प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम में अधीरतासाधन सरित न रुकै करो जो जतन कोउ अति। और निर्दय निठुर स्वजन संबंधियों ने जिन व्रजबालाओं को किसी तरह काल कोठरियों में बंदकर रोक रखा था, उनकी दशा यह हुई- जे रुकि गई घर अति अधीर गुनमय सरीर बस। उस एक क्षण की विरह व्याकुलता का तनिक ध्यान तो करो। करोड़ों वर्षों के दुखों का लय हो जाता है उस मिलन उत्कण्ठा में, उस अतुलनीय प्रेमाधीरता में। आह कैसी होती होगी वह आतुरता! कितने प्रेमियों के प्राण पक्षी न उड़ा दिये होंगे उस दयाहीना अधीरता ने। पर प्रेमी तो बलि होने के अर्थ ही जीवन धारण करते हैं। ऐसे अधीर प्रेमातुर प्राण कब तक जीवित रह सकते हैं? व्यर्थ ही प्रेमातुरों को दोष देते हो। कहाँ तक बेचारे धैर्य धारण किये रहें। धैर्य की भी कोई हद होती है। बेचारे विरही अपने प्राण विहंगमों को कब तक बाँधकर रखे रहें। क्यों न उनके हाथों से छूट कर उड़ जायँ उनके छटपटाते हुए प्राण पक्षी- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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