विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजपंचम-पुष्प3. नाम-धाम-प्राणायाम और ध्यान से भगवत्प्राप्ति-यही हममें, आपमें हो जाय तो हम सिद्धों के सिद्ध, पीरों-के-पीर हो जाँय! हमारी आपकी वाणी झूठ न हो। हमारा आपका मन असत वस्तुओं का अनुसन्धान न करे। हमारी इन्द्रियाँ दुर्मार्ग में न जाँय। बस यही परम कल्याण का रास्ता है। जिज्ञासा हुई, इसका उपाय क्या है?’ ब्रह्मा जी ने कहा- मैंने उत्कट उत्कण्ठा युक्त मन से श्रीहरि के चरण-कमलों को पकड़ा है। अर्थात औत्कठद्यवान जो चित्त है, उसके द्वारा हरि पकड़ लिये गये हैं। ‘हृद।’ माने ‘मनसा’- चित्तं तु चेतो हृदयं स्वान्तः हृन्मानसं मनः।[1] ब्रह्मा जी के कहने का यह अभिप्राय है कि ‘उत्कट उत्कण्ठा युक्त मन से मैंने श्रीहरि को पकड़ा है, इसलिये मेरी वाणी झूठ नहीं बोलती है। मेरी इन्द्रियाँ दुर्मार्ग में नहीं जातीं। मेरा मन अनावश्यक वस्तुओं का चिन्तन नहीं करता।’ इन सब बातों के लिये भगवान का चिन्तन करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अमरकोष 1.7.277
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