भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
शृगाल वासुदेव
गायत्री का अनुष्ठान किया था उसने अनेक वर्षों तक। बिना शक्ति–सामर्थ्य वासुदेव कैसे रहता। शक्ति तो देव कृपा से मिलती है। उसके अनुष्ठान से प्रसन्न सूर्य ने उसे दिव्य रथ दिया था। यह रथ पाकर वह अजेय मानने लगा था अपने को। दमघोष जी ने श्री संकर्षण तथा श्रीकृष्ण से सम्मति लेकर शृगाल के पास संदेश भेजा–मथुरा से भगवान वासुदेव अपने अग्रज के साथ आपके अतिथि होकर पधारें हैं। करवीरपुर के बाह्योपवन में हमारा शिविर है। भगवान वासुदेव! जल उठा शृगाल सुनते ही–यह गोपकुमार वसुदेव का पुत्र, क्या बना, भगवान ही बन बैठा। अब यह मेरी स्पर्धा करने लगा है। करवीरपुर आ गया है और चाहता है कि मैं इसका आतिथ्य करूं। मैं भगवान वासुदेव इसकी पूजा करूं। अपने दिव्य रथ पर बैठ कर शृगाल उसी समय शिविर के समीप आ गया। उसने श्रीकृष्ण को बुलवाया और जब वे आ गए, बोला– "कृष्ण! तुम्हारा इस चतुर्भुज होने का रहस्य भली प्रकार समझता हूँ। लेकिन तुम अकेले हो और मेरे नगर में–मेरे राज्य में आए हो। मैं तुम्हें सेना के द्वारा घेर लूं, यह उचित नहीं है। तुम अकेले मुझसे युद्ध करो। पृथ्वी पर एक साथ दो वासुदेव नहीं रह सकते। हम दोनों में एक आज मारा जाएगा। संसार समझ लेगा कि वास्तविक वासुदेव कौन है।" हंसकर श्रीकृष्ण चंद्र बोले–तुम्हारी इच्छा पूरी हो। तुम सेना भी प्रयोग करना चाहो तो कर लो, पर पहले प्रहार कर लो। मैं तुम पर पहले प्रहार नहीं करूंगा, क्योंकि इससे प्रहार करने की तुम्हारी इच्छा मन में ही रह जाएगी। शृगाल पुत्र ने धनुष उठाया और बाणों की झड़ी लगा दी उसने। शरवर्षा में अपनी तुलना वह स्वयं था। उसकी कुशलता प्रशंसा योग्य थी, किंतु श्रीकृष्ण जब सुदर्शन उठा लेते हैं, भगवान प्रलयंकारी के भी दिव्यास्त्र व्यर्थ बन जाते हैं, यह तो सामान्य शर थे। चक्र ने उनके टुकड़े टुकड़े उड़ा दिए मार्ग में ही। शृगाल का भारी मस्तक चक्र से कट कर भूमि पर गिर पड़ा। उसका जीव–श्रीकृष्ण दर्शन करते, उनके चक्र से मर कर जीव को कहाँ जाना था। उसे सायुज्य प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण में लीन हो गया वह। शृगाल के सैनिकों में भगड़द मच गई। श्रीकृष्ण चंद्र ने उच्च स्वर से पुकार कर उन्हें अभय दिया–डरो मत! भगो मत! इस पापात्मा के अपराध के कारण में निरपराधों को नहीं मारूंगा। यह वीरव्रती नहीं था। घर आए अतिथि पर अकारण आक्रमण करके अपने पुण्य और आयु इसने स्वयं समाप्त कर ली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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