प्रेम योग -वियोगी हरि
प्रेम-योगरसिकवर रसखानि का प्रमाण लीजिए- प्रेम हरी कौ रूप है, त्यों हरि प्रेम स्वरूप। इस पर सहृदय सत्यनारायण का समर्थन- निरत बिचारन जोग रुचत उपदेस यही उर। मीर साहब भी यही बात कह रहे हैं- तू न होवे तो नज्म कुल उठ जाय। इश्क ही खुदा है। प्रेम ही परमात्मा है। इसमें संदेह नहीं कि- Love is God and God is Love. तदपि कहे बिन रहा न कोई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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