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<poem style="text-align:center">'''एषोअर्जुनो नात्र विचार्यमस्ति''' | <poem style="text-align:center">'''एषोअर्जुनो नात्र विचार्यमस्ति''' | ||
'''यद्यस्मि संकर्षण वासुदेव: ।।'''</poem> | '''यद्यस्मि संकर्षण वासुदेव: ।।'''</poem> | ||
− | जब अर्जुन ने धनुष को सफलतापूर्वक चढ़ा दिया और वहाँ उपस्थित अन्यान्य राजकुमार उसमें | + | जब अर्जुन ने धनुष को सफलतापूर्वक चढ़ा दिया और वहाँ उपस्थित अन्यान्य राजकुमार उसमें ईर्ष्यात करने लगे एवं सबसे एक साथ मिलकर अर्जुन को परास्त करना चाहा तब श्रीकृष्ण पाट्टाला नगरी में ही रहे और विवाहोत्सव के समय पाण्डवों के बहुमूल्य उपहारों से मलामाल कर दिया। उन्होंने पाण्डवों को इन्द्रप्रस्थ में स्वतन्न्न राज्य स्थापित करने में सहायता दी। तदनन्तर बहुत दिनों तक वे उनके साथ रहे। धर्मपूर्वक जीवन बिताने में श्रीकृष्ण पाण्डवों के नित्य मार्गदर्शक रहे। |
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01:16, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
पाण्डव बन्धु श्रीकृष्ण
जरा उक्त दोनों अवसरों की परिस्थिति पर विचार कीजिये। वहाँ यदि नारायण प्रहलाद के दुष्ट पिता-माता (हिरण्यकशिपु) को दण्ड देने के लिये इतने शीघ्र तैयार न होने तो बालक प्रहलाद अत्यन्त कष्ट देकर मार दिया जाता। परन्तु पाण्डवों की स्थिति इससे बिलकुल विपरीत थी। श्रीकृष्ण ने मनुष्य की पूर्ण आयु व्यतीत कर अपने सम्पूर्ण जीवन में संसार को व्यावहारिक उदाहरणों के द्वार यह दिया कि जो लोग ईश्वर में निष्टा रखते हुए अपना कर्तव्य पालन करते हैं उनकी संकट के समय रक्षा करने और मृत्यु के बाद उन्हे बारम्बार जन्म ने और मरने के संकट से छुडा़ देने का मैं जिम्मा लेता हुँ। पाण्डवों के साथ श्रीकृष्ण का दोहरा सम्बन्ध था; वे उनके बान्ध्व थे और हार्दिक प्रेमी थे। वे पाण्डवों के स्वामी और सखा दोनों थे। यद्यपि श्रीकृष्ण के साथ दुर्योधन का पारिवारिक संबंध वैसा ही था तथापि वह अपने दर्प अभिमान और पाप-वृत्तियों के अनुकूल ही होते थे। एषोअर्जुनो नात्र विचार्यमस्ति जब अर्जुन ने धनुष को सफलतापूर्वक चढ़ा दिया और वहाँ उपस्थित अन्यान्य राजकुमार उसमें ईर्ष्यात करने लगे एवं सबसे एक साथ मिलकर अर्जुन को परास्त करना चाहा तब श्रीकृष्ण पाट्टाला नगरी में ही रहे और विवाहोत्सव के समय पाण्डवों के बहुमूल्य उपहारों से मलामाल कर दिया। उन्होंने पाण्डवों को इन्द्रप्रस्थ में स्वतन्न्न राज्य स्थापित करने में सहायता दी। तदनन्तर बहुत दिनों तक वे उनके साथ रहे। धर्मपूर्वक जीवन बिताने में श्रीकृष्ण पाण्डवों के नित्य मार्गदर्शक रहे। |