प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमियों की अभिलाषाएँकदँब की छाहँ हो जमुना का तट हो। कैसी अनुपम और अनुभवगम्य अभिलाष है! ‘गिरै गरदन ढुलककर पीत पटपर। खुली रह जायँ ये आँखें मुकट पर।।’- उफ़। इस हृदयस्पर्शी भाव का अनुभव प्रेमी भावुक ने कितनी गहरी भक्ति भावना से किया होगा। अभिलाषा कोई हो तो बस ऐसी! वाह! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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