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'''मन बानी परे जेहि वेद बतावैं ।। 1 ।।''' | '''मन बानी परे जेहि वेद बतावैं ।। 1 ।।''' | ||
'''इतै रघुनन्द न नाम प्रसिद्ध''' | '''इतै रघुनन्द न नाम प्रसिद्ध''' | ||
− | '''उतै सब लोग | + | '''उतै सब लोग कहें यदुराई ।''' |
'''इतै ॠषिनारि पषानते तारि''' | '''इतै ॠषिनारि पषानते तारि''' | ||
'''उतै कुबरी पटरानी बनाई ।।''' | '''उतै कुबरी पटरानी बनाई ।।''' |
01:02, 8 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
श्रीराम-कृष्ण का ऐक्य
1. न नन्द सूनो: पृथगस्ति रामो रामोपासक कहता है कि दोनों अभेद हैं पर हमारे मन को तो श्री लक्ष्मण सहित श्रीरामजी का ध्यान ही भाता है। इसी प्रकार कृष्णोपासक और शिवोपासक अभेद मानते हुए अपने मन को श्रीकृष्ण और श्री शिवरुप रुचिकर बताते हैं। यह है एकता में अनन्यता। स्वरुपानन्य भक्त को इसी मार्ग का अवलम्ब लेना चाहिये। भगवत के किसी भी रुप की निन्दा करना अपने ही इष्ट की निन्दा है इससे सदैव सचेत रहनाउचित है। अब यह प्रसंग श्रीशिवानंद जी और गोकुलदासजी के पद देकर समाप्त किया जाता है। अन्त में कुछ चरितों का मिलान किया जाएगा जो संभवत: दूसरे किसीके लेख में न हों। इतही नृप कौसलराज-किशोर
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