भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
चक्र–मौशल युद्ध
इतना वंश विवरण सुनाकर विकद्रु ने कहा– "जरासन्ध के समीप असंख्य सेना है। उसके साधन अमित हैं। वह राजाओं का इस सिरमौर है। हमारे पास थोड़ी सेना है। थोड़ी सामग्री है। मथुरा में सूखे काष्ठ का अभाव है इस समय। नगर की खाइयाँ भर गई हैं। बहुत दिनों से उनको स्वच्छ नहीं किया गया। नगर द्वार पर शतघ्नियाँ नहीं हैं। यह तो भगवान वासुदेव का प्रताप है कि अब तक नगर सुरक्षित है। अत: ये सर्वसमर्थ जो उचित समझें, हम सब उसका पालन करें।" "तात! आपने स्पष्ट सत्य कहा है।" श्रीकृष्ण चंद्र खड़े हुए बोले– "यह प्राचीनतम नगर बहुत काल से सैनिक दृष्टि से सम्हाला नहीं गया। नगर परिखा जीर्ण हो चुकी है। हमारे कुल के ही लोग दक्षिण भारत में हैं। उनसे सहायता पाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए, यह आपका संकेत उचित है। मैं अग्रज के साथ यहाँ नहीं हूँ, यह समाचार पाकर मगधराज हम दोनों का पीछा करेंगे। उनकी शत्रुता हमसे है। इस प्रकार मथुरा आक्रमण से कम से कम इस बार बच जाएगी। हम दोनों दक्षिण जाएंगे यह देखने कि कहीं से सहायता मिल सकती है या नहीं।" मथुरा के लोगों को यह रुचा नहीं, किंतु दूसरा उपाय भी नहीं था। भगवान वासुदेव को रोकने का प्रयत्न कोई किस बल पर करता? मगधराज की अपार सेना के सम्मुख प्रत्येक बार यही दोनों भाई गए। अत: दोनों भाइयों को विदा करना पड़ा। श्रीकृष्ण चंद्र ने सह्य पर्वत माला के समीप करवीरपुर पहुँच कर वाह्योपवन से ही रथ मथुरा लौटा दिया। करवीरपुर में प्रवेश उचित है या नहीं? अभी निर्णय नहीं हुआ था। भगवान संकर्षण इस समय केवल छोटे भाई की सम्मति मानते चल रहे थे। दोनों भाई वैणी नदी के तट पर एक उच्च वटवृक्ष देख कर वहाँ विश्राम करने के विचार से चले। दूर से ही उन्होंने देखा कि उच्च गौर शरीर कंधे पर परशु रखे, कटि में वल्कल एवं उत्तरीय के स्थान पर कृष्ण मृगचर्म वक्ष पर कसे, त्रिपुण्ड शोभित भाल, रुद्राक्ष माला भूषित प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी भगवान परशुराम अपनी चंद्रोज्वल होम धेनु के गले में बंधी रस्सी पकड़ करउसे कहीं ले जा रहे हैं। हम वृष्णिगोत्रीय यादव वसुदेव पुत्र राम एवं कृष्ण श्री चरणों में प्रणत हैं। दोनों भाइयों ने साष्टांग प्रणिपात किया। परशुरामजी ने गौ की रस्सी छोड़ दी। दोनों को उठा कर हृदय से लगाया। दोनों को साथ आने का संकेत करके वट वृक्ष के नीचे जा बैठे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज