प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम का अधिकारीहमारी मनोव्यथा सुनने समझने का अधिकारी तो वही हो सकता है, जिसे अपना शरीर दे दिया है, मन सौंप दिया है और जिसके हृदय को अपना निवास स्थान बना लिया है अथवा जिसे अपने दिल में बसा लिया है। उससे अपना क्या भेद छिपा रह सकता है। ऐसे प्रेमी को अपने रामकहानी सुनाते सचमुच बड़ा आनन्द आता है, क्योंकि वही उसके सुनने समझने का सच्चा अधिकारी है। रहीम ने कहा है- जेहि ‘रहीम’ तन मन दियौ, कियौ हिये बिच भौन। ज्ञानी अथवा सिद्ध प्रेमाधिकारी नहीं हो सकता, किन्तु प्रेमाधिकारी निस्संदेह ज्ञानी और सिद्ध की अवस्था को अनायास पहुँच जाता है। जो प्रेम की कहानी सुन और समझ सकता है, वही तो ज्ञानी और सिद्ध है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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