छो (Text replacement - " । " to "। ") |
छो (Text replacement - "परनतु" to "परन्तु") |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
यह सुनकर ॠषिराज बहुत प्रसन्न हुए। फिर मंद स्वर से बोले- नारदजी कहते हैं, तुम वही हो। श्रीभगवान ने मस्तक झुकाकर मुस्कराते हुए कहा- नारदजी यों ही कुछ कह दिया करते हैं। उसपर विशेष ध्यान नहीं देना चाहिये। ॠषिराज- नहीं, नहीं। नारदजी पते की बात कहते हैं। बताओ, तुम वही हो न ? | यह सुनकर ॠषिराज बहुत प्रसन्न हुए। फिर मंद स्वर से बोले- नारदजी कहते हैं, तुम वही हो। श्रीभगवान ने मस्तक झुकाकर मुस्कराते हुए कहा- नारदजी यों ही कुछ कह दिया करते हैं। उसपर विशेष ध्यान नहीं देना चाहिये। ॠषिराज- नहीं, नहीं। नारदजी पते की बात कहते हैं। बताओ, तुम वही हो न ? | ||
श्रीभगवान- यदि मैं इस मार्मिक प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर देता हूँ तो आपके भाव बदल जाने से मैं आपका वात्सल्य खो दूंगा। कह नहीं सकता कि तब आपकी कैसी दशा हो जाये। इसलिये प्रार्थना है कि एक बार मुझे फिर छलिया बनने दीजिये, फिर उत्तर सुनिये। ॠषिराज- ‘अरे तू व़हीं है, छलिया भी है और फिर एक बार छलिया बनना चाहता है। अच्छा बन। मैं भी देखूं कि तु क्या छलबल दिखाता है ? भागवान ॠषि की बात सुनते जाते थे और नारदजी की ओर ताककर मुस्कराते भी जाते थे। यह अपूर्व दृश्य था। राजा बहुलाश्व यह लीला देखकर दंग रह गया। उसका प्रश्न तो ज्यों का त्यों पड़ा ही रह गया। भगवान ने उत्तर ही नहीं दिया, टाल दिया। <br /> | श्रीभगवान- यदि मैं इस मार्मिक प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर देता हूँ तो आपके भाव बदल जाने से मैं आपका वात्सल्य खो दूंगा। कह नहीं सकता कि तब आपकी कैसी दशा हो जाये। इसलिये प्रार्थना है कि एक बार मुझे फिर छलिया बनने दीजिये, फिर उत्तर सुनिये। ॠषिराज- ‘अरे तू व़हीं है, छलिया भी है और फिर एक बार छलिया बनना चाहता है। अच्छा बन। मैं भी देखूं कि तु क्या छलबल दिखाता है ? भागवान ॠषि की बात सुनते जाते थे और नारदजी की ओर ताककर मुस्कराते भी जाते थे। यह अपूर्व दृश्य था। राजा बहुलाश्व यह लीला देखकर दंग रह गया। उसका प्रश्न तो ज्यों का त्यों पड़ा ही रह गया। भगवान ने उत्तर ही नहीं दिया, टाल दिया। <br /> | ||
− | इधर भगवान को ही बहुत से प्रश्नों के उत्तर देने पडे़। तिसपर भी अभी उनकी इतिश्री नहीं हुई। नारदजी ने अवसर पाकर कहा- ‘महाराजजी ! कुछ सेवा-सत्कार ग्रहण कीजिये, कुछ मधुर फल खाइये, तब स्थिरता से बातें कीजियेगा। ऐसा ही हुआ ! भगवान ने अपने हाथों सारी सेवा की। बाबा को अच्छी तरह जिमाया। अनन्तर सुन्दर सुसज्जित पलंग पर शयन कराकर स्वयं पांव चप्पी करने लगे। | + | इधर भगवान को ही बहुत से प्रश्नों के उत्तर देने पडे़। तिसपर भी अभी उनकी इतिश्री नहीं हुई। नारदजी ने अवसर पाकर कहा- ‘महाराजजी ! कुछ सेवा-सत्कार ग्रहण कीजिये, कुछ मधुर फल खाइये, तब स्थिरता से बातें कीजियेगा। ऐसा ही हुआ ! भगवान ने अपने हाथों सारी सेवा की। बाबा को अच्छी तरह जिमाया। अनन्तर सुन्दर सुसज्जित पलंग पर शयन कराकर स्वयं पांव चप्पी करने लगे। परन्तु ॠषिराज को नींद नहीं आयी। नारदजी ने वीणा बजाकर भजन गाये। पर वह रंग नहीं बंधा कि निद्रा आवे। बाबाजी उठ बैठे कहने लगे- ‘ मैं सदा जागता रहता हूँ मुझे नींद पसन्द नहीं ।समाधि में नींद से कही बढ़कर आनंद है, उसी से मेरी तृप्ति हो जाती है। मुझे निद्रा की क्या आवश्यकता है। मुझे सुलाने के लिए तुम व्यर्थ चेष्टा क्यों कर रहे हो ? भगवान ने कहा- अच्छा, चलिये, प्रमोदवन को चलें वहाँ का अपूर्व दृश्य देखें। सब लोग चल पडे़। मार्ग में बातें होती जाती थीं। नारदजी ने पूर्व प्रसंग को जाग्रत करते हुए कहा-बहुत भ्रमण करने और स्थान-स्थान का व्यवहार देखने से विदित होता है कि संसार छल कपट से ओत-प्रोत है। |
| style="vertical-align:bottom;"| | | style="vertical-align:bottom;"| |
01:02, 8 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण-रहस्य
यह सुनकर ॠषिराज बहुत प्रसन्न हुए। फिर मंद स्वर से बोले- नारदजी कहते हैं, तुम वही हो। श्रीभगवान ने मस्तक झुकाकर मुस्कराते हुए कहा- नारदजी यों ही कुछ कह दिया करते हैं। उसपर विशेष ध्यान नहीं देना चाहिये। ॠषिराज- नहीं, नहीं। नारदजी पते की बात कहते हैं। बताओ, तुम वही हो न ?
श्रीभगवान- यदि मैं इस मार्मिक प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर देता हूँ तो आपके भाव बदल जाने से मैं आपका वात्सल्य खो दूंगा। कह नहीं सकता कि तब आपकी कैसी दशा हो जाये। इसलिये प्रार्थना है कि एक बार मुझे फिर छलिया बनने दीजिये, फिर उत्तर सुनिये। ॠषिराज- ‘अरे तू व़हीं है, छलिया भी है और फिर एक बार छलिया बनना चाहता है। अच्छा बन। मैं भी देखूं कि तु क्या छलबल दिखाता है ? भागवान ॠषि की बात सुनते जाते थे और नारदजी की ओर ताककर मुस्कराते भी जाते थे। यह अपूर्व दृश्य था। राजा बहुलाश्व यह लीला देखकर दंग रह गया। उसका प्रश्न तो ज्यों का त्यों पड़ा ही रह गया। भगवान ने उत्तर ही नहीं दिया, टाल दिया। |