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'''आठौं सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाय चराय बिसारौं ।।''' | '''आठौं सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाय चराय बिसारौं ।।''' | ||
'''कोटिनहु कलधौत के धाम करील की कुंजन ऊपर वारौं ।''' | '''कोटिनहु कलधौत के धाम करील की कुंजन ऊपर वारौं ।''' | ||
− | '''रसखानि | + | '''रसखानि कहें इन नैननतें व्रज के बन बाग तडाग निहारौं ।।'''</poem> |
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01:02, 8 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
मुसलमान कवि और भगवान श्रीकृष्ण
उन्हें इस प्रकार छोड़कर चले जाने के लिये व्रजवासियों की ओर से रहीम भगवान श्रीकृष्ण को उलाहना देते हैं– जो रहीम करिबो हुतो, व्रज को यही हवाल । सय्यद, इब्राहीम रसखानि भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे मुरलीधर की भक्ति में ऐसे डूब गये थे कि उनकी केवल यही आकांक्षा रहती थी– मानुस होहुं वही रसखानि बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन । वे भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे, श्रीकृष्ण-भूमि के भक्त थे और भगवान श्रीकृष्ण का जितनी भी चीजों से सम्बन्ध रहा है– व्रज, वृन्दावन, यमुना, व्रज की मिट्टी, पेड़-पौधे, गौवें-ग्वाल इत्यादि उन सबके अनन्य भक्त थे। वे उन चीजों के लिये संसार की बड़ी से बड़ी सम्पदा निछावर करने के लिये प्रस्तुत थे– या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहुं पुर को तजि डारौं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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