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;भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन। | ;भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन। | ||
;ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप ॥</poem> | ;ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप ॥</poem> | ||
− | हे श्रेष्ठ तप वाले [[अर्जुन]] ! अनन्य भक्ति करके तो इस प्रकार मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये और तत्त्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात एकीभाव से | + | हे श्रेष्ठ तप वाले [[अर्जुन]] ! अनन्य भक्ति करके तो इस प्रकार मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये और तत्त्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ। |
विचार करने पर यह प्रतीत होगा कि ऐसा होना युक्तिसंगत ही है। प्रह्लाद को भगवान ने खम्भे में से प्रकट होकर दर्शन दिये थे। इस प्रकार भगवान के प्रकट होने के अनेक प्रमाण शास्त्रों में विभिन्न स्थलों पर मिलते हैं। सर्वशक्तिमान् परमात्मा तो असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं, फिर यह तो सर्वथा युक्तिसंगत है। भगवान जब सर्वत्र विद्यमान हैं तब उनका स्तम्भ में से प्रकट हो जाना कौन आश्चर्य की बात है ? यदि यह कहें कि निराकार सर्वव्यापक परमात्मा एक देश में पूर्णरूप से कैसे प्रकट हो सकते हैं तो इसको समझाने के लिये हम अग्नि का उदाहरण सामने रखते हैं, यद्यपि यह सम्पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं है क्योंकि परमात्मा के सदृश व्यापक वस्तु अन्य कोई है ही नहीं, जिसकी परमात्मा के साथ तुलना की जा सके। | विचार करने पर यह प्रतीत होगा कि ऐसा होना युक्तिसंगत ही है। प्रह्लाद को भगवान ने खम्भे में से प्रकट होकर दर्शन दिये थे। इस प्रकार भगवान के प्रकट होने के अनेक प्रमाण शास्त्रों में विभिन्न स्थलों पर मिलते हैं। सर्वशक्तिमान् परमात्मा तो असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं, फिर यह तो सर्वथा युक्तिसंगत है। भगवान जब सर्वत्र विद्यमान हैं तब उनका स्तम्भ में से प्रकट हो जाना कौन आश्चर्य की बात है ? यदि यह कहें कि निराकार सर्वव्यापक परमात्मा एक देश में पूर्णरूप से कैसे प्रकट हो सकते हैं तो इसको समझाने के लिये हम अग्नि का उदाहरण सामने रखते हैं, यद्यपि यह सम्पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं है क्योंकि परमात्मा के सदृश व्यापक वस्तु अन्य कोई है ही नहीं, जिसकी परमात्मा के साथ तुलना की जा सके। |
01:02, 8 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
जन्म कर्म च मे दिव्यम
भौतिक विषय को तो उसके क्रियासाय होने के कारण विज्ञान के जानने वाले किसी भी समय प्रकट करके उस पर विश्वास करा भी सकते हैं। किन्तु परमात्मा सम्बन्धी विषय बड़ा ही विलक्षण है। प्रेम और श्रद्धा से स्वयमेव निरन्तर उपासना करके ही मनुष्य इस तत्त्व का प्रत्यक्ष कर सकता है। कोई भी दूसरा मनुष्य अपनी मानवी शक्ति से इसे प्रकट करके नहीं दिखला सकता।
हे श्रेष्ठ तप वाले अर्जुन ! अनन्य भक्ति करके तो इस प्रकार मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये और तत्त्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ। विचार करने पर यह प्रतीत होगा कि ऐसा होना युक्तिसंगत ही है। प्रह्लाद को भगवान ने खम्भे में से प्रकट होकर दर्शन दिये थे। इस प्रकार भगवान के प्रकट होने के अनेक प्रमाण शास्त्रों में विभिन्न स्थलों पर मिलते हैं। सर्वशक्तिमान् परमात्मा तो असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं, फिर यह तो सर्वथा युक्तिसंगत है। भगवान जब सर्वत्र विद्यमान हैं तब उनका स्तम्भ में से प्रकट हो जाना कौन आश्चर्य की बात है ? यदि यह कहें कि निराकार सर्वव्यापक परमात्मा एक देश में पूर्णरूप से कैसे प्रकट हो सकते हैं तो इसको समझाने के लिये हम अग्नि का उदाहरण सामने रखते हैं, यद्यपि यह सम्पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं है क्योंकि परमात्मा के सदृश व्यापक वस्तु अन्य कोई है ही नहीं, जिसकी परमात्मा के साथ तुलना की जा सके। |