भागवत सुधा -करपात्री महाराजइसलिए तुलसीदास जी का दोहा बहुत काम करता है- नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून । भगवान का मंगलमय नाम अंक है। जितने साधन हैं शून्य हैं। शून्य बेकार नहीं होता, शून्य की बड़ी कीमत है। दस्तावेज लिखाओ, एक लाख (1,00000) रूपये का, लेकिन अंक तो एक ही होगा, बाँकी तो शून्य ही शून्य होगा। एक अंक एक शून्य=दस (10), एक अंक दो शून्य=सौ (100), एक अंक तीन शून्य= एक हजार (1000) एक अंक चार शून्य= दस हजार (10000), एक अंक पाँच शून्य = एक लाख (100000)। जो एक की कीमत है शून्य उसे दस गुना बढ़ाता चलता है। परन्तु हाँ इसमें अंक न रहे तो शून्य पाँच सौ बढ़ा लो, पर सब बेकार है। अंक हटालो शून्य बढ़ा दो तो कोई फायदा नहीं। अंक रहे शून्य बढ़ाते चले जाओ तो शून्य का बहुत महत्त्व है। यज्ञ करो, तप करो, जप करो, बिलवैश्वदेव करो। पर (राम नाम रूप) अंक मत भूलो। अंक हटा दोगे तो शून्य ही हो जायेगा। अंक रहते हुही शून्य का महत्त्व है। इसलिए ऐसा नहीं कि कलियुग में यज्ञ नहीं करना चाहिए, दान नहीं देना चाहिए, भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए, भगवान का ध्यान नहीं करना चाहिए। इसलिए सभी आचार्यां के यहाँ तमाम पूजा चल रही हैं। ये सब सम्प्रदाय ऐसे (बिना पूजन, यजन के) थोडे़ ही चल रहे हैं? यज्ञ भी हो रहा है, दान भी हो रहा है, जप भी हो रहा है, व्रत भी हो रहा है। पर सबका उद्देश्य यह है कि मूल चीज मत भूलो। वह है भगवान का मंगलमय नाम। इसलिए याज्ञिक लोग भी कहते हैं- यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु । (जिनके स्मरण तथा नामोच्चारण से तप और यज्ञ क्रियादि की न्यूनता मिटाकर उनकी पूर्ति हो जाती है, उन अच्युत भगवान की वन्दना अवश्य ही कर्मों की व्यंगग्यता (न्यूनता) को मिटा देती है।।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (दोहावली 10)
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