प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेमीलिखते हैं- एकै अभिलाख, लाख लाख भाँति लेखियतु, प्रेमी ही सच्चा शूरवीर है। जिसे अपने प्राणों का भी मोह नहीं, वह कितना ऊँचा, कितना सच्चा और कितना पराक्रमी न होता होगा। आत्मबलिदान का महान् रहस्य एक प्रेमी ही समझता है। अपने ही हाथ से अपना सर उतारकर रख देना, अपने अहंकार को प्रेम की आग में जला देना, हर किसी का काम नहीं। आशिक होना हर बाजारू आदमी के हिस्से में नहीं आया है। विषयी और प्रेमी में कौड़ी मोहर का अंतर है। संत पलटूदासजी ने कितना अच्छा कहा है- झूठ आसिकी करहिं मुलक में जूती खाहीं। पागल पलटू ने आशिकी को देखा, आसमान पर चढ़ा रक्खा है! क्या सचमुच ही प्रेम की साधना इतनी कठिन है? हम दुनियादारों की राय में तो सबसे सुगम संसार में यदि कोई कार्य है, तो एक प्रेम ही है। प्रेमी का सर्टिफिकेट प्राप्त करने में हमारा एक पैसा भी तो खर्च नहीं होता। हम सभी अपने को प्रेमी कहते हैं, आशिक मानते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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