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− | बताओ, अब हम कैसे व्रज को लौटें ? कहो, यदि तुम्हीं उपेक्षा करते हो तो हम क्या करे ? तुम्हारी हास्यमयी दृष्टि और तुम्हारे मधुमय गान ने हमारे प्राण और मन को तुम्हारी संगलिप्सा के लिये उन्मत्त बना दिया है। तुम अपने अधरामृत की धारा से हमारे हृदयानल को शान्त करो। तुम्हें भजने पर क्या ‘काम’ कहीं रह सकता है ? हे सखा ! यदि तुम वंचित करते हो तो हम विरहानल में दग्धदेह होकर तुम्हारे चरण तल की सत्रिधि प्राप्त करेंगी। हे अम्बुजाक्ष ! तुम्हारा चरणतल कमला को आन्नद प्रदान करता है। हे अरण्यजन प्रिय ! तुम्हारे उस चरणतल का हमने जिस क्षण स्पर्श किया था, उस अरण्य में जिस क्षण तुमने हम लोगों को आनन्द प्रदान किया था, उसी क्षण से हम तुम्हें छोड़कर अन्य किसी के पास नहीं रह सकतीं। जिस कमलादेवी का कृपाकटाक्ष प्राप्त करने के लिये देवता लोग सदा लालायित रहते हैं, वह लक्ष्मी तुम्हारे हृदय में स्थान पाकर भी तुलसी के साथ सपत्नी भाव से | + | बताओ, अब हम कैसे व्रज को लौटें ? कहो, यदि तुम्हीं उपेक्षा करते हो तो हम क्या करे ? तुम्हारी हास्यमयी दृष्टि और तुम्हारे मधुमय गान ने हमारे प्राण और मन को तुम्हारी संगलिप्सा के लिये उन्मत्त बना दिया है। तुम अपने अधरामृत की धारा से हमारे हृदयानल को शान्त करो। तुम्हें भजने पर क्या ‘काम’ कहीं रह सकता है ? हे सखा ! यदि तुम वंचित करते हो तो हम विरहानल में दग्धदेह होकर तुम्हारे चरण तल की सत्रिधि प्राप्त करेंगी। हे अम्बुजाक्ष ! तुम्हारा चरणतल कमला को आन्नद प्रदान करता है। हे अरण्यजन प्रिय ! तुम्हारे उस चरणतल का हमने जिस क्षण स्पर्श किया था, उस अरण्य में जिस क्षण तुमने हम लोगों को आनन्द प्रदान किया था, उसी क्षण से हम तुम्हें छोड़कर अन्य किसी के पास नहीं रह सकतीं। जिस कमलादेवी का कृपाकटाक्ष प्राप्त करने के लिये देवता लोग सदा लालायित रहते हैं, वह लक्ष्मी तुम्हारे हृदय में स्थान पाकर भी तुलसी के साथ सपत्नी भाव से ईर्ष्या करती हैं। तुलसी ने जिन चरणों को प्राप्त किया था हम भी तुम्हारे उन्हीं चरणों की रजत शरण लेती हैं। हे पापनाशन ! हमारे प्रति प्रसन्न होओ ! तुम्हारी उपासना के निमित्त हमारे पास जो कुछ था, वही लेकर आज हम यहाँ आये हैं। हे पुरुषभूषण।<br /> |
हमें तुम्हारी दासी बनने दो। तुम्हारा मुखमण्डल सुन्दर अलकों से आवृत हैं, और गण्डस्थल में सुन्दर कुण्डल शोभा फैला रहे हैं। तुम्हारे अधरों में सुधा भरी है और उनसे हास्य का हसित कटाक्ष विक्षित हो रहा है। तुम्हारे यह भुजदण्ड अभय दान करते हैं। तुम्हारा वक्षःस्थल लक्ष्मी को रति प्रदान करता है। यह सब देखकर जगत में कौन नहीं तुम्हारी दासी होने की कामना करेगी ? त्रिभुवन में कौन ऐसी कामिनी है जो तुम्हारे ललितकान्त अमृतमय वेणु-गीत को सुनकर मोहित हो संसारपथ से विचलित न होगी ? तुम्हारे इस त्रिभुवन मोहन स्वरूप को देखकर पशु, पक्षी, मृग, गौ-यहाँ तक कि वृक्ष-गुल्मादि भी रोमाचिंत हो उठते हैं। हम निश्चयपूर्वक जानती हैं कि जिस प्रकार आदिपुरुष देवलोक के रक्षक होकर अवतीर्ण होते हैं, तुम भी उसी प्रकार व्रज के पीडितों के बन्धु ! हमारे उत्तम हृदय और मस्तक पर अपने सुशीतल करकमलों को प्रदान करो। हम तुम्हारी किकरी है !’ कालिन्दी का वही ज्योत्स्ना-स्नान तट है। तीरस्थ भूमि पर शीतल बालुका-कण बिछे हुए हैं। मन्द-मन्द सुशील सुगन्ध-समीकरण प्रवाहित हो रहा है। श्रीकृष्ण ने अब और अधिक परीक्षा नहीं ली। उन्होंने गोपिकाओं की आशा पूरी की। | हमें तुम्हारी दासी बनने दो। तुम्हारा मुखमण्डल सुन्दर अलकों से आवृत हैं, और गण्डस्थल में सुन्दर कुण्डल शोभा फैला रहे हैं। तुम्हारे अधरों में सुधा भरी है और उनसे हास्य का हसित कटाक्ष विक्षित हो रहा है। तुम्हारे यह भुजदण्ड अभय दान करते हैं। तुम्हारा वक्षःस्थल लक्ष्मी को रति प्रदान करता है। यह सब देखकर जगत में कौन नहीं तुम्हारी दासी होने की कामना करेगी ? त्रिभुवन में कौन ऐसी कामिनी है जो तुम्हारे ललितकान्त अमृतमय वेणु-गीत को सुनकर मोहित हो संसारपथ से विचलित न होगी ? तुम्हारे इस त्रिभुवन मोहन स्वरूप को देखकर पशु, पक्षी, मृग, गौ-यहाँ तक कि वृक्ष-गुल्मादि भी रोमाचिंत हो उठते हैं। हम निश्चयपूर्वक जानती हैं कि जिस प्रकार आदिपुरुष देवलोक के रक्षक होकर अवतीर्ण होते हैं, तुम भी उसी प्रकार व्रज के पीडितों के बन्धु ! हमारे उत्तम हृदय और मस्तक पर अपने सुशीतल करकमलों को प्रदान करो। हम तुम्हारी किकरी है !’ कालिन्दी का वही ज्योत्स्ना-स्नान तट है। तीरस्थ भूमि पर शीतल बालुका-कण बिछे हुए हैं। मन्द-मन्द सुशील सुगन्ध-समीकरण प्रवाहित हो रहा है। श्रीकृष्ण ने अब और अधिक परीक्षा नहीं ली। उन्होंने गोपिकाओं की आशा पूरी की। | ||
01:17, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
रासलीला
बताओ, अब हम कैसे व्रज को लौटें ? कहो, यदि तुम्हीं उपेक्षा करते हो तो हम क्या करे ? तुम्हारी हास्यमयी दृष्टि और तुम्हारे मधुमय गान ने हमारे प्राण और मन को तुम्हारी संगलिप्सा के लिये उन्मत्त बना दिया है। तुम अपने अधरामृत की धारा से हमारे हृदयानल को शान्त करो। तुम्हें भजने पर क्या ‘काम’ कहीं रह सकता है ? हे सखा ! यदि तुम वंचित करते हो तो हम विरहानल में दग्धदेह होकर तुम्हारे चरण तल की सत्रिधि प्राप्त करेंगी। हे अम्बुजाक्ष ! तुम्हारा चरणतल कमला को आन्नद प्रदान करता है। हे अरण्यजन प्रिय ! तुम्हारे उस चरणतल का हमने जिस क्षण स्पर्श किया था, उस अरण्य में जिस क्षण तुमने हम लोगों को आनन्द प्रदान किया था, उसी क्षण से हम तुम्हें छोड़कर अन्य किसी के पास नहीं रह सकतीं। जिस कमलादेवी का कृपाकटाक्ष प्राप्त करने के लिये देवता लोग सदा लालायित रहते हैं, वह लक्ष्मी तुम्हारे हृदय में स्थान पाकर भी तुलसी के साथ सपत्नी भाव से ईर्ष्या करती हैं। तुलसी ने जिन चरणों को प्राप्त किया था हम भी तुम्हारे उन्हीं चरणों की रजत शरण लेती हैं। हे पापनाशन ! हमारे प्रति प्रसन्न होओ ! तुम्हारी उपासना के निमित्त हमारे पास जो कुछ था, वही लेकर आज हम यहाँ आये हैं। हे पुरुषभूषण। |