भागवत सुधा -करपात्री महाराजअन्त में ब्रह्मात्म-तत्त्व की महिमा सुनायी। ‘आत्मवित् ही शोक को तर सकता है’-तरति शोकमात्मवित्[1] धर्मार्थकुशलो धीमान् मेधावी धूतकल्मषः। (द्वैपायन व्यास से ही शूद्र जातीय स्त्री के गर्भ से विदुर जी का भी जन्म हुआ था वे धर्म और अर्थ के ज्ञान में निपुण बुद्धिमान, मेधावी और निष्पाप थे।) धृतराष्ट्र उवाच ( विदुर! क्या तुम उस तत्त्व को नहीं जानते, जिसे अब सनानत ऋषि मुझे बतावेंगे। यदि तुम्हारी बुद्धि कुछ भी काम देती हो तो तुम्ही मुझे उपदेश करो।) विदुर उवाच विदुर बोले- ‘राजन मैं जानता तो हूँ अवश्य, परन्तु मेरा जन्म शूद-स्त्री के गर्भ से हुआ है, अतः मैं जितना बता चुका उससे अधिक और कोई उपदेश नहीं दे सकता। कुमार सनत्सुजात का याबत ज्ञान है, मैं वह सब जानता हूँ, परन्तु वही उपदेश करेंगे।) ब्राह्मीं हि योनिमापन्नः सुगुह्यमपि यो वदेत्। (ब्राह्मण योनि में जिसका जन्म हुआ है वह यदि गोपनीय तत्त्व का प्रतिपादन कर दे तो देवताओं की निन्दा का पात्र नहीं बनता। इसी कारण मैं आपको ऐसा बता रहा हूँ।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ छान्दोग्योपनिषद् 7/1/3
- ↑ महाभारत आदि पर्व 63/114
- ↑ महाभारत उद्योगपर्व 41/4
- ↑ महाभारत उद्योग पर्व 41/5
- ↑ महाभारत उद्योग पर्व 41/6
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