भागवत सुधा -करपात्री महाराजश्री करपात्री जी महाराज ने स्वामी मस्तराम जी को भेजकर मुझे वहाँ बुलबाया। कल्याण परिवार में रहने के कारण बम्बई के लोगों से मेरा परिचय बहुत था। मेरे प्रवचन प्रारम्भ हुए। बम्बई के वाले के नाम से प्रसिद्ध ब्रह्मलीन श्री कृष्णानन्द जी को भी आमन्त्रित किया गया। उनके लिए अलग संकीर्तन मण्डप बना दिया गया। उत्तर भारतीयों का संगठन उनके साथ था। अखण्ड भगवन्नाम की ध्वनि से पास पड़ोस गूँज उठा। कुछ लोगों ने हरिजनों को भड़का दिया कि ये लोग हरिजनों से घृणा करते हैं तथा अस्पृश्य मानते हैं। श्री करपात्री जी महाराज ने स्वयं उनके साथ सम्पर्क स्थापित किया। उन्हें समझाकर उनके लिए एक अलग संकीर्तन मण्डप बनवा दिया। उनका भी नाम संकीर्तन होने लगा। भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के आचार्य इकट्ठे हुए थे। यह सब कहने का अभिप्राय यह है कि श्री करपात्री जी महाराज में संघटन को एक विशिष्ट शक्ति थी वे अपनी निपुणता, बुद्धि- कौशल एवं सौजन्य से विरोधियों को भी अपने अनुकूल बना लिया करते थे मुझ पर उनका सहज स्नेह था। उन्होंने धर्मसंध के अन्तर्गत सन्त-सम्मेलन का संघठन किया था, जिसमें अध्यक्ष थे वेद भगवान और उपाध्यक्षों में मेरा नाम भी था। लोगों ने मेरे व्याख्यान के लिए जब आग्रह किया और मैंने संकोच प्रकट किया तो भरी सभा में श्री करपात्री जी ने मुझे देखकर लोगों से कहा कि ये तो हमारे निधि हैं, इनको जैसे अनुकूल पड़े बैसे ठीक है, संकोच में डालने की आवश्यकता नहीं है। |
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