प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 86

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेमियों की अभिलाषाएँ

आत्यन्तिक विरह की कैसी विशद वर्णना है! प्रेम के कैसे भव्य भाव है! कैसी अनूठी अभिलाषाएँ हैं! इसे कहते हैं विरद वेदना की पुनीत धारा। त्रिताप संतप्त प्राणियों! पखार लो इस धवल धारा में अपने अपने अंग। ऐसी स्वर्गीय दिव्य धारा को बहाने वाले विरही नागरीदास को धन्य है! ऐसी ही अमन्द अभिलाषाएँ रसिक वर ललित किशोरीजी की भी हैं। वह भी मस्त होकर नागरीदास के सरस स्वर में अपना स्वर मिला रहे हैं; सुनिये-

कदँब कुंज ह्वैहौं कबै श्रीवृन्दावन माहँ।
‘ललित किशोरी’ लाड़िले बिहरैंगे तेहि छाँह।।
सुमन वाटिका विपिन में, ह्वैहौं कब मैं फूल।
कोमल कर दोउ भावते धरिहैं बीनि दुकूल।।
मिलिहैं कब अंग छार ह्वै श्रीबन बीथिन धूरि।
परिहैं पद पंकज बिमल मेरे जीवन मूरि।।
कब कालिन्दी कूल की ह्वैहौं तरुबर डार।
‘ललित किशोरी’ लाड़ले झूलिहैं झूला डार।।

अहा! ऊपर की इन परम पावन पंक्तियों में प्रेमोन्मत्त भक्त

प्रकृति के अणु परमाणु के साथ तन्मय होकर अपने प्रियतम की कैसी उत्कण्ठित उपासना कर रहा है! भावुकजन प्रकृति को अपने उपास्य के रूप में देखते हैं। उनका प्रेमादर्श प्रकृति में ओतप्रोत रहता है। प्रेमी धूल, पवन, वृक्ष, लता, फूल फल, चकोर मोर आदि सब कुछ बनाने को तैयार है, पर शर्त यह है कि वे सब उसे उसके प्रियतम के मिलने में सहायक और साधक हों। अस्तु, ललित किशोरीजी की यह भी क्या अच्छी अभिलाषा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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