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'''पडगुण- गोंडें रत्नेजड़ित तुज श्यामसुन्दरा शोभली रे ।''' | '''पडगुण- गोंडें रत्नेजड़ित तुज श्यामसुन्दरा शोभली रे ।''' | ||
'''कान्हा तुझि घोंगड़ी चांगली, आम्हांवसि का दिली वांगली रे ।'''</poem> | '''कान्हा तुझि घोंगड़ी चांगली, आम्हांवसि का दिली वांगली रे ।'''</poem> | ||
− | वह सत् चित् आनंद और शुद्ध सत्वगुणों से बुनी हुई है। जिसमें | + | वह सत् चित् आनंद और शुद्ध सत्वगुणों से बुनी हुई है। जिसमें षडगुणरूपी रत्नी जड़े हुए हैं। हे कान्ह ! तेरी कम्बल तो बहुत अच्छी है फिर हमें ही तूने यह चिथड़ा क्यों दे रखा है? इस प्रकार इन सन्त महात्माओं ने वेदान्त के रहस्यों को सर्वसाधारण की भाषा में विनोदात्मक तथा विवेचनात्मक पद्यों के द्वारा इस खूबी के साथ व्यक्त किया है कि जिससे वे लोगों की समझ में सरलता से आ जाते हैं और अनायास ही वे उन्हें आचरण में ला सकते हैं। इनके ये पद्य महाराष्ट्र के घर घर में स्त्रियों और बच्चों तक की जीभ पर रहते हैं। नामदेव (शाके 1192-1272) ये बड़े प्रेमी विट्ठल भक्त थे। विट्ठल भक्ति का प्रचार करने का श्रेय इन्हें ही प्राप्त है। इनका जन्म दर्जी जाति में हुआ था। <br /> |
इन्हें उद्धवजी का अवतार मानते हैं। तीन सौ वर्ष के अनन्तर तुकाराम के रुप में भी इन्हीं का अवतार हुआ था। इसके मां-बाप, चार लड़के, चार लड़कियां, चार बहुएं, पत्नी, बहन और जनाबाई इस तरह इनका सारा परिवार ही इनकी संगति से विट्ठल भक्त बन गया था। इनकी संगति से विट्ठलभक्त बन गया था। इन सभी के अभंग* प्रसिद्ध हैं। उनमें से नामदेव और जनाबाई के अभंग बहुत प्रेमपूर्ण हैं नामदवे के लगभग तीन चार हजार और जनाबाई के तीन सौ पचास अभंग उपलब्ध हैं। जनाबाई और मुक्ताबाई के झूले के गीता बड़े ही मजेदार हैं। ये सभी लोग अध्यात्मरंग में रंगे हुए ज्ञानी भक्त थे। उपनिषदों का परब्रह्म ही श्रीकृष्ण रुप से अर्थात विट्ठल रुप से प्रकट हुआ है ऐसी इनकी पूर्ण निष्ठा थी। ज्ञान के साथ-साथ भक्ति का संयोग हो जाने से इनकी वाणी में अतीव मृदुता और मधुरता आ गयी थी। | इन्हें उद्धवजी का अवतार मानते हैं। तीन सौ वर्ष के अनन्तर तुकाराम के रुप में भी इन्हीं का अवतार हुआ था। इसके मां-बाप, चार लड़के, चार लड़कियां, चार बहुएं, पत्नी, बहन और जनाबाई इस तरह इनका सारा परिवार ही इनकी संगति से विट्ठल भक्त बन गया था। इनकी संगति से विट्ठलभक्त बन गया था। इन सभी के अभंग* प्रसिद्ध हैं। उनमें से नामदेव और जनाबाई के अभंग बहुत प्रेमपूर्ण हैं नामदवे के लगभग तीन चार हजार और जनाबाई के तीन सौ पचास अभंग उपलब्ध हैं। जनाबाई और मुक्ताबाई के झूले के गीता बड़े ही मजेदार हैं। ये सभी लोग अध्यात्मरंग में रंगे हुए ज्ञानी भक्त थे। उपनिषदों का परब्रह्म ही श्रीकृष्ण रुप से अर्थात विट्ठल रुप से प्रकट हुआ है ऐसी इनकी पूर्ण निष्ठा थी। ज्ञान के साथ-साथ भक्ति का संयोग हो जाने से इनकी वाणी में अतीव मृदुता और मधुरता आ गयी थी। | ||
01:02, 8 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
महाराष्ट्र में श्रीकृष्ण-भक्ति
ज्ञानेश्वरजी की ‘घोंगडी’ भी बड़ी लाजवाब है। घोंगडी का अर्थ है कम्बल, और इस कम्बल अर्थात हमारी देह कैसी है ? वह काम, कर्म अविद्या और पंचभूतों से बनी हुए एवं षड्विकारों तथा षडरिपुओं से भरी हुई है और यह तो प्रकट ही है कि उसमें नौ छेद है, ‘नवद्वारे पुरे देही’ इसके विपरीत भगवान की कम्बल अर्थात उनकी देह देखिये, कितनी सुन्दर है- स्वागत सच्चिदानंदें मिलोनी शुद्ध सत्त्वमगुणें विणली रे । वह सत् चित् आनंद और शुद्ध सत्वगुणों से बुनी हुई है। जिसमें षडगुणरूपी रत्नी जड़े हुए हैं। हे कान्ह ! तेरी कम्बल तो बहुत अच्छी है फिर हमें ही तूने यह चिथड़ा क्यों दे रखा है? इस प्रकार इन सन्त महात्माओं ने वेदान्त के रहस्यों को सर्वसाधारण की भाषा में विनोदात्मक तथा विवेचनात्मक पद्यों के द्वारा इस खूबी के साथ व्यक्त किया है कि जिससे वे लोगों की समझ में सरलता से आ जाते हैं और अनायास ही वे उन्हें आचरण में ला सकते हैं। इनके ये पद्य महाराष्ट्र के घर घर में स्त्रियों और बच्चों तक की जीभ पर रहते हैं। नामदेव (शाके 1192-1272) ये बड़े प्रेमी विट्ठल भक्त थे। विट्ठल भक्ति का प्रचार करने का श्रेय इन्हें ही प्राप्त है। इनका जन्म दर्जी जाति में हुआ था। |