विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजपंचम-पुष्प4. तेषां के योगवित्तमाः’ का समाधानभगवान के पादारविन्द का, हस्तारविन्द का, मुखारविन्द-वदनारविन्द का ध्यान करो और उनकी महिमा का अनुसन्धान करो। भगवान की सुन्दरता का चिन्तन करो। पादारविन्द की, मुखारविन्द की स्वाभाविक सुन्दरता कैसी है, इसका चिन्तन करो। ऐसे ही भगवान के पादारबिन्द में त्रिवेणी है। पादारविन्द की नखमणिचन्द्रिका अंग है, पादारविन्द के तल की अरुणिमा सरस्वती है और ऊपर की नीलिमा यमुना। वहीं गंगा है, वहीं यमुना है, सरस्वती है त्रिवेणी में गोता लगाओ, त्रिवेणी का ध्यान करो। मन पवित्र हो जायगा। लोकोत्तर मुखचन्द्र के अनन्त सौन्दर्य, अनन्त माधुर्य का चिन्तन करो। ऐसा करते-करते मन की सब वृत्तियाँ दूर हो जाती हैं। भाई! मक्खी को देखो, क्या वह फूल पर बैठती है? बहुत सुगन्धित चमचमाते हुए केसर के चन्दन पर बैठती है? नहीं, मक्खी बैठती है मल-मूत्र पर। शास्त्र कहते हैं- विषयान् ध्यायतश्चित्तं विषयेषु विषज्जते। (जिस समय पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ मन के सहित स्थित हो जाती हैं और बुद्धि भी चेष्टा नहीं करती उस अवस्था को परम गति कहते हैं।) समासक्तं यथा चित्तं जन्तोर्विषयगोचरे। प्राणी का चित्त इन्द्रियों की प्रवृत्ति की भूमि विषय में जैसे भलीभाँति स्वभाव से आसक्त रहता है, वह ब्रह्म में यदि उसी प्रकार रम जाय तो भला कौन इस संसार से मुक्त न होगा?) धर्ममेघ समाधि का वर्णन पंचदशी में है- धर्ममेघमिमं प्राहुः समाधिं योगवित्तमाः। (योग वेत्ताओं में श्रेष्ठ तत्त्वज्ञ इस निर्विकल्प समाधि को धर्ममेघ कहते हैं, क्यों कि यह धर्मरूप अमृत की हजारों धाराओं को बरसाने लगती है।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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