श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण
इस अवतार का नाम श्रीकृष्ण है। ‘कृष्ण’ शब्द की व्युत्पत्ति चाहे जैसी हो, निर्वचन के द्वारा जो अर्थ जाना जाता है, वही मान्य है- कृषिर्भूवाचकश्शब्दो णश्च निवृतिवाचक:। इस निर्वचन से ‘कृष्ण’ शब्द का मुख्य अर्थ भूमि को सुख पहुँचाने वाला होता है। यद्यपि इसी निर्वचन को आधार मानते हुए कुद व्याक्ष्याकारों ने अपनी इच्छानुसार अर्थान्तर भी किया है, किन्तु हमारी राय में ‘भूमि को सुख पहुँचाने वाला’ यही अर्थ ठीक है। भूमि शब्द से खास भूमिदेवी ली जाय तो देवकीपुत्र वासुदेव में कृष्णत्व की उत्पत्ति भागवत-कथानुसार स्पष्ट है। भूमि-देवी की प्रार्थना का ही फल है श्रीकृष्णावतार। यह बात भागवत से सिद्ध होती है। भूमिर्दृप्तनृपव्याजदैत्यानीकशतायुतै:। यहाँ से श्रीकृष्ण-चरित का प्रारम्भ होता है। असुर-राक्षस, दुष्ट-क्षत्रिय-पीड़ित भूलोकवासी जनसमुदाय का दुःख श्रीकृष्ण भगवान ने उन दुष्टों का संहार करके दूर किया है, अतएव ‘भूमि’ शब्द से भूलोकवासियों को लेने पर भी कृष्ण-शब्द की उत्पत्ति हो जाती है। परमात्मा के साक्षात पूर्णावतार श्रीकृष्ण भगवान ने भूलोक में अवतार लेकर असंख्य साधुजनों का इष्टानिष्ट प्राप्ति-परिहार के द्वारा परित्राण कर अवतार-प्रयोजन सिद्ध किया है, यह श्रीकृष्ण चरित से स्पष्ट है। केवल षोडष सहस्र गोपिकाएँ ही नहीं, द्वारकावासी असंख्य प्रेमीजनों को भगवद्दर्शन स्पर्शनालापादि द्वारा जो सन्तोष पहुँचा है, वह साधुपरित्राण का एक छोटा उदाहरण है। ये गोपिकाएँ कौन थीं? उनके पूर्व-जन्म-वृत्तान्त का विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे सब भगवदनुभवकामी साधुजन ही थे। अक्रूर-मालाकार आदि भक्तवृन्द एवं असंख्य ऋषि-मुनिजन, जिनको भगवान ने दर्शन आदि से सुखी किया है, वे सब साधु नहीं तो और कौन हैं ? हम लोगों को श्रीकृष्णावतार के द्वारा किन-किन साधुओं का उद्धार हुआ था, इसका पूरा ज्ञान ही नहीं है, भागवत आदि के द्वारा जो मालूम होता है उसी से सन्तुष्ट रहना पड़ता है, परन्तु इन पुराणों में जिनका उल्लेख हुआ है, उनके सिवा भी हजारों साधुओं का परित्राण हुआ होगा। इसमें सन्देह ही नहीं। श्रीकृष्णावतार के द्वारा नृग आदि अनेक भक्तों का उद्धार हुआ है, यह सबको मालूम ही है। अतएव पूर्णावतार श्रीकृष्णावातार भगवदवतारों में मुख्य स्थान रखता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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