प्रेम योग -वियोगी हरि पृ. 61

प्रेम योग -वियोगी हरि

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प्रेम में अधीरता

साधन सरित न रुकै करो जो जतन कोउ अति।
कृष्ण हरे जिनके मन, ते क्यों रुकैं अगम गति?- नन्ददास

और निर्दय निठुर स्वजन संबंधियों ने जिन व्रजबालाओं को किसी तरह काल कोठरियों में बंदकर रोक रखा था, उनकी दशा यह हुई-

जे रुकि गई घर अति अधीर गुनमय सरीर बस।
पुन्य पाप प्रारब्ध रच्यो तन नाहिं पच्यो रस।।
परम दुसह श्रीकृष्ण विरह दुख व्याप्यौ जिनमें।
कोटि बरस लगि नरक भोगि अघ भुगते छिनमें।।
पुनि रंचक धरि ध्यान पीय परिरंभन दिय जब।
कोटि स्वर्ग सुख बोगि छिनहिं मंगल कीनों सब।। - नन्ददास

उस एक क्षण की विरह व्याकुलता का तनिक ध्यान तो करो। करोड़ों वर्षों के दुखों का लय हो जाता है उस मिलन उत्कण्ठा में, उस अतुलनीय प्रेमाधीरता में। आह कैसी होती होगी वह आतुरता! कितने प्रेमियों के प्राण पक्षी न उड़ा दिये होंगे उस दयाहीना अधीरता ने। पर प्रेमी तो बलि होने के अर्थ ही जीवन धारण करते हैं। ऐसे अधीर प्रेमातुर प्राण कब तक जीवित रह सकते हैं? व्यर्थ ही प्रेमातुरों को दोष देते हो। कहाँ तक बेचारे धैर्य धारण किये रहें। धैर्य की भी कोई हद होती है। बेचारे विरही अपने प्राण विहंगमों को कब तक बाँधकर रखे रहें। क्यों न उनके हाथों से छूट कर उड़ जायँ उनके छटपटाते हुए प्राण पक्षी-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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प्रेम योग -वियोगी हरि
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
पहला खण्ड
1. प्रेम 1
2. मोह और प्रेम 15
3. एकांकी प्रेम 25
4. प्रेमी 29
5. प्रेम का अधिकारी 41
6. लौकिक से पारलौकिक प्रेम 45
7. प्रेम में तन्मयता 51
8. प्रेम में अधीरता 56
9. प्रेम में अनन्यता 63
10. प्रेमियों का मत मज़हब 72
11. प्रेमियों की अभिलाषाएँ 82
12. प्रेम व्याधि 95
13. प्रेम व्याधि 106
14. प्रेम प्याला 114
15. प्रेम पंथ 120
16. प्रेम मैत्री 130
17. प्रेम निर्वाह 141
18. प्रेम और विरह 146
19. प्रेमाश्रु 166
20. प्रेमी का हृदय 177
21. प्रेमी का मन 181
22. प्रेमियों का सत्संग 186
23. कुछ आदर्श प्रेमी 190
दूसरा खण्ड
1. विश्व प्रेम 204
2. दास्य 213
3. दास्य और सूरदास 223
4. दास्य और तुलसी दास 232
5. वात्सल्य 243
6. वात्सल्य और सूरदास 253
7. वात्सल्य और तुलसीदास 270
8. सख्य 281
9. शान्त भाव 291
10. मधुर रति 299
11. अव्यक्त प्रेम 310
12. मातृ भक्ति 317
13. प्रकृति में ईश्वर प्रेम 322
14. दीनों पर प्रेम 328
15. स्वदेश प्रेम 333
16. प्रेम महिमा 342
अंतिम पृष्ठ 348

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