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− | इसके | + | इसके पश्चात् भगवान ने विराटरूप प्रकट किया जिसे देखकर कर्ण, दुर्योधनादि मूर्च्छित हो गये और फिर आप सभा से उठकर चल दिये। इनके पीछे-पीछे भीष्म, द्रोण, कृप, विदुर, धृतराष्ट्र अश्वत्थामा, युयुत्सु, विकर्ण आदि महारथी लोग विनीत शिष्य की भाँति इन्हें पहुँचाने प्रधान द्वार तक आये। |
− | पूर्वोक्त कतिपय प्रकारणों के उद्धृत करने से हमारा यह तात्पर्य है कि भगवान श्रीकृष्ण को उनके समकालीन बडे़-से-बडे़ लोग ईश्वर समझते थे और उनकी अलौकिक शक्तियों के कायल थे। साथ ही वह स्वयं भी जन्म से ही अपनी दिव्य शक्तियों के ज्ञाता और प्रयोक्ता बराबर रहे। हम यह तो नहीं कहते कि उस समय श्रीकृष्ण का कोई विरोधी था ही नहीं। यदि ऐसा होता तो उनके अवतार का कुछ प्रयोजन ही नहीं रह जाता। केवल मक्खन खाने और गौएँ चराने के लिये तो वह अवतीर्ण हुए ही नहीं थे। हमारे का अभिप्राय केवल इतना ही है कि महर्षि व्यास, आदित्य ब्रह्मचारी भीष्मपितामह, ब्रह्मविद्या और | + | पूर्वोक्त कतिपय प्रकारणों के उद्धृत करने से हमारा यह तात्पर्य है कि [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] को उनके समकालीन बडे़-से-बडे़ लोग ईश्वर समझते थे और उनकी अलौकिक शक्तियों के कायल थे। साथ ही वह स्वयं भी जन्म से ही अपनी दिव्य शक्तियों के ज्ञाता और प्रयोक्ता बराबर रहे। हम यह तो नहीं कहते कि उस समय श्रीकृष्ण का कोई विरोधी था ही नहीं। यदि ऐसा होता तो उनके अवतार का कुछ प्रयोजन ही नहीं रह जाता। केवल मक्खन खाने और गौएँ चराने के लिये तो वह अवतीर्ण हुए ही नहीं थे। हमारे का अभिप्राय केवल इतना ही है कि महर्षि व्यास, आदित्य ब्रह्मचारी भीष्मपितामह, ब्रह्मविद्या और क्षत्राविद्या की प्रत्यक्षमूर्ति आचार्य द्रोण आदि महानुभावों के आगे कंस, चाणूर और शिशुपाल आदि स्वार्थप्रधान तामस व्यक्ति किस गिनती में थे ? |
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12:08, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण
विदुर:— इसके पश्चात् भगवान ने विराटरूप प्रकट किया जिसे देखकर कर्ण, दुर्योधनादि मूर्च्छित हो गये और फिर आप सभा से उठकर चल दिये। इनके पीछे-पीछे भीष्म, द्रोण, कृप, विदुर, धृतराष्ट्र अश्वत्थामा, युयुत्सु, विकर्ण आदि महारथी लोग विनीत शिष्य की भाँति इन्हें पहुँचाने प्रधान द्वार तक आये। पूर्वोक्त कतिपय प्रकारणों के उद्धृत करने से हमारा यह तात्पर्य है कि भगवान श्रीकृष्ण को उनके समकालीन बडे़-से-बडे़ लोग ईश्वर समझते थे और उनकी अलौकिक शक्तियों के कायल थे। साथ ही वह स्वयं भी जन्म से ही अपनी दिव्य शक्तियों के ज्ञाता और प्रयोक्ता बराबर रहे। हम यह तो नहीं कहते कि उस समय श्रीकृष्ण का कोई विरोधी था ही नहीं। यदि ऐसा होता तो उनके अवतार का कुछ प्रयोजन ही नहीं रह जाता। केवल मक्खन खाने और गौएँ चराने के लिये तो वह अवतीर्ण हुए ही नहीं थे। हमारे का अभिप्राय केवल इतना ही है कि महर्षि व्यास, आदित्य ब्रह्मचारी भीष्मपितामह, ब्रह्मविद्या और क्षत्राविद्या की प्रत्यक्षमूर्ति आचार्य द्रोण आदि महानुभावों के आगे कंस, चाणूर और शिशुपाल आदि स्वार्थप्रधान तामस व्यक्ति किस गिनती में थे ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उद्योगपर्व, अ० 130