हुए गोपों को उन गायों पर क्रोध हुआ तथा उनके रोके वे न रुक सकी। इसलिये अपने आप पर लज्जा भी हुई वे हाथों में लम्बी लम्बी लाठियां लेकर उन्हें खूब पीटने के लिए क्रोधपूर्वक दौड़कर नीचे पहुँचे। पर वहाँ पहुँचते ही गोवत्सों तथा उनकी रखवाली करने वाले अपने अपने बालकों को देखकर उनका क्रोध हवा हो गया और उनकी रखवाली करने वाले अपने बालकों को देखकर उनका क्रोध हवा हो गया और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उन्हें उठाकर छाती से लगा लिया और उनका कपोल चुम्बन किया। यह सब दृश्य देखकर बलरामजी को भारी आश्चर्य हुआ। कारण, छोटे बछड़ों के लिए गायों के स्तनों में कभी दूध नहीं भरा करता, कभी-कभी तो छोटा बछड़ा होने पर बडे़ बछड़े को गाय भूल सी जाती है। पर आज यह उलटा राग कैसे हुआ ? और फिर प्रौढ़ गोप क्रोध में भरकर नीचे दौडे़, परन्तु उन बछड़ों और अपने बालकों को देखते ही उनका क्रोध एकदम उड़ कैसे गया ? आदि विचार उनके मन में उठने लगे । | उनकी रखवाली करने वाले प्रौढ़ गोपों ने उन्हें रोकने की लाख चेष्टा की, पर वे नहीं रुकीं और नीचे अपने बछड़ों के पास आकर उन्हें दूध पिलाना तथा ऐसे प्रेम के साथ चाटना आरंभ किया मानो वे उन्हें अपने ह्दय में बैठा लेना चाहती हैं। ऊपर खडे हुए गोपों को उन गायों पर क्रोध हुआ तथा उनके रोके वे न रुक सकी। इसलिये अपने आप पर लज्जा भी हुई वे हाथों में लम्बी लम्बी लाठियां लेकर उन्हें खूब पीटने के लिए क्रोधपूर्वक दौड़कर नीचे पहुँचे। पर वहाँ पहुँचते ही गोवत्सों तथा उनकी रखवाली करने वाले अपने अपने बालकों को देखकर उनका क्रोध हवा हो गया और उनकी रखवाली करने वाले अपने बालकों को देखकर उनका क्रोध हवा हो गया और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उन्हें उठाकर छाती से लगा लिया और उनका कपोल चुम्बन किया। यह सब दृश्य देखकर बलरामजी को भारी आश्चर्य हुआ। कारण, छोटे बछड़ों के लिए गायों के स्तनों में कभी दूध नहीं भरा करता, कभी-कभी तो छोटा बछड़ा होने पर बडे़ बछड़े को गाय भूल सी जाती है। पर आज यह उलटा राग कैसे हुआ ? और फिर प्रौढ़ गोप क्रोध में भरकर नीचे दौडे़, परन्तु उन बछड़ों और अपने बालकों को देखते ही उनका क्रोध एकदम उड़ कैसे गया ? आदि विचार उनके मन में उठने लगे । | ||
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01:22, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण का अद्भुत अवतार
विशेष चमत्कार की बात यह थी कि जो गोपबालक श्रीकृष्ण के साथ वन में गायें चराने जाते थे वे कुछ प्रौढ़ यानि पांच-पांच सात-सात वर्ष के थे और बछडे़ भी जो गायों के साथ वन में चरने जाते, कुछ बड़े-बड़े़ होते थे। बिलकुल छोटे बच्चे और छोट बछडे़ घरों में ही रहते थे। यों तो सदा ही सब बालक-बछडे़ मामूली तौर से प्रात:काल वन जाते और सायंकाल को घर वापस आते थे, पर इधर ब्रह्माजीकी इस खुरापात के बाद से कुछ विचित्र हाल हो गया था। ज्यों हीं वे सब घर वापस आते, तो उन्हें देखते ही माताओं के स्तनों में दूध भर आता और वे अपनी गोदी के दुधमुहें बालकों को अलग कर इन बडे़ बालकों को स्तनपान कराने लगती। और गाये भी घर बंधे हुए छोटे बछड़ो को दूध न पिलाकर वन से आये हुए बडे़ बछड़ों को ही पिलाने लगती। एक बार तो ऐसी अद्भुत घटना घटी कि बलरामजी तक आश्चर्य चकित हो गये। गोपाल तथा गोवत्सों की चोरी हुए एक वर्ष में पांच-छ: दिन कम थे। सदा की भाँति एक दिन गायें गोवर्धन पर्वत पर चर रही थीं। प्रौढ़ गोप उनकी रखवाली पर उनके साथ ही थे। बछड़े पर्वत के नीचे चर रहे थे। चरते-चरते गायों की दृष्टि एकाएक नीचे चरते हुए बछड़ों पर पड़ी, और वे पूंछ उठाकर चौपड़ दौड़ती-कूदती उधर को जाने लगी। |